सुरक्षा और आजादी पर प्रश्नचिन्ह……!

क्या आपको नहीं लगता की कुछ मुद्दों पर अक्सर चर्चा करते हैं फिर भी उन में सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती और वह ज्यों के त्यों बने हुए  है। बने इस लिए हुए है की हम या हमारी सरकार उन के प्रति कोई ठोस कदम उठाने के लिए एक ऐसी लम्बी प्रक्रिया से गुजरती है कि उस मुद्दे की असल अहमियत ही ख़त्म हो जाती है।  और समय के साथ भरते घाव की तरह भावहीन होकर वह भी कही खो सा जाता है। मुद्दा है राह चलती युवतिओं के बलात्कार का.......…ऐसा ही कुछ आज  के समाचारपत्र में पढ़ने को मिला जिसमें शाम को दफ्तर के बाद  टैक्सी में बैठी एक युवती से टैक्सी चालक ने बलात्त्कर किया। दिल्ली में घटी इस घटना का दोषी ड्राइवर मथुरा उत्तर प्रदेश का रहने वाला है और दिल्ली में बिना वैद्य लाइसेंस के टैक्सी चला रहा था।  जिसे आज तक पुलिस जांच नहीं पाई थी। शिव कुमार यादव नाम के इस शख्स के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात है वह ये की यह 2011 में भी बलात्कार के मामले में जेल जा चुका है और सिर्फ 7 माह की मामूली कैद में रह के जेल से बाहर आ गया। फ़र्ज़ी नाम और पहचान के जरिये पहले भी ये इस तरह के घृणित कामों में लिप्त रह चुका है। अब राजनितिक पार्टियों को नारे लगाने और विपक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलने का एक मुद्दा मिल गया। जिस में पीड़ित के प्रति सहानुभूति बिलकुल नहीं होगी।  गर्म तवे पर सभी अपनी रोटियां सेकते नजर आ जायेंगे। पर जब यही मुद्दा संसद में उठाया जाता है तब क्यों नहीं सब एक होकर अपनी माँ बहनों के प्रति अपना concern दिखाते नजर आते हैं। 
             प्रश्न ये नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ ....  इस का कारण  हम सभी जानते हैं। प्रश्न ये है कि लगातार हो रही ऐसी घटनाओं के प्रति कोई ठोस कदम उठा कर इन्हे कम क्यों नहीं किया जा सकता। पूर्व में किये काण्ड के बाद सिर्फ 7 माह में  जेल से निकल जाने में हमारे सिस्टम की ही गलती है जिस से एक नयी घटना की तैयारी  हो गयी।  पहले भी इस तरह की चर्चा में मैंने एक अनोखा  किन्तु अचूक उपाए सुझाया था। कि जो भी शख्श इस तरह की घटना का दोषी हो उसे संवेदनहीन  दवाओं से इस तरह का बना दिया जाए कि आजीवन वह इस तरह के आवेग से रूबरू न हो पाये। 5 ,7 माह की जेल का क्या नतीजा निकला....... विकृत  भावनाओं के  फिर जोर मारने पर उसने  वही काम किया। कम से कम इस तरह समाज में गन्दी सोच रखने वालों की कमी तो आएगी।  युवती जीवन भर इस बलात्कार का क्षण सोच कर इस का दंश भोगती है तो दोषी को भी इस का पश्चाताप होना चाहिए न की घटना को सोच कर आनंद। सुन कर अच्छा नहीं लगा होगा पर यथार्थ यही है कि पुरुष इस घटना को सोच कर आनंदित होता है जबकि स्त्री शर्मिंदगी से तिल तिल मरती है ……। यही सत्य है जिसे हम स्वयं ही बदल सकते हैं एक होकर इसके लिए आवाज उठा कर। IPS officer किरण बेदी जी ने फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिये death penalty देने का यह अनुकरणीय मामला बताया है। जिस से ये साबित होगा कि इस तरह की घटना में ढील दिए जाने की कोई सम्भावना नहीं है और फैसला भी तुरत फुरत.... मांगे तो सामने रखी ही जाती रही है पर संसद में बैठे हुए हमारे ही नुमाइंदों को एक दूसरे पर कीचड़ उछलने से फुरसत मिले तो वह कुछ कारगर कर सके। उनके लिये तो साध्वी निरंजन ज्योति के आपत्तिजनक बयान पर निंदा प्रस्ताव निकाल कर संसद को बर्खास्त करना ज्यादा जरूरी है। जब की बलात्कार का ये मुद्दा उनकी पार्टी की छवि उज्जवल करने के हिसाब से नाकाफी है। महिलाओं की दिन पर दिन बदतर होती इस स्थिति पर शर्म आती है क्योंकि कोई भी सरकार बने या जाए ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला जो कुछ अच्छा  ले कर आये।  जब कानून बम्बई बम धमाकों के आरोपी अफजल को वीआईपी सुविधाएँ दे कर जिन्दा रख सकता  है तो आगे कुछ भी कहने के लिए नहीं बचा है। जिस से बेहतरी की उम्मीद की जाए।     

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