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"welcome to home"
कुछ दिन तो गुजारिये गाँव में…
आप भी बदलाव चाहते हैं। सब कुछ अच्छा और व्यवस्थित। चाहते हैं कि देश में सुधार का वातावरण बने और सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों से हर व्यक्ति का भला हो। एक बार फिर रामराज्य जैसी कल्पना हम सभी के मानस पटल पर अंकित है। अव्यवस्था ने आज जिस तरह भारत को जकड़ रखा है उससे सब मुक्ति चाहते हैं। सुख ,शांति, सुकून, निश्चिन्तिता ,सुरक्षा ,और खुलापन ये आज बेहतर जीवन जीने की मांग बन चुका है। पर प्रश्न ये है की क्या ये सब आप के पास है ? अब ये सोचें कि नहीं है तो क्यों ? क्या इस के लिए दिल्ली में बैठी सरकार जिम्मेदार है ? क्या उसके पास कोई जादू की छड़ी है जो वह घुमा कर पूरे देश का नक्शा बदल सकती है ? क्या इस विकास के कार्य में हमारा कोई योगदान नहीं होना चाहिए ? ये कुछ मौलिक प्रश्न जो आप के समक्ष खडें हो सकते है जब भी आप अव्यवस्था की बात करेंगे। क्या आप के बिना चाहे कोई आप को बदल सकता है ? नहीं , और ये शाश्वत सत्य है। जब तक आप खुद ही किसी प्रयास की ओर कदम नहीं बढ़ाएंगे तब तक कोई नयी क्रांति नहीं आने वाली है।
उदाहरण आप के सामने है …………राजस्थान के पाली जिले के पास का एक गाँव चाणोद जिस की आबादी करीब 6000 है आज विकास की नई उचाइयां छू कर आदर्श गाँव की श्रेणी में खड़ा हो चुका है। और कमाल तो ये कि ये गांव न तो सांसद आदर्श योजना में सम्मिलित है न ही इसे किसी भी प्रकार की सरकारी मदद मिल रही है। 4 वर्ष पहले गांव के ही सदस्यों ने अपने गांव को हर सुख सुविध से लैस करने का बीड़ा उठाया। और आज गांव में प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा संचालित सरकारी स्कूल , उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधा सहित अस्पताल और हाईटेक कम्प्यूटर केंद्र जैसी सुविधाएँ मौजूद हैं। करीब 4 करोड़ की लागत से बना एयरकंडीशंड 75 बिस्तरों वाले अस्पताल में ICU ,अत्याधुनिक OT , और उच्चस्तरीय चिकित्सा के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये दूसरे शहर के डॉक्टर से परामर्श की भी सुविधा उपलब्ध है। अस्पताल के स्टाफ के लिए भी बेहतर क्वाटर्स के इन्तेजाम किये गये हैं। साथ ही गांव के हर हिस्से में खूबसूरत जोधपुरी पत्थरों की नक्काशी के बुर्ज पूरे गाँव की शोभा बढ़ाते हैं। दूसरा उदहारण देखें .......कभी गन्दगी और अव्यवस्था के बीच रहने वाला गुजरात का एक गांव मालपुर अब आर्ट गैलरी के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। 7000 की आबादी वाले इस गाँव में लोगों ने सौंदर्यीकरण की तहत एक प्रयास प्राम्भ किया। गॉवों की पहचान और प्रकृति को बनाये रखने के लिए ये कदम उठाया गया। आज उस गॉव की हर दीवार बोलती है। सुन्दर चित्रकारी और बेलबूटों से हर दिवार इस तरह सजी है की लगभग 1 से 2 किलोमीटर का रास्ता गावों के प्रति लोगों का आकर्षण फिर से लौटा रहा है। लाखों सैलानी गुजरात घूमने आने पर इस गाँव को देखने जरूर आते हैं। रंगीनियत से सजे इस गाँव की पहचान अब उसकी कलाकारी बन चुकी है।
इन दो उदाहरणों का जिक्र इस लिए किया की बिना किसी की मदद के ये बदले क्योंकि इन्होने खुद बदलने की पहल की।आप जिस भी देश में रहते है वही आप की कर्मभूमि हैं पहले ये समझना होगा। अतः जब तक हिंदुस्तान का हर व्यक्ति बेहतर बदलाव के लिए तैयार नहीं होगा कुछ भी कही भी नहीं बदलेगा। सरकार के प्रति मोहताजी , और हर अव्यवस्था के लिए सरकार को दोषी ठहराने की बयानबाजी बंद करें। आप चलते हुए पान की पीक यहाँ वहां थूक देते है, क्या उसे सरकार साफ़ करने आएगी ? वह गन्दगी आप के ही शहर की है और उस का सामना भी रोजाना आपको ही करना है । हम स्वयं ही जिम्मेदार है अपनी लगातार गिरती हुई स्थिति के। क्योंकि हमें आदत हो गयी है अपनी गलतियों का ठीकरा किसी दूसरे के सर फोड़ कर खुद बरी होने की । अच्छा सिर्फ चाहने से कैसे मिलेगा उसके लिए एकाकी प्रयास आवश्यक है। हर एक को ये सोचना पड़ेगा की नए के लिए बदलाव मुझसे ही प्रारम्भ होगा। और इस के लिए मुझे सब को साथ लाना होगा। जिस दिन ये सोच पनप गयी समझो उद्धार हो गया भारत देश का………………आमीन !
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