जादुई गुण ................!

शब्द और मुस्कुराहट ……… ये दो ऐसे गुण ईश्वर ने मानव को दिए है जिन्हे एक साथ प्रयोग करके मानव इन से जग जीत सकता है। मुस्कराहट चेहरे से क्रिया द्वारा व्यक्त होती है जबकि शब्द व्यक्त करने की भावना के जरिये बाहर आते है। लेकिन दोनों ही बेमिसाल जादू सा असर दिखाते हैं। एक कहावत है की कोई पुण्य नहीं किया तो चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये। अर्थात किसी को मुस्कराहट बाँट देना एक पुण्य से कम नहीं। एक व्यक्ति के  बारे में पढ़ा की वह एक ऐसी पहाड़ी पर घर बना कर रहते थे जो जगह एक समय में आत्महत्या के लिए प्रयोग की जाती थी।  उन्होंने ये जिम्मा उठाया की अब मैं ऐसा होने से रोकूंगा।  हर आने वाले को प्यार और मुस्कराहट से करीब बुला कर घर ले जाते और अनेकों तरह की बातों में उलझा कर उसका mind  wash करने का प्रयास करते। शांत हो जाने पर वह स्वयं ही घर चला जाता। इस एक सुकून से उनके हौसले और बढ़ते , अन्य कई जानें बचाने का नया प्रयास प्रारम्भ हो जाता। इस सन्दर्भ में देखें तो शब्द  और मुस्कराहट दोनों ही किसी की विकृत सोच को बदलने के लिए मरहम सा काम करती है।जीवन एक यात्रा है इसे रो कर काटें या हँस कर ये आप पर निर्भर करता है। यदि आप हंसी चुनते हैं तो ये और spread हो कर कई गुना बढ़ जाती है। जबकि दुःख या रोना अकेला कर के दूसरों की हंसी का पात्र बनाता  है।   
                       हँसना और मुस्कुराना व्यक्तित्व का वह हिस्सा है जिस से अनेक में किसी एक खास का प्रभाव उत्पन्न होता है। अर्थात आप भीड़ में रहकर भी सबसे अलग और अच्छे नजर आ सकते हैं। एक समय था जब यह मानते थे की दुःख बाँटने से कम होता है पर आज के सन्दर्भ में यह गलत है। क्योंकि अब यदि आप अपना दुःख किसी के साथ बाँटेंगे तो वह सहायता करने के बजाये आप पर हंसेगा। यह व्यस्तता के कारण हुआ है। इस लिए बेहतर है की सुख को बाँटे और दुःख अपने मन में रखे। वह आप का अपना है और उसे खुद ही झेलना है उसका निदान ढूंढ़ना है।यदि आप ने निदान के लिए भी सहायता ली तो ये भी संभव है की उस निदान से आप नए दुःख में फंस जाए।  बेहतर है की मुस्कराहट के साथ अपने दुःख का निदान स्वयं तलाशें और दूसरों की नजरों में अपने लिए ईर्ष्या महसूस करें। आप की ख़ुशी स्वतः ही दूसरों के मन में ईर्ष्या का कारण बनेगी।कहावत है की दूसरे की थाली में घी हमेशा ज्यादा ही नजर आता है।  
                                     मुस्कराहट के ही साथ शब्दों का भी उतना ही महत्व है। हमेशा ही बोलने से पहले  शब्दों को तौल कर देखने की सलाह इस लिए दी जाती रही है कि आप का कहा किसी को ठेस न पहुँचाये। जबान से निकली बात और कमान से निकला तीर दोनों ही लौट कर वापस नहीं आते और घायल जरूर करते है। शब्दों को यदि मुस्कराहट के साथ कहा जाए तो उसमे मीठेपन का स्वाद और बढ़ जाएगा और ये प्रेम को बढ़ाएगा। आज की तेजी में व्यक्ति ने सोचना कम कर दिया है क्योंकि उसका मानना है की सोचने से रफ़्तार पर असर पड़ता है इसी लिए उसने सोच कर बोलना ही छोड़ दिया। अब अगर अपशब्द निकले तो आश्चर्य न होगा। शब्द उस बीज के सामान है जिन्हे हम रिश्तों की जमीन में बोते है और इन्ही की फसल भी काटते है यदि हम ने कांटे वाले बीज डाले हैं तो हम फूलों की उम्मीद नहीं कर सकते। इस लिए शब्द रिश्तों को उनकी जमीन देता है उसे मजबूत करें। मुस्कराहट और शब्द दोनों ही आप के है पर जादू वह किसी और पर करेंगे। जबकि उसका फल आप ही चखेंगे। आजमा कर देखें ............. !  

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