जीवन के तीन रंग

जीवन के तीन रंग ……!!         ••••••••••••••••••••••••

एक व्यक्ति सामान्यतः तीन तरह की जिंदगी जीता है। मानसिक ,सामाजिक और व्यावसायिक। इन तीनों जिंदगियों में उसके निर्णय ही सफलता और शांति को बनाये रखने में सक्षम होते हैं। अब इसे विस्तार से समझे............. मानसिक जीवन वह जो व्यक्ति अपने मन में जीता है अर्थात मन की वह सारी कल्पनाएं जो वह करना और जीना चाहता हो। सामाजिक जीवन वह जो व्यक्ति समाज के बीच रहकर उनके अनुसार जीता हो  बशर्ते उसे वह पसंद हो या न हो। 

व्यावसायिक जीवन वह जो व्यक्ति अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए जीता हो यहाँ भी चाहे उसकी पसंद का काम हो या न हो उसे जीवन के खर्चे पूरे करने के लिए काम  करना ही पड़ता है। जीवन के इस तीनों रूप में वह सबसे ज्यादा सुखी और सबसे ज्यादा दुखी मानसिक जीवन में रहता है। क्योंकि जब भी कोई कुछ करना चाहता हो और वह  ना कर पाये तब उसका दुखी होना लाज़मी है पर यदि उसके मन का हो रहा हो  तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा। 
सामाजिक और व्यावसायिक जीवन भले ही व्यक्ति के मनपसंद का न हो पर एक समय पश्चात उसे स्वीकारना मजबूरी हो जाती है। और फिर उसे उन्हीं के बीच रहकर सहर्ष इंसान जीने लगता है।
     जीवन संघर्ष का नाम है। और ये संघर्ष उसकी सोच से ही प्रारम्भ हो जाता है। व्यक्ति की सोच ही उसे एक समस्या के कई समाधानों के बीच उलझा कर संघर्ष की प्रेरणा देती रहती है। ये उसके मस्तिष्क को एक चक्रव्यूह में फंसा देता है। इसे से सफल हो कर निकलने का नाम जीवन है। क्योंकि जब आप सफल होते हैं तभी ये मानते है की आप वाकई जी रहें  है।  एक बात और विचारणीय है कि इस मानसिक जीवन का प्रभाव आप के अन्य दोनों जीवन पर पड़ता है। 
यदि आप अपने सामाजिक जीवन से या अपने कार्य से मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं होंगे तब तक आप उसे न तो स्वीकार नहीं कर पाएंगे न ही सफल हो पाएंगे। ।  इस लिए जरूरी है की आप पहले अपने मानसिक जीवन को एक धारा प्रवाह में बहने दे उसके साथ बाकि के दोनों जीवन अपने आप जुड़ जायेंगें। और तब आप की सफलता या असफलता आपको व्यथित नहीं करेगी बल्कि उसे भी आप जीवन का हिस्सा मान कर स्वीकार कर पाएंगे। सार्थक जीवन वही है कि आप जियें तो खुश हो कर सामंजस्य बना कर जीयें। 

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