लालच बुरी बला है पर …………… !
************************************** बड़े बुजुर्ग धैर्य और संतोष को जीवन का सबसे बड़ा गहना मानते हैं।जो इसे पहन लेता है वह जीवन भर संतुष्ट होकर जीता है। पुराने समय के साधु महात्मा सांसारिक मोहमाया से दूर रहते थे क्योंकि वह संतुष्टि को अपना लेते थे। लालसा और इच्छा दोनों पर ही नियंत्रण कर लेना एक बड़ी उपलब्धि है। पर हम आम इंसान क्या करें क्योंकि हमें तो समाज के बीच रहकर खुद की पहचान बनाते हुए जीना है। अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत सी इच्छाएं ऐसी रखनी पड़ती है जो शायद आज लालच कहलाती हैं ।
कहते है लालच बुरी बला है पर यह भी सत्य है की यही लालच हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहने की प्रेरणा देता है।
यदि व्यक्ति मन से संतोष मान ले तो वह उसी जगह ठहर जायेगा जबकि यदि वह अपनी जगह से संतुष्ट नहीं है तो वह बदलाव या आगे जाने की कोशिश में लगा रहेगा। एक मामूली सी चींटी बहुत ऊपर रखे मीठे के लालच में ही कठिन से कठिन ऊंचाइयों को छू लेती है। ये उसका साहस ही है। इस लिए अगर सोचा जाये तो लालच ऐसी बला है जिसकी लत इंसान को वह भी हांसिल करने के लिए उकसा सकती है जो उसके बस से बाहर है।
यदि इंसान लालची हो और उसका लालच अपने भविष्य को संवारने का हो तो यह एक अच्छा संकेत है। तब इंसान अपने प्रयास और क्षमताओं का बेहतर प्रयोग करने लगता है। अधिक ऊंचाइयों पर जाने का लालच ही तो व्यक्ति से और मेहनत करवा कर नयी नयी परीक्षाएं पास करवाने का हौसला देता है। संतुष्ट मानव एक स्थान पर टिक जाता है और उसे आगे कुछ भी नजर नहीं आता। पर लालची व्यक्ति को एक स्थान पर रहने के बावजूद आगे भी मुकाम नजर आते रहते हैं। जिस लालच की हम बात कर रहे है उसे हम महत्वाकांक्षा भी कह सकते है। क्योंकि यदि ये लालच positive है तो ये महत्वाकांक्षा कहलाएगी बशर्ते इसमें negativity न आये। दोनों एक ही अर्थ ले कर चलते है बस अंतर भावना में छुपी सच्चाई का होता है। वह सच्चाई जो बिना किसी को हानि पहुचाएं अपना लक्ष्य हांसिल करने का हौसला दे। लालच यदि किसी की हानि पर टिका हो तब वह सही नहीं है अन्यथा लालच व्यक्ति की जिंदगी बदलने का हौसला रखता है। ये लालच ही व्यक्ति की इच्छाओं को प्रबल बनता है तभी मानव उस ओर प्रयास करने के लिए अग्रसर होता है। सत्य ये है की वह व्यक्ति सामाजिक ही क्या जो लालची न हो।
आज ज्यादा से ज्यादा काम करना इंसान की मजबूरी नहीं उसका लालच है जो बेहतर जिंदगी के लालच में उसे ज्यादा काम करने को उकसा रहा है। आप ढूंढेंगे तो ये लालच आज नस नस में घुस चुका है। अच्छी शिक्षा का लालच ,अच्छी नौकरी का लालच ,अच्छी जगह विवाह का लालच ताकि अच्छा दहेज़ मिल सके, फिर अच्छी जिंदगी बसर करने के लिए कमाऊं पत्नी का लालच ,बेटा पैदा होने का लालच , और उसको लेकर फिर से उन्ही लालचों का सिलसिला शुरू होने का लालच। ये सब जिंदगी का एक हिस्सा है। इसे हम लालच कहे तो बुरा लगेगा पर ये इच्छा ही तो है जो लालच बन कर मन में दबी रहती है।ऐसी तमाम इच्छाएं जो कुछ ज्यादा करने के लिए प्रेरित करें वह लालच है। सोचने वाली बात है ,
लालच अगर स्वयं को या अन्य किसी को बिना नुकसान पहुंचाए पूरा हो रहा है तो इसे ध्येय भी कह सकते है।
और ध्येय हमेशा बेहतर ही करने को प्रेरित करेगा। जीवन में बहुत सी कठिनाइयों को पार करके मानव आगे बढ़ता है यही कठिनाइयां उसका हौसला पस्त करने का भी कार्य करती है पर यह लालच उसके हौसले को हवा दे कर ऊँचा और ऊँचा उठने की प्रेरणा देता है। इंसान का लालच यह दर्शाता है कि वह जीवित है, सांसारिक है, और सामाजिक है। यही लालच एक दूसरे के बीच competition बन कर जीवित रहता है और ये competition बेहतर करने के लिए आगे बढ़ता रहता है।
लालच मन में रखने का मतलब यह नहीं की इंसान बुरा है पर किसी दूसरे की वस्तु , स्थिति या स्तर का लालच गलत है।
लालच हमेशा यह होना चाहिए की आप कैसे उसे मेहनत से पा सकते हैं। क्योंकि मेहनत ही एकमात्र वह तरीका है जिस के जरिये इच्छापूर्ति या लालसापूर्ति स्वीकार्य होती है।इस लिए परिश्रम से अपने लालच की पूर्ति करें और आगे बढ़ते रहने के लालच को अपने मन से कभी भी मरने न दें। संतुष्टि और लालच दोनों ही जीवन में आवश्यक हैं पर उनकी उपयोगिता और मात्रा हम स्वयं निर्धारित करते हैं। कैसे दोनों में सामंजस्य बना कर समयानुसार कम या ज्यादा कर अपना लक्ष्य पाया जाए यह तय करें। और हमेशा आगे बढ़ते रहें।
************************************** बड़े बुजुर्ग धैर्य और संतोष को जीवन का सबसे बड़ा गहना मानते हैं।जो इसे पहन लेता है वह जीवन भर संतुष्ट होकर जीता है। पुराने समय के साधु महात्मा सांसारिक मोहमाया से दूर रहते थे क्योंकि वह संतुष्टि को अपना लेते थे। लालसा और इच्छा दोनों पर ही नियंत्रण कर लेना एक बड़ी उपलब्धि है। पर हम आम इंसान क्या करें क्योंकि हमें तो समाज के बीच रहकर खुद की पहचान बनाते हुए जीना है। अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत सी इच्छाएं ऐसी रखनी पड़ती है जो शायद आज लालच कहलाती हैं ।
कहते है लालच बुरी बला है पर यह भी सत्य है की यही लालच हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहने की प्रेरणा देता है।
यदि व्यक्ति मन से संतोष मान ले तो वह उसी जगह ठहर जायेगा जबकि यदि वह अपनी जगह से संतुष्ट नहीं है तो वह बदलाव या आगे जाने की कोशिश में लगा रहेगा। एक मामूली सी चींटी बहुत ऊपर रखे मीठे के लालच में ही कठिन से कठिन ऊंचाइयों को छू लेती है। ये उसका साहस ही है। इस लिए अगर सोचा जाये तो लालच ऐसी बला है जिसकी लत इंसान को वह भी हांसिल करने के लिए उकसा सकती है जो उसके बस से बाहर है।
यदि इंसान लालची हो और उसका लालच अपने भविष्य को संवारने का हो तो यह एक अच्छा संकेत है। तब इंसान अपने प्रयास और क्षमताओं का बेहतर प्रयोग करने लगता है। अधिक ऊंचाइयों पर जाने का लालच ही तो व्यक्ति से और मेहनत करवा कर नयी नयी परीक्षाएं पास करवाने का हौसला देता है। संतुष्ट मानव एक स्थान पर टिक जाता है और उसे आगे कुछ भी नजर नहीं आता। पर लालची व्यक्ति को एक स्थान पर रहने के बावजूद आगे भी मुकाम नजर आते रहते हैं। जिस लालच की हम बात कर रहे है उसे हम महत्वाकांक्षा भी कह सकते है। क्योंकि यदि ये लालच positive है तो ये महत्वाकांक्षा कहलाएगी बशर्ते इसमें negativity न आये। दोनों एक ही अर्थ ले कर चलते है बस अंतर भावना में छुपी सच्चाई का होता है। वह सच्चाई जो बिना किसी को हानि पहुचाएं अपना लक्ष्य हांसिल करने का हौसला दे। लालच यदि किसी की हानि पर टिका हो तब वह सही नहीं है अन्यथा लालच व्यक्ति की जिंदगी बदलने का हौसला रखता है। ये लालच ही व्यक्ति की इच्छाओं को प्रबल बनता है तभी मानव उस ओर प्रयास करने के लिए अग्रसर होता है। सत्य ये है की वह व्यक्ति सामाजिक ही क्या जो लालची न हो।
आज ज्यादा से ज्यादा काम करना इंसान की मजबूरी नहीं उसका लालच है जो बेहतर जिंदगी के लालच में उसे ज्यादा काम करने को उकसा रहा है। आप ढूंढेंगे तो ये लालच आज नस नस में घुस चुका है। अच्छी शिक्षा का लालच ,अच्छी नौकरी का लालच ,अच्छी जगह विवाह का लालच ताकि अच्छा दहेज़ मिल सके, फिर अच्छी जिंदगी बसर करने के लिए कमाऊं पत्नी का लालच ,बेटा पैदा होने का लालच , और उसको लेकर फिर से उन्ही लालचों का सिलसिला शुरू होने का लालच। ये सब जिंदगी का एक हिस्सा है। इसे हम लालच कहे तो बुरा लगेगा पर ये इच्छा ही तो है जो लालच बन कर मन में दबी रहती है।ऐसी तमाम इच्छाएं जो कुछ ज्यादा करने के लिए प्रेरित करें वह लालच है। सोचने वाली बात है ,
लालच अगर स्वयं को या अन्य किसी को बिना नुकसान पहुंचाए पूरा हो रहा है तो इसे ध्येय भी कह सकते है।
और ध्येय हमेशा बेहतर ही करने को प्रेरित करेगा। जीवन में बहुत सी कठिनाइयों को पार करके मानव आगे बढ़ता है यही कठिनाइयां उसका हौसला पस्त करने का भी कार्य करती है पर यह लालच उसके हौसले को हवा दे कर ऊँचा और ऊँचा उठने की प्रेरणा देता है। इंसान का लालच यह दर्शाता है कि वह जीवित है, सांसारिक है, और सामाजिक है। यही लालच एक दूसरे के बीच competition बन कर जीवित रहता है और ये competition बेहतर करने के लिए आगे बढ़ता रहता है।
लालच मन में रखने का मतलब यह नहीं की इंसान बुरा है पर किसी दूसरे की वस्तु , स्थिति या स्तर का लालच गलत है।
लालच हमेशा यह होना चाहिए की आप कैसे उसे मेहनत से पा सकते हैं। क्योंकि मेहनत ही एकमात्र वह तरीका है जिस के जरिये इच्छापूर्ति या लालसापूर्ति स्वीकार्य होती है।इस लिए परिश्रम से अपने लालच की पूर्ति करें और आगे बढ़ते रहने के लालच को अपने मन से कभी भी मरने न दें। संतुष्टि और लालच दोनों ही जीवन में आवश्यक हैं पर उनकी उपयोगिता और मात्रा हम स्वयं निर्धारित करते हैं। कैसे दोनों में सामंजस्य बना कर समयानुसार कम या ज्यादा कर अपना लक्ष्य पाया जाए यह तय करें। और हमेशा आगे बढ़ते रहें।
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