कोशिश कभी हारने नहीं देती……………!

आज एक ऐसे शब्द पर चर्चा किया जाए जो जिंदगी की दिशा और दशा बदल सकता है। जिस की वजह से व्यक्ति कभी हारा हुआ नहीं महसूस करता। हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहता है। और असफलता  भी उसकी चाल को धीमा या रोक नहीं पाती। क्योंकि कई बार की असफलता भी उसे अगली बार फिर से एक नये कदम के लिए आगे बढ़ा देती है। अब आप सोच रहें होंगे की ऐसा कौन सा शब्द है जो इस तरह जीवन को प्रभावित करता है ? वह है कोशिश या प्रयास…………ये एक शब्द ऐसा है जिसमे पूरे संसार की आगे बढ़ने की प्रेरणा समाई है। जीवन विभिन्न परिस्थितियों के बीच संघर्ष कर जीने का नाम है। और ये भी सत्य है की परिस्थितियां हमेशा अनुकूल और सहायक नहीं रहती। उन्ही के बीच में से जीवन का सार ढूढ़ना पड़ता है। वह करते रहना जिस से हमेशा लाभ में रहें ये तो संभव नहीं है इस लिए कभी न कभी तो हार का मुख देखना ही पड़ता है। बस यहीं से इस कोशिश या प्रयास का अध्याय प्रारम्भ होता है। निराशा को अपने ऊपर हावी न होने दे कर बस प्रयास में लगे रहना और ये मानना कि आगे सफलता हमारी प्रतीक्षा में है , यही जीवन है। उदाहारण के तौर पर देखें ................आज व्यक्ति इतना career oriented यानि व्यवसाय अभिविन्यस्त हो गया है कि उससे जुडी शिक्षा में असफलता ,या नौकरी में असफलता ,उससे सही नहीं जाती और वह आत्महत्या जैसे कदम उठाने से भी नहीं चूकता। ये क्या उचित है कि जिस जीवन को एक मिसाल बना कर जिया जा सकता हो उसे लोगो के लिए हंसने का सामान बना दिया जाये। चले जाने के बाद कोई इस लिए नहीं याद करता की उसने इतना संघर्ष देखा इस लिए चला गया बल्कि यह कह कर उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है की उसमे संघर्षों को झेलने की हिम्मत नहीं थी इस लिए हार मान ली। 
                            कोशिश मन के अंदर छुपी एक ऐसी भावना है जो हमेशा पराजय और असफलता के समय कहीं खो सी जाती है। हमारी कुंठा और निष्फलता उसे दबा कर हतोत्साहित कर देती है जिस से वह अपने प्रयास में असफल रह जाती है। अब इसे समझे और महसूस करें कि कोशिश या प्रयास की सीमा कहाँ से प्रारम्भ होती है  ……  कि यदि परिस्थितिवश कुछ अनुचित हो गया तो पहले उस स्थिति को समझने का प्रयास करें जिस से उस होने या न होने का कारण समझ में आएगा। वह स्थिति आप के खुद के कारण उपजी है या किसी और के कारण। यदि खुद ही कारण है तो खुद पर निराशा निकलने का क्या अर्थ और यदि कोई और कारण है तो उस की परिस्थितियों को समझने का प्रयास करें कि ऐसा क्यों हुआ। अनुकूलता और प्रतिकूलता जीवन के दो पहिये हैं जिस पर हमारे सारे प्रयास कभी इधर कभी उधर झुकते हुए दौड़तें हैं। कहते है न कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। यही कोशिश ही है जो इस मन को कभी हारने नहीं देती। ये भी एक सत्य है कि जब इंसान सब तरफ से विपरीत परिस्थितियों से घिर जाता है तो उसका हौंसला टूटने लगता है।  उस वक्त उसे प्रयास के लिए उकसाया जाये तो वह कुछ न कुछ अवांछनीय ही कर गुजरेगा। पर वह समय एक नए प्रयास या कोशिश का है वह ये कि मन को कैसे शांत और ठंडा रखें। किस तरह नकारात्मक विचारों को खुद से दूर रख कर एक सकर्मक सोच के साथ नए सिरे से तैयार हों। एक बार जब मन शांत हो जाएगा तब खुद ही ये महसूस होगा कि न जाने कितने ही समाधान आप के समक्ष हैं जिन्हे मन की उलझन सामने नहीं आने दे रही थी।  कही पढ़ा या सुना है कि कोशिशें बेकार नहीं होती , और कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। ये एक शाश्वत सत्य है जिसे स्वीकारना ही सही मायनों में जीवन को जीना है।     

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