कोख की पवित्रता में परिस्थिति का हस्तक्षेप .......!
माँ अपने बच्चे को नौ माह कोख में रखती है और उसकी हर गतिविधि से बच्चा परिचित होता रहता है। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने तो चक्रव्यूह तोड़ने का भेद माँ के कोख में ही जान लिया था। इस का तात्पर्य ये है कि बच्चा माँ की कोख में सुनता और समझता है। पर क्या ये बात स्वीकारने योग्य है की कोई माँ अपने बच्चे को गलत शिक्षा दे कर उसे अपराधी बनने में सहयोग देती है। फिर ये बाल अपराधी कैसे जन्म ले लेते हैं ? कोई भी माँ या उस के दिए संस्कार कभी भी किसी बालक को गलत राह की ओर नहीं भेज सकते। फिर क्यों बालक गलत राह पर चल कर बाल अपराधी बन जाता है ?
ये सब निर्भर करता है आस पास की परिस्थिति पर और साथ के संगी साथियों पर। कोई कैसे लोगो के बीच रह रहा है और किस तरह की सोच के बीच पनप रहा है ये उसका भविष्य निर्धारित करती है। बाल अपराधी कोख से जन्म नहीं लेता उसे परिस्थितियां बाल अपराधी बनाती हैं। ये माता पिता का फर्ज होता है की अपने बालक के आस पास की जानकारी रख उनके आचरण पर ध्यान दे ताकि वह अपराध की ओर न जा सकें। आज माता पिता अपनी ही दुनिया में इतने व्यस्त हैं। किसी को तो ये भी पता नहीं कि उनका बच्चा कहाँ जा रहा है कहाँ से आ रहा है और क्या कर रहा है ? उनका काम सिर्फ धन से उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है ,और वह समझते है की ये वह अच्छे से कर रहें है। जबकि किसी भी बालक के लिए धन से ज्यादा जरूरी अभिभावक की चौकस दृष्टिकोण होता है। यही उसे सही और गलत मार्ग का अहसास कराता है। एक वाकये का जिक्र करना चाहती हूँ कि एक बार मैंने अपनी बच्चे के प्रधानाध्यापक से यह कहा की मेरा बच्चा मुझे एक अच्छी माँ नहीं समझता। उनका जवाब था की आप एक आप एक अच्छी माँ इस लिए नहीं बन पा रही क्योंकि आप सरोकार रखने और चिंता करने वाली माओं में से हैं। यदि आप उसकी गतिविधियों पर ध्यान देना छोड़ दें और उसे सही गलत कैसे भी जीने दें तो यकीनन आप एक अच्छी माँ साबित होंगी। जो कि आज का हर बच्चा चाहता है।जिस आयु में एक बच्चा बाल अपराधी बनता है उस आयु में उनके खुद के सोचने समझने की शक्ति इतनी सुदृढ़ नहीं होती। उसमे मजबूत संकल्प लेने की क्षमता का विकास और दृढ़निश्चयी बनाने का कार्य हम अभिभावक ही कर सकते है। सशक्त निर्णयों के साथ उसे आगे बढ़ाते रहना अभिभावक की पूर्ण जिम्मेदारी है। परिस्थितियां का निर्माण हम नहीं करते परन्तु उसमे जीवन को ढालने के लिए अपने बच्चो के आगे चलना , हर अभिभावक का फर्ज होता है। आज कल तो यदा कदा यही देखने को मिलता है कि संतान को पैदा करने के बाद माता पिता अपनी जिमेदारी से मुक्त होकर उसे पलने और बढ़ने के लिए एक तरह से सड़क पर ही छोड़ देते हैं। कि जैसा भी माहौल बाहर मिले उसी से सीखो और बढ़ो। इसी का खमियाजा भुगत कर एक छोटा बालक अपराध की ओर जाता है जबकि शायद उसे ये भी पता नहीं होता अपराध करने और उसके अंजाम का उस पर क्या प्रभाव होगा। बच्चों को जन्म देने से ज्यादा कठिन उसे सही मार्ग का अनुसरण करवाना है। यदि हम अभिभावक एक सही सोच और समझ के साथ अपने बच्चो प्रति जागरूक रहें तो ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी। और हम एक स्वस्थ भविष्य के निर्माण में सहयोग दे सकेंगे।
माँ अपने बच्चे को नौ माह कोख में रखती है और उसकी हर गतिविधि से बच्चा परिचित होता रहता है। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने तो चक्रव्यूह तोड़ने का भेद माँ के कोख में ही जान लिया था। इस का तात्पर्य ये है कि बच्चा माँ की कोख में सुनता और समझता है। पर क्या ये बात स्वीकारने योग्य है की कोई माँ अपने बच्चे को गलत शिक्षा दे कर उसे अपराधी बनने में सहयोग देती है। फिर ये बाल अपराधी कैसे जन्म ले लेते हैं ? कोई भी माँ या उस के दिए संस्कार कभी भी किसी बालक को गलत राह की ओर नहीं भेज सकते। फिर क्यों बालक गलत राह पर चल कर बाल अपराधी बन जाता है ?
ये सब निर्भर करता है आस पास की परिस्थिति पर और साथ के संगी साथियों पर। कोई कैसे लोगो के बीच रह रहा है और किस तरह की सोच के बीच पनप रहा है ये उसका भविष्य निर्धारित करती है। बाल अपराधी कोख से जन्म नहीं लेता उसे परिस्थितियां बाल अपराधी बनाती हैं। ये माता पिता का फर्ज होता है की अपने बालक के आस पास की जानकारी रख उनके आचरण पर ध्यान दे ताकि वह अपराध की ओर न जा सकें। आज माता पिता अपनी ही दुनिया में इतने व्यस्त हैं। किसी को तो ये भी पता नहीं कि उनका बच्चा कहाँ जा रहा है कहाँ से आ रहा है और क्या कर रहा है ? उनका काम सिर्फ धन से उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है ,और वह समझते है की ये वह अच्छे से कर रहें है। जबकि किसी भी बालक के लिए धन से ज्यादा जरूरी अभिभावक की चौकस दृष्टिकोण होता है। यही उसे सही और गलत मार्ग का अहसास कराता है। एक वाकये का जिक्र करना चाहती हूँ कि एक बार मैंने अपनी बच्चे के प्रधानाध्यापक से यह कहा की मेरा बच्चा मुझे एक अच्छी माँ नहीं समझता। उनका जवाब था की आप एक आप एक अच्छी माँ इस लिए नहीं बन पा रही क्योंकि आप सरोकार रखने और चिंता करने वाली माओं में से हैं। यदि आप उसकी गतिविधियों पर ध्यान देना छोड़ दें और उसे सही गलत कैसे भी जीने दें तो यकीनन आप एक अच्छी माँ साबित होंगी। जो कि आज का हर बच्चा चाहता है।जिस आयु में एक बच्चा बाल अपराधी बनता है उस आयु में उनके खुद के सोचने समझने की शक्ति इतनी सुदृढ़ नहीं होती। उसमे मजबूत संकल्प लेने की क्षमता का विकास और दृढ़निश्चयी बनाने का कार्य हम अभिभावक ही कर सकते है। सशक्त निर्णयों के साथ उसे आगे बढ़ाते रहना अभिभावक की पूर्ण जिम्मेदारी है। परिस्थितियां का निर्माण हम नहीं करते परन्तु उसमे जीवन को ढालने के लिए अपने बच्चो के आगे चलना , हर अभिभावक का फर्ज होता है। आज कल तो यदा कदा यही देखने को मिलता है कि संतान को पैदा करने के बाद माता पिता अपनी जिमेदारी से मुक्त होकर उसे पलने और बढ़ने के लिए एक तरह से सड़क पर ही छोड़ देते हैं। कि जैसा भी माहौल बाहर मिले उसी से सीखो और बढ़ो। इसी का खमियाजा भुगत कर एक छोटा बालक अपराध की ओर जाता है जबकि शायद उसे ये भी पता नहीं होता अपराध करने और उसके अंजाम का उस पर क्या प्रभाव होगा। बच्चों को जन्म देने से ज्यादा कठिन उसे सही मार्ग का अनुसरण करवाना है। यदि हम अभिभावक एक सही सोच और समझ के साथ अपने बच्चो प्रति जागरूक रहें तो ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी। और हम एक स्वस्थ भविष्य के निर्माण में सहयोग दे सकेंगे।
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