अनदेखा अनजाना हौसला..........!
परिस्थितिवश ऐसी बहुत सी कठिनाइयों का सामना इंसान करता है। और उसे लगता है कि पूरे संसार में सबसे ज्यादा दुखी और सताया हुआ वही है। पर ज़रा नजर घुमा कर देखा जाये तो मिलेगा कि बहुत से लोग हम से कहीं ज्यादा दुखी और समय के सताए हुए हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनों के ही सताए हैं। जिन्हे न तो कोई पूछता है न ही कुछ देता - लेता है। बाहर निकलने पर एक ऐसी ही महिला से मिलने के बाद अहसास हुआ कि आखिर वह भी तो जीवन को पूरा करने का काम सभी तकलीफों के बावजूद उस ईश्वर के भरोसे निभा रही हैं। उसकी हिम्मत को बंधाये रखने के लिए उस परमपिता परमेश्वर का अनदेखा अनजाना सहयोग काफी है। उनका धैर्य संयम ये दिखा रहा था की परिस्थिति से भाग कर जीने के बजाये यदि इंसान उनका सामना कर के जिए तभी जीवन सुचारु चल पाता है। उस महिला का आगे पीछे कोई नहीं है और न ही उनके पास धन संपत्ति है दोनों ही जीवन की आवशयक वस्तुएं उनके पास नहीं है अब आप जीवन जीने की कल्पना कर देखें कि वह कैसे अपने बचे खुचे जीवन को अच्छे से काट पाएंगी ? पर उनके हौसले की दाद देनी पकड़ेगी कि 80 वर्ष से ऊपर की उम्र में भी ईश्वर के हौसले के भरोसे वह खुश होकर जीवन गुजर रही है। अपने पास का सारा सोना बेच कर उसे बैंक में रख कर उसके ब्याज से खर्च चलने का हौसला रखते हुए वह उल्टा दूसरों को मदद के लिए कहती है। हमेशा मुस्कुराता चेहरा उस समय ग़मगीन हो जाता है जब ये पूछा जाए कि आप अकेले कैसे रहती है ? उन्हें तकलीफ है तो सिर्फ इस बात की कि अकेलेपन के कारण उन्हें कोई बोलने बात करने वाला नहीं मिलता। ईश्वर सहारा है पर समस्या ये है कि वह बात नहीं कर सकते। दुःख सुन तो सकते हैं पर उसके जवाब में हौसला नहीं दे सकते। किसी के पलट कर सांत्वना दे देने से जीवन की बड़ी से बड़ी तकलीफ कम सी होती दिखती हैं। लेकिन फिर भी इस अनजाने हौसले के भरोसे उस महिला के साहस को सलाम कि अकेले जी कर दूसरों को ख़ुशी बाँटते हुए खुश हैं। ऐसे लोगों से सबक ले कर हमें भी जीवन को संतुलित बनाना चाहिए ताकि खुश रहें और ख़ुशी बाँट सकें।
परिस्थितिवश ऐसी बहुत सी कठिनाइयों का सामना इंसान करता है। और उसे लगता है कि पूरे संसार में सबसे ज्यादा दुखी और सताया हुआ वही है। पर ज़रा नजर घुमा कर देखा जाये तो मिलेगा कि बहुत से लोग हम से कहीं ज्यादा दुखी और समय के सताए हुए हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनों के ही सताए हैं। जिन्हे न तो कोई पूछता है न ही कुछ देता - लेता है। बाहर निकलने पर एक ऐसी ही महिला से मिलने के बाद अहसास हुआ कि आखिर वह भी तो जीवन को पूरा करने का काम सभी तकलीफों के बावजूद उस ईश्वर के भरोसे निभा रही हैं। उसकी हिम्मत को बंधाये रखने के लिए उस परमपिता परमेश्वर का अनदेखा अनजाना सहयोग काफी है। उनका धैर्य संयम ये दिखा रहा था की परिस्थिति से भाग कर जीने के बजाये यदि इंसान उनका सामना कर के जिए तभी जीवन सुचारु चल पाता है। उस महिला का आगे पीछे कोई नहीं है और न ही उनके पास धन संपत्ति है दोनों ही जीवन की आवशयक वस्तुएं उनके पास नहीं है अब आप जीवन जीने की कल्पना कर देखें कि वह कैसे अपने बचे खुचे जीवन को अच्छे से काट पाएंगी ? पर उनके हौसले की दाद देनी पकड़ेगी कि 80 वर्ष से ऊपर की उम्र में भी ईश्वर के हौसले के भरोसे वह खुश होकर जीवन गुजर रही है। अपने पास का सारा सोना बेच कर उसे बैंक में रख कर उसके ब्याज से खर्च चलने का हौसला रखते हुए वह उल्टा दूसरों को मदद के लिए कहती है। हमेशा मुस्कुराता चेहरा उस समय ग़मगीन हो जाता है जब ये पूछा जाए कि आप अकेले कैसे रहती है ? उन्हें तकलीफ है तो सिर्फ इस बात की कि अकेलेपन के कारण उन्हें कोई बोलने बात करने वाला नहीं मिलता। ईश्वर सहारा है पर समस्या ये है कि वह बात नहीं कर सकते। दुःख सुन तो सकते हैं पर उसके जवाब में हौसला नहीं दे सकते। किसी के पलट कर सांत्वना दे देने से जीवन की बड़ी से बड़ी तकलीफ कम सी होती दिखती हैं। लेकिन फिर भी इस अनजाने हौसले के भरोसे उस महिला के साहस को सलाम कि अकेले जी कर दूसरों को ख़ुशी बाँटते हुए खुश हैं। ऐसे लोगों से सबक ले कर हमें भी जीवन को संतुलित बनाना चाहिए ताकि खुश रहें और ख़ुशी बाँट सकें।
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