कभी न भरने वाला रिसता घाव  ……!


                       
सही कहा गया है कि जब भी कभी किसी दूसरे के लिए बुरा सोचेगा या गड्ढा खोदेगा उसका परिणाम उसे ही भुगतना पड़ेगा।  ये कहावत पाकिस्तान पर सच साबित होती रही है और कल इस कहावत ने न जाने कितने घर उजाड़ दिए। खैबरपरबतुयान प्रान्त में पेशावर के एक आर्मी स्कूल में तहरीके तालिबानी संगठन के 7 से 8 आतंकियों ने गोली बारी कर के मलाला को नोबेल दिए जाने का बदला ले लिया। और ये साबित कर दिया की शायद अब ईश्वर या अल्लाह ने अच्छा बुरा देखना बंद कर दिया है।  क्योंकि अब उसके बन्दे खुद अपने भाग्य का फैसला लेने लगे हैं। 1100 बच्चों से भरे पूरे विद्यालय में 146  बच्चो को मृत और 134 बच्चों को घायल कर दिया गया। इस के अलावा 9 स्कूली कर्मचारियों को भी गोली से या जला कर मार डाला गया। पेशावर में इमरान खान की  पार्टी  तहरीके इंसाफ की सरकार है और सूत्रों के अनुसार उन्हें एक गुमनाम पत्र के जरिये ऐसे ही किसी हमले की जानकारी भी मिल भी चुकी थी पर उन्होंने इसे हलके से लिया। नतीजा सामने हैं। मलाला को जब नोबेल दिया गया तो सभी जगह जश्न का माहौल था। युवा शांति पुरस्कार से नवाजी गयी एक 17 वर्षीय पाकिस्तानी  लड़की जो सभी लड़कियों के जीने ,पढ़ने  ,खेलने, कूदने, और बढ़ने  की पक्षधर है। उसने इन तालिबानियों को जीने का अटूट हौसला दिखाते हुए हमेशा इस ओर कार्य करते रहने का संकल्प लिया। 9 अक्टूबर 2012 को मलाला को इन्ही तालिबानियों ने स्कूल जाते समय सर पर गोली मारी थी। स्थिति बिगड़ने पर उसे लंदन ले जाय गया जहाँ के इलाज से उसकी जान बची।  और आज मलाला ब्रिटेन के बर्किंघम में रहके अपने अभियान को आगे बढ़ाये हुए हैं।   
                                                   

इस घटना ने  पाकिस्तान को एक बहुत बड़ा सबक दिया है वह ये की उसे पहले अपना घर साफ़ करना  होगा। उसने हमेशा दूसरे के फटे में टांग अड़ाने की कोशिश की है।  जिस का पुरजोर विरोध भी होता रहा है।  पर अनसुना कर के वह अपनी गलत नीतियों पर कायम रहा। आज जब उसकी सैकड़ों माएं चीख रही हैं और अपनी खता का हिसाब मांग रही है तब क्या पाकिस्तान उन्हें उनकी गलतियां बता सकता है। समाज हम से ही बनता है और हम ही है जो उसे बेहतर बना सकते है।  न जाने क्यों पाकिस्तान ने ये कभी भी नहीं सोचा। हमेशा ही उसने उन लोगो को करीब रखा जो तन और मन दोनों से ही विध्वंस के हिमायती थे। मलाला को मिलने वाला शांति पुरस्कार उस समय बेमानी हो जाता है जब इस तरह की अशांति फैलाई जाती है। आज वह सभी माएं सुबह से ही शुरू होने वाली भागदौड़ , बच्चो को तैयार करना ,टिफिन बनाना ,स्कूल छोड़ने जाना आदि को याद कर के आंसू बहा रही होंगी। क्योंकि अब इस सुख से उन्हें हमेशा के लिए अलग कर दिया गया है। अब उन्हें अम्मी कह कर पुकारने वाला कभी वापस नहीं आएगा।  मैं भी एक माँ हूँ।  सोच कर कलेजा दहल जाता है। आज उन तमाम माओं का दर्द अपने सीने में होता नजर आ रहा हैं। खून से लथपथ अपने लाडले का शरीर किस माँ को पागल नहीं कर देगा। क्या जिन लोगो ऐसा किया उनकी माओं ने उनके प्रति ऐसा प्यार कभी नहीं दिखाया होगा। क्या उन्हें माँ बच्चे के रिश्ते का अहसाह नहीं हैं। अगर दुश्मनी राजनितिक है तो उसके लिए राजनेताओं को ही चुना जाना चाहिए। क्योंकि आम जनता को खुला छोड़ कर बुलेटप्रूफ गाड़ियों में घूमने वाले ये नेता अपने नापाक निर्णयों के लिए जनता को बलि चढ़ा देते हैं। और इसके एवज में उनके पास सिर्फ सांत्वना ही होती है जो दो शब्दों में खत्म हो जाती हैं। पाकिस्तान की सरकार में बैठे नुमाइंदे भी सिर्फ अपने राजनीतिक मनसूबे पूरे करने के लिए उस हर कार्य को अंजाम देते है जो उनके खुद के देश के लिए घातक साबित होता है। इसे जब तक सोचा नहीं जाएगा तब तक बदल नहीं पायेगा।  जरूरी है कि पाकिस्तान इस घटना से सबक ले कर एक नए सिरे से सरकार की बेहतर नीतियों के साथ एक नयी शुरुआत की ओर कदम बढ़ाये और पडोसी देशों से संबध अच्छे कर के उनके साथ का भी लाभ उठाये। बुरा जो देखें मैं चला बुरा न मिल्या कोई , जो मन देखो आपनों मुझसे बुरा न कोई . ……………संत कबीर की ये वाणी का सार पाकिस्तान के सुधरने के लिए काफी है। यदि वह सुधरना चाहे तो !

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