सादगी और सच्चाई से सजा सौंदर्य.............. !

आज कल मैं एक परिचित के विवाह सम्मेलन में भाग लेने हेतु शहर से बाहर निकली हूँ। शायद इसी वजह से आप मेरे नियमित पोस्ट को पढ़ने से वंचित हो  रहें होंगे। इस हेतु मैं क्षमापार्थी हूँ। पर इसी सन्दर्भ में जीवन से जुड़ा एक नया आधुनिक सत्य आप के साथ बांटने का मौका मिल गया। आज कल के विवाह के बारे में क्या बात करें। बच्चे इतने अति उत्साहित रहतें  है कि शायद सब कुछ ही पहले से ही सोच कर और योजना बना कर रखें होते हैं। माता पिता की भूमिका तो बस उन्हें पूरा करना होता है। और इस का सबसे बड़ा कारण ये बताया जाता है कि शादी सिर्फ एक बार ही होती है इस लिए जो भी चलन में है, जो इच्छा में है ,और जो हैसियत से भी बाहर हो वह जरूर करना है। बच्चों का इस तरह का व्यव्हार अजीब परंतु मजबूरी में पूरा करने करने  को बाध्य करने वाला होता है। इस एक दिन को यादगार बनाने के लिए वह सारे लटके झटके किये जाते हैं, भले ही बाद में जब उसी विवाह को लगन से निभाने की बात आये तो  अपने नए तर्क दे कर खुद को सही साबित किया जाए। आज कल की पीढ़ी के जीवन और मन दोनों से एक शब्द गायब हो चुका  है वह है .......... SIMPLICITY .इस एक शब्द में जीवन की कितनी ख़ूबसूरती समाई है ये वह नहीं जानते। उनके लिए इस अनुभव को एक बार जी लेने के लिए वह सारे बंधनों को तोड़ कर नए मार्ग पर भी चलने को तैयार रहते हैं। इस में जो अनुचित लगने वाला मूल मुद्दा है वह है उच्श्रंखलता अर्थात समय और सीमा के परे  जा कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहे वह विवाह में आने वाले तमाम लोगो को उचित लगे या अनुचित। एक सत्य से वह अनजान रहना चाहते है कि simplicity is the best and attractive beauty  in the world . हमारे समय में विवाह के जयमाला के समय दुल्हन पुरी तैयारी के साथ स्टेज  पर आती थी उस समय वह जितनी सुन्दर लगती थी उससे कही ज्यादा फेरों के वक्त  लगती थी , तब वह नहा  कर एक पीली साड़ी में लाल चुनरी ओढ़े एकदम छुइ मुई सी नजर आती थी। क्योंकि उस समय उसका वास्तविक रूप नजर आता था ,  मेकअप में पुता चेहरा नहीं । प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट करते ही उसका वास्तविकपन ख़त्म हो जाता है। फूल जितने पेड़ों में सुन्दर लगते है उतने हाथों में नहीं। उसी प्रकार ईश्वर ने जिस रूप या शक्ल सूरत से नवाजा है उसे उसी रूप में प्रस्तुत करना एक कला है जिसे आजकल की पीढ़ी भूल चुकी है। ऐसे बहुत से नए trends  को अपना कर अपनी शादी को और रंगीन और मजेदार बनाना उन्हें खूब आता है। विवाह एक पवित्र परंपरा है और इसकी पवित्रता में आधुनिकता का मिश्रण उसे असफलता की और ले जा रहा है तभी आज कल इतना उछल कूद कर की हुई शादियां भी दो चार साल  टिका कर रखना भारी लगने लगती है। असली परीक्षा शादी के बाद सामने आती है जब व्यवहारों का आमना सामना होता है। दूर के ढोल सुहावने वाले मुहावरे पर चल कर पहला प्रभाव शानदार डालने के चक्कर में सब कुछ अच्छा अच्छा , बाद में सत्य के रूप में सामने आने लगता है।  इस लिए बेहतर है की पहला ही प्रभाव सत्य  के साथ पूरी simplicity में रखा जाए। जो जीवन भर वैसा ही रहेगा जैसे आप है जो आप हमेशा रहेंगे। सत्य और सादगी ही जीवन की नाव को चलाये रखने के लिए दो  पतवार है। 

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