भौतिकता तले दबा करीब रहने का सुख…………!
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आज मानव का जीवन अनेक भौतिक वस्तुओं से घिरा रहता है। और उसने उसी में अपना संसार, अपनी खुशियां, अपना वक्त तलाशना शुरू कर दिया है। इन वस्तुओं से घिरे रहने के कारण उसने अपने करीबी रिश्तों की भी अनदेखी शुरू कर दी है। एक समय ऐसा भी था जब इन भौतिक वस्तुओं की नामौजूदगी में पूरा परिवार एक साथ उठता बैठता था , दुःख सुख साथ मिल कर जी लेता था और एक दूसरे के जीवन के हर पहलु से वाकिफ होता था। जबकि उस समय भी संपर्क बनाये रखने के लिए चिट्ठी पत्री  ,टेलीग्राम जैसी सुविधाएँ मौजूद थी। पर आज देखें तों सब कुछ बदल गया है। टी वी ,कम्प्यूटर , लैपटॉप , स्मार्ट फ़ोन  ,मोबाइल, अनेकों तरह के ऍप्स जैसी अनेकों वस्तुओं ने हर रिश्ते की परिभाषा बदल कर रख दी है। अभी कुछ दिनों पहले ही समाचार पत्र में यह पढ़  कर हैरानी नहीं हुई की एक पति ने पत्नी से इस लिए तलाक माँगा की पत्नी दिन भर स्मार्ट फ़ोन से ही चिपकी रहती है और रोजमर्रा के काम भी उसे याद नहीं रहते , या करने का समय नहीं निकाल पाती। इस का अर्थ ये है की इन भौतिक वस्तुओं का महत्व अपने निकटतम रिश्तों से भी ज्यादा हो गया है। यही लगातार भोगते रहने की प्रक्रिया ने हर क्षण वस्तुओं को बासी भी बनाना शुरू कर दिया है। इसी लिए हर पल कुछ नया करने या पाने की चाह में हम इनसे चिपके रहते है।या फिर उन्हें छोड़ कर कुछ और नया तलाशना शुरू कर देते है। जबकि जो सबसे ज्यादा जरूरी है वह हमारे पास होकर भी हमें जरूरी नहीं लगता। यही सही मायनों में वह भयावह  भावनात्मक खालीपन है जिससे आज का हर स्त्री पुरुष ग्रसित है। वह जुड़ाव या बन्धन जो दो लोगों को रिश्ते में बांधे रहता है इन भौतिक वस्तुओं के बीच में आ जाने के कारण कमजोर पड़ रहा है। समय देने और लेने की प्रक्रिया में कमी आना इस ओर पहला संकेत है की भौतिकता के असर ने व्यक्ति को अंदर से पूरी तरह खोखला कर दिया है। यही खोखलापन भरने की कोशिश में व्यक्ति बाहर निकलता है और किसी अन्य के संपर्क में आकर अवैधानिक रिश्तों के  जाल में उलझ जाता है। जो न तो परिवार को न ही समाज को स्वीकार होता है। जिन रिश्तों को खुद समाज हमारे लिए बनाता है इनके प्रति असंवेदशीलता का ही परिणाम है ये अवैधानिक रिश्ते।  
                 इस सन्दर्भ में देखें कि हर रिश्ता इस नई ईजाद का रोना रो रहा है। जब सभी इस भौतिकता के जाल में उलझे रहेंगे तो उन्हें रिश्तों के साथ खुल कर उड़ने का मौका कहाँ मिलेगा। रिश्तों की मजबूती भी दिनों दिन क्षीण पड़ती जा रही है।इसका लाभ बाहर का हर वह व्यक्ति उठा लेता है जो आप को कमजोर करना चाहता है।  आपकी ताकत आपके परिवार समाज या उन अपनों में छिपी होती है जो आप के अनजानेपन को अपने  अनुभव और ज्ञान से भरते हैं। भौतिक वस्तुओं के भराव  के कारण हमारे मन का वह खालीपन जहाँ हमारे रिश्तों  के लिए प्रेम की मात्रा  घटती बढ़ती है  अधिकृत हो जाती है और उस तरफ से हम असंवेदनहीन हो जाते है। अर्थात रिश्तों के उतार चढ़ाव  को सँभालने  के लिए हमारे पास वक्त  ही नहीं बचता। जिनसे दूर है उनसे से जुड़ा रहने की चाह है पर जो  करीब हैं उनसे मिलने का भी वक्त नहीं निकल पाते।  पुस्तकें ,मार्गदर्शक साहित्य ,बड़े  बुजुर्गों की राय  , माता पिता का निर्देश ये सब आजकल बेमानी सा हो गया है क्योंकि समय की कमी ने इन सब से दुरी बना दी है। करीब रहने के क्या- क्या लाभ है ये विस्तार से बताने की जरूरत नहीं फिर भी ये तो समझना जरूरी  है कि जीवन की कई बाधाएं सिर्फ करीब रहने भर से पार हो जाती है। खुश रहने के लिए भी जरूरी है कि अपनों से जुड़ें और ख़ुशी ले कर उन्हें बदले में ख़ुशी दें। हर रिश्ते की मांग समय है जो कम या ज्यादा भले ही हो जाए पर ख़त्म नहीं होना चाहिए। भौतिकता के जाल में उलझ कर हमने हो सकता है कि ज्ञान बढ़ाया हो पर उस ज्ञान से  कितने समृद्ध हुएं है ये कहना मुश्किल है। क्योंकि समृद्ध तो आप तभी कहें जाएंगे जब हमारे आस पास सभी रिश्ते एक साथ, हमारे लिए खड़े हों। पर जब आप ही समय की कमी का रोना रो रहें हो , तो दूसरों से क्यों और कैसी उम्मीद। इस लिए इन भौतिक वस्तुओं का मोह कम कर, उनसे समय चुरा कर अपने रिश्तों को और मजबूत बनाने का प्रयास करें  यही दुःख -सुख में काम आते है आप का तथाकथित स्मार्ट फ़ोन नहीं ...................! 
                           

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