नियति को बदलता कर्म ...................!

जीवन कर्म प्रधान है। इन कर्मों के लेखा जोखा के आधार पर हमारी पूरी जिंदगी निर्भर करती है। अच्छे कर्म हमेशा अच्छा फल देते है जबकि बुरे कर्म बुरा , ये तो सभी जानते है। पर क्या कभी ये सोचा की की तरह है जो भी जीवन में सामने आ रहा है वह पिछले सभी कार्यों का ही प्रतिफल है। जब भी हम कोई कार्य करते है उसका परिणाम पहले से ही ईश्वर ने तय कर रखा है। क्योंकि वह कार्य भी उस की ही मर्जी से हो रहा है हम तो बस माध्यम भर है। हमारी पहली सांस से लेकर आखरी सांस तक ईश्वर के बही खाते में लिखी जा चुकी है। लेकिन क्या आप ने ये सोचा की जब भी कभी हम किसी अनहोनी से गुजरते है। पहला वार ईश्वर की ही और क्यों करते है ? उन्हें दोष दे कर अपने मन को संतुष्ट करना क्या सही है। ये सत्य है की वह ही रचयिता है परन्तु वो कर्मों के हिसाब से ही भाग्य को समृद्ध या खोखला बनाते है। अनहोनी का जिम्मेदार मानते हुए दोषारोपण करने के बाद भी परमात्मा का निरुत्तर रहना हमारे अंदर के अहम को शांत रखता है।  क्योंकि अपनी गलतियों को तो मनुष्य कभी भी दिल से नहीं स्वीकारता। अपने कर्मों को अच्छे या बुरा की श्रेणी में हम क्यों विभाजित करना चाहेंगे। । कौन  अपने किये कर्मों को गलत मानेगा।  इस लिए वह ये भी नहीं मान सकता की ईश्वर ने उसे उसके कर्मों की सजा दी  है। इसी उहापोह में घिरा वह उस  परमपिता के किये पर सवाल खड़े करने लगता है। 
                                             हमने कुछ बुरा नहीं क्या फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ ………………। यही हक़ जताने की आदत अपने साथ हमेशा अच्छा ही होते रहने के लिए प्रेरित करती हैं। आकस्मिक दुःख या तकलीफ हमारे धैर्य और विश्वास को खंडित कर परमात्मा की सत्ता के खिलाफ जाने को उकसाती है। जबकि जीवन में सुख और दुःख नाव की दो पतवारों के सामान है जिसकी सहायता से  आप जीवन की नाव को किनारे लगते है।  जब खाने में आप लगातार मीठा ही मीठा नहीं खा सकते फिर जीवन बनाने वाले के निर्माण पर ये प्रश्न  उठाना की उसने नमकीन या खट्टा क्यों चखाया ये  उचित है क्या ? असल स्वाद का पता तभी चलता है जब हर स्वाद का रसास्वादन किया जाए । सबसे पहले ये स्वीकारना प्रारम्भ करें की जो भी मैं देख या पा रहा हूँ  वह मेरी वो नियति है जिसे मैं जन्म के साथ लिखवा कर लाया हूँ। हालाँकि जीवन के कुछ निर्धारित पल हमारे कर्मों के आधार पर भी टिके होते है। हम जैसे  कर्म करेंगे उसका  परिणाम भी वैसा ही मिलेगा।                                                उदाहरण के तौर पर समझें …............. कोई आतंकवादी जन्म से नहीं होता ,उसके गलत कर्म और संगत बुरे मार्ग की ओर ले जाती है। भाग्य में ईश्वर ने यदि कर्म लिखा है और उसे  अच्छा किया जाए तो  उसके परिणाम भी अच्छे आएंगे।  फिर भी यदि परिस्थितियां आप का साथ न देकर गलत राह की ओर ढकेल ही दे ये भाग्य कहलायेगा। अर्थात अथक् प्रयास के बाद भी यदि सही मार्ग न मिले ये नियति है जिसे स्वीकार करना मजबूरी बन जाते है। लेकिन इसका भी दूसरा पक्ष ये है की हर रात के बाद सवेरा जरूर आता है प्रयास जारी रखना चाहिए , परस्थितियां बदल कर फिर से दुःख को दूर कर , खुशिया करीब लाती है। इस के लिए भी उस ईश्वर को धन्यवाद अर्पित करना चाहिए की उसने हमारे ऊपर भरोसा कर हमें खुद अपने जीवन के निर्णय लेने की आजादी दी। 

Comments