दोराहे पर खड़ा अस्तित्व  ………… !

ये जीवन है इस जीवन का यही है रंग रूप , थोड़े गम हैं थोड़ी खुशियां ………………  !                                              इस गीत की पंक्तियाँ जीवन की असल सच्चाई बयां करती हैं। जिन्दगी के इस चक्र में परिस्थितियों के द्वारा अनेक बार ऐसे पल पैदा हो जाते हैं जब हम और हमारा जीवन दोनों ही एक दोराहे पर खड़े होते हैं।  दोराहा ……यानी किसी दो रास्तों में से किसी एक को चुनना। यहाँ भी एक महत्वपूर्ण तथ्य ये है की  एक रास्ता वह है जिस पर हम चलना चाहते है और एक रास्ता वह जिस पर हमें चलना चाहिए। जीवन में जब हमारा स्वयं का निर्णय हमें आगे या पीछे ले जाता है तब उस स्थिति में चुनाव अति महत्वपूर्ण हो जाता है। कई बार किसी कार्य को करने के लिए हमारे पास अनेकों विकल्प मौजूद रहते है उन सभी में से बेहतर चुनने का दायित्व हमारा ही होता है।  पर आजकल लघुपथ यानि shortcut अपनाने की चाह में कई बार उन रास्तों को अपना लेते है जो हमे प्रगति नहीं बल्कि अवनति की राह पर ले जाते हैं। इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण के द्वारा समझें ……… परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के लिए अथक प्रयास किया परन्तु प्रश्पत्र देख कर लगा की हल करना मुश्किल है  अब या तो नक़ल कर आगे निकलने का प्रयास करें या फिर जितना भी पढ़ा हो उसी में से जवाबों को तलाश कर, उत्तर लिख दे। रास्ते दोनों सामने खुले है पर चुनाव का अधिकार ही तय करेगा की आप सही है या गलत। मन हमेशा से ही लघुपथ लेकर जल्दी से जल्दी सफलता की और जाना चाहता है। पर दिमाग की राय में वह मार्ग उत्तम है जो भले ही लम्बा हो पर उचित होगा और सफल भी।
                                                दोराहे की कश्मकश में अक्सर मन ही जीतता है क्योंकि वह छोटा रास्ता जो चुनना चाहता है। आज अगर समाज में अपराध का स्तर इस हद तक बढ़ा है वह इसी चुनाव का नतीजा है। वह रास्ता जिस पर चलना चाहिए उसकी उपेक्षा कर वह मार्ग चुन लेना जिस पर चलना चाहते हों हमेशा सही नहीं होता। क्योंकि जिस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है वह मार्ग बड़े बुजुर्गों का बताया हुआ या बरसों से परखा हुआ या फिर समाज या कानून  द्वारा स्वीकृत किया हुआ होता है।लेकिन ये मानव मन की व्यथा है  कि लहर के विपरीत बहना उसे अच्छा लगता है। कुछ अलग ,कुछ हट के , कुछ नया करने की चाह हमेशा उसे उकसाती है।  और जो भी सही है वह करने से रोकती है इसी वजह से उसे वह दिखाई नहीं देता जो वाकई उसे करना चाहिए। जीवन इसे ही कहते है की हम कैसे अपने मन के ऊपर दिमाग की जीत पक्की कर सही मार्ग का चुनाव करतें हैं। इस में हमारा साथ देने के लिए पूरा समाज , परिवार और हितैषी मौजूद रहतें है। उनकी अवहेलना कभी कभी बहुत भारी पड़ती है। क्योंकि तब हमारा कार्य या हमारा चुना मार्ग समाज या कानून की नजर में गलत हो जाता है। जिस का प्रायश्चित समय पर भरना ही पड़ता है। इस लिए मानव मन की सोच से ऊपर उठ कर उस मार्ग का चुनाव करें जो सही हो और समाज द्वारा स्वीकृत हो। इस से हमेशा लाभ में बने रहने और अपने मार्ग द्वारा पूर्ण प्रतिफल पाने का आश्वासन बना रहेगा।  गलत मार्ग के चुनाव से पहले ही उसका परिणाम तय रहता है ये मानव मन जानता है फिर भी ये लालसा की कुछ नया आजमाने के लिए प्रयास करना है उसे पीछे से ढकलती रहती है। इसी दबाव से उसे मुँह की खानी पड़े ये भी एक सत्य है। दोराहे पर खड़े अपने अस्तित्व को हमेशा उस ओर धकेलिये जहाँ पहले से सारे लोग आप की राह तक रहें हो।  मार्ग का चुनाव आप खुद करेंगे प्रतिफल आप को समाज देगा। 

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