राह पर जीवन का मूल्य !……नगण्य क्यों ?
आज एक महत्वपूर्ण पहलु पर चर्चा कर के देखा जाये कि हम कहाँ गलत हो रहें हैं ? पर इस चर्चा में देश और विदेश दोनों का ही शामिल होना आवश्यक है। दोनों की स्थिति परिस्थिति को नाप तौल कर एक निष्कर्ष निकाला जायेगा और उस अनुसार अपने आचरण की विश्लेषण किया जा सकता है। यातायात व्यवस्था का सुचारूपन कहाँ और कैसा ? विदेशों में सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों को देख कर एक सुकून का अहसास होता है। क्योंकि गाड़ियां सिर्फ अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए ही दौड़ती है न की किसी को और को पछाड़ने के लिए,चाहे वह समय हो या दूसरी गाड़ी। हर गाड़ी का अपनी सीमा रेखा या lane में चलना , निर्धारित speed या गति का होना , निर्धारित सवारियों का बैठना , यातायात नियमों की अवहेलना करने से डरना और उनका दृढ़ता से पालन करना , और सड़कों को अपने घर का हिस्सा मान कर साफ़ सुथरा रखना। ये कोई आसमान से टपकी हुई इबारतें नहीं हैं। ये एक सत्य है जो हर हिंदुस्तानी विदेश जा कर महसूस कर और देख कर आ सकता है। वह भी तो हमारी तुम्हारी तरह इंसान ही है पर क्या अंतर है ये समझने वाली बात है और हम है कि हमेशा से इसे समझने से कतरा कर अपनी ही चाल चल रहें हैं।
विदेशों में कचरे के लिए कुछ कुछ दूरी पर कचरापेटी या dustbin रखें रहतें है पर कमाल की बात यह है कि उस दूरी की इज्जत रखते हुए व्यक्ति कचरा वहीँ डालता है जहाँ उसे डालना चाहिए। इधर उधर फेंकना न तो उसे अच्छा लगता है और फिर सख्त कानून का डर उसे ऐसा करने से रोक भी देता है। सड़कें स्वच्छ और सुन्दर रहें यह भी यातायात नियमों के ही अंदर आता है। गाड़ियों की रफ़्तार निर्धारित होती है उसके अनुसार ही चलाना ,धीमा करना और रोकना पड़ता है। अपने lane के निर्धारण से गाड़ी की गति तय होती है बदलने पर दोनों एक साथ बदलती है। यातायात बत्तियों का पालन निष्ठा और ईमानदारी से किया जाता है। और सबसे महत्वपूर्ण एक सत्य यह है कि विदेशों में सरकारी यातायात साधन का प्रयोग ज्यादा करने में विश्वास किया जाता है ताकि सड़कों पर कम से कम गाड़ियों की भीड़ हो। यदि अपनी स्वयं की गाड़ी ले भी जा रहें हो तो car -pool जैसी सुविधा को अपनाया जाता है जिसमे एक ही रास्ते के कई सवार एक साथ बैठ कर समय, भीड़ और ईंधन की बचत करते हैं। ये कुछ चुनिंदा खास उपायें है जो विदेशों की यातायात व्यवस्था को इतना सफल और सुचारू बना रहें है। वहां के नागरिक अपने देश के नियमों की इज्जत करने के साथ अपने जीवन को भी सम्मान देते हैं। उन्हें जियो और जीने दो पर विश्वास होता है। तभी व्यवस्था को इतने सुचारू ढंग से क्रियान्वित किया जा सकता है।
अब अगर इसे भारतीय सन्दर्भ में देखें तो विस्तार से कुछ भी समझाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि जो स्थिति या परिस्थिति आप रोज देख या झेल रहें हो उसे क्या बताना , क्या समझाना। खुद महसूस करें कि हम कहाँ कम हैं ? क्यों घर के बाहर सड़कों पर सब कुछ इतना अव्यवस्थित सा लगता है ? क्यों व्यक्ति सड़क को अपने घर की चारदीवारी समझ कुछ भी करने या कैसे भी चलने पर आमादा होता है ? क्यों पहले आप का मूल मन्त्र वह सड़क पर आकर भूल जाता है ? क्यों यातायात की बत्तियाँ उसे जेल तोड़ कर भागने पर महबूर करती हैं ? क्यों वह आगे निकलने की होड़ में दूसरे के जीवन को कुचलने से भी नहीं कतराता ? क्यों गाड़ी चलाते समय ही उसे दुनिया भर से संपर्क बनाये रखने (मोबाइल पर ) की जरूरत आन पड़ती है ? क्यों वह सड़क पर गाड़ी में बैठ कर ये भूल जाता है कि कोई घर पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा है ? क्यों वह गाड़ी को अपनी शान समझ उसके प्रदर्शन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ? क्यों बिना गाड़ी के पैदल सवार भी सड़क को अपने ही अधीन समझ कर उसके दुरुपयोग से बाज नहीं आते है ? क्यों नियमों का पालन करने से समय की बर्बादी का अहसास होता है ? और क्यों समय जीवन से ज्यादा कीमती लगने लगा है ?
इतने प्रश्नों के बाद स्थिति और परिस्थिति का अंतर तो स्पष्ट हो गया होगा। अब इसे समझना या न समझना आप के खुद के हाथ में है क्योंकि जीवन आप का है और जीवन से जुड़े लोग भी आप के ही हैं । कहते है कि जहाँ चाह वहाँ राह । सुधार प्रारम्भ करने के लिए किसी से मुहूर्त नहीं निकलवाना पड़ता बस थोड़े से प्रयास और निष्ठां की आवश्यकता है। जो आप के अंदर ही है। हर एक अकेले का प्रयास एक नयी व्यवस्था को जन्म दे सकता है। जिस से आप और आप के अपनों का जीवन सुखी ,संतुष्ट और सुरक्षित हो सकता है।
आज एक महत्वपूर्ण पहलु पर चर्चा कर के देखा जाये कि हम कहाँ गलत हो रहें हैं ? पर इस चर्चा में देश और विदेश दोनों का ही शामिल होना आवश्यक है। दोनों की स्थिति परिस्थिति को नाप तौल कर एक निष्कर्ष निकाला जायेगा और उस अनुसार अपने आचरण की विश्लेषण किया जा सकता है। यातायात व्यवस्था का सुचारूपन कहाँ और कैसा ? विदेशों में सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों को देख कर एक सुकून का अहसास होता है। क्योंकि गाड़ियां सिर्फ अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए ही दौड़ती है न की किसी को और को पछाड़ने के लिए,चाहे वह समय हो या दूसरी गाड़ी। हर गाड़ी का अपनी सीमा रेखा या lane में चलना , निर्धारित speed या गति का होना , निर्धारित सवारियों का बैठना , यातायात नियमों की अवहेलना करने से डरना और उनका दृढ़ता से पालन करना , और सड़कों को अपने घर का हिस्सा मान कर साफ़ सुथरा रखना। ये कोई आसमान से टपकी हुई इबारतें नहीं हैं। ये एक सत्य है जो हर हिंदुस्तानी विदेश जा कर महसूस कर और देख कर आ सकता है। वह भी तो हमारी तुम्हारी तरह इंसान ही है पर क्या अंतर है ये समझने वाली बात है और हम है कि हमेशा से इसे समझने से कतरा कर अपनी ही चाल चल रहें हैं।
विदेशों में कचरे के लिए कुछ कुछ दूरी पर कचरापेटी या dustbin रखें रहतें है पर कमाल की बात यह है कि उस दूरी की इज्जत रखते हुए व्यक्ति कचरा वहीँ डालता है जहाँ उसे डालना चाहिए। इधर उधर फेंकना न तो उसे अच्छा लगता है और फिर सख्त कानून का डर उसे ऐसा करने से रोक भी देता है। सड़कें स्वच्छ और सुन्दर रहें यह भी यातायात नियमों के ही अंदर आता है। गाड़ियों की रफ़्तार निर्धारित होती है उसके अनुसार ही चलाना ,धीमा करना और रोकना पड़ता है। अपने lane के निर्धारण से गाड़ी की गति तय होती है बदलने पर दोनों एक साथ बदलती है। यातायात बत्तियों का पालन निष्ठा और ईमानदारी से किया जाता है। और सबसे महत्वपूर्ण एक सत्य यह है कि विदेशों में सरकारी यातायात साधन का प्रयोग ज्यादा करने में विश्वास किया जाता है ताकि सड़कों पर कम से कम गाड़ियों की भीड़ हो। यदि अपनी स्वयं की गाड़ी ले भी जा रहें हो तो car -pool जैसी सुविधा को अपनाया जाता है जिसमे एक ही रास्ते के कई सवार एक साथ बैठ कर समय, भीड़ और ईंधन की बचत करते हैं। ये कुछ चुनिंदा खास उपायें है जो विदेशों की यातायात व्यवस्था को इतना सफल और सुचारू बना रहें है। वहां के नागरिक अपने देश के नियमों की इज्जत करने के साथ अपने जीवन को भी सम्मान देते हैं। उन्हें जियो और जीने दो पर विश्वास होता है। तभी व्यवस्था को इतने सुचारू ढंग से क्रियान्वित किया जा सकता है।
अब अगर इसे भारतीय सन्दर्भ में देखें तो विस्तार से कुछ भी समझाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि जो स्थिति या परिस्थिति आप रोज देख या झेल रहें हो उसे क्या बताना , क्या समझाना। खुद महसूस करें कि हम कहाँ कम हैं ? क्यों घर के बाहर सड़कों पर सब कुछ इतना अव्यवस्थित सा लगता है ? क्यों व्यक्ति सड़क को अपने घर की चारदीवारी समझ कुछ भी करने या कैसे भी चलने पर आमादा होता है ? क्यों पहले आप का मूल मन्त्र वह सड़क पर आकर भूल जाता है ? क्यों यातायात की बत्तियाँ उसे जेल तोड़ कर भागने पर महबूर करती हैं ? क्यों वह आगे निकलने की होड़ में दूसरे के जीवन को कुचलने से भी नहीं कतराता ? क्यों गाड़ी चलाते समय ही उसे दुनिया भर से संपर्क बनाये रखने (मोबाइल पर ) की जरूरत आन पड़ती है ? क्यों वह सड़क पर गाड़ी में बैठ कर ये भूल जाता है कि कोई घर पर उसकी प्रतीक्षा कर रहा है ? क्यों वह गाड़ी को अपनी शान समझ उसके प्रदर्शन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ? क्यों बिना गाड़ी के पैदल सवार भी सड़क को अपने ही अधीन समझ कर उसके दुरुपयोग से बाज नहीं आते है ? क्यों नियमों का पालन करने से समय की बर्बादी का अहसास होता है ? और क्यों समय जीवन से ज्यादा कीमती लगने लगा है ?
इतने प्रश्नों के बाद स्थिति और परिस्थिति का अंतर तो स्पष्ट हो गया होगा। अब इसे समझना या न समझना आप के खुद के हाथ में है क्योंकि जीवन आप का है और जीवन से जुड़े लोग भी आप के ही हैं । कहते है कि जहाँ चाह वहाँ राह । सुधार प्रारम्भ करने के लिए किसी से मुहूर्त नहीं निकलवाना पड़ता बस थोड़े से प्रयास और निष्ठां की आवश्यकता है। जो आप के अंदर ही है। हर एक अकेले का प्रयास एक नयी व्यवस्था को जन्म दे सकता है। जिस से आप और आप के अपनों का जीवन सुखी ,संतुष्ट और सुरक्षित हो सकता है।
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