जीवन के हिसाब -किताब का गणित  ……! 

आज एक चीज जो सब को सही तरीके से करना और रखना आता है वह है हिसाब रखना। क्या करना- कितना करना , कितना देना- कितना लेना,कब करना ,कैसे करना और किस मात्रा में करना ये सब हिसाब से चलते  हुए आगे बढ़ रहें है। इस अर्थ प्रधान युग में हिसाब किताब मानव की पहली आवश्यकता बन गयी है। इसी हिसाब की बदौलत दुनिया के सारे काम सही अनुपात में हो कर चल रहे हैं। हर व्यक्ति किसी काम को करने से पहले उसके सफल होने या असफल होने का हिसाब लगा कर ही आगे बढ़ता हैं। वैसे इसी हिसाब के कारण  बहुत से काम ,रिश्ते और जिंदगियां बिगड़ भी जाती हैं। ये हिसाब जीवन में इस कदर घुस चुका है कि  हम रिश्तों को भी इसी हिसाब के तराजू पर तौलने लगे हैं। हानि और लाभ का गणित निरंतर हिसाब किताब की प्रवृति  को बढ़ावा देता रहता है। हर व्यक्ति सिर्फ लाभ को ही आधार मान कर ऐसा गणित बैठाता है कि किये जा रहे कार्य का फल अच्छा ही हो। पर जब दो लोगों का गणित आपस में टकराता है वहीं हानि की गुंजाईश पनपने लगती है। जीवन भी एक गणित के ही सामान है। जिस में जोड़- घटाना ,गुणा- भाग सभी शामिल है। व्यक्ति का कार्य ,उसके रिश्ते, उसका समाज ,उसका व्यक्तित्व सब कुछ अनुपात के हिसाब पर निर्भर है। उसे सभी के बीच एक सही अनुपात का संतुलन बना कर चलना पड़ता है।  जिस से लाभ और सफलता का गणित काम करता रहे। जहाँ भी इस अनुपात में असंतुलन पैदा हुआ वही सब हिसाब गड़बड़ हो जाता है और काम या रिश्ते बिगड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं।
              अब जो सोचने की असल बात है वह ये की हिसाब किताब के आदी हो कर भी क्या कभी हम ने कुछ ऐसा प्रण किया है कि व्यक्तित्व की अच्छाइयों और बुराइयों का हिसाब लगाया जाए।  जिस से जीवन की दूसरी तमाम तकलीफों से दूर रहने के साथ हम एक अच्छे इंसान होने का भी गणित सही साबित कर सकें। बहुत सी ऐसी बातें है जो जीवन में निरर्थक है जिनकी कोई भी जरूरत नहीं है।  फिर भी वह हमारे जीवन का हिस्सा बनी हुई है। थोड़ा सजग होकर  इस बात का हिसाब लगाये और निरर्थक को पीछें धकेल कर सार्थक के साथ आगे बढ़ें जिस से आप में एक अच्छे मानव होने के गुणों को देखा जा सके। अक्सर ये देखा जाता है कि जिन बातों का जीवन में न्यूनतम महत्व होता है उन्हें हम जरूरत से ज्यादा महत्व दे कर, उन की अवहेलना कर देते है जो वाकई महत्वपूर्ण होती हैं। यही से अशांति की शुआत होती है। क्योंकि अवहेलना के परिणाम स्वतः ही जीवन के अन्य मुद्दों को प्रभावित करने लगते हैं। सब से पहले व्यक्ति को इस बात का हिसाब रखना चाहिए कि उस के जीवन की प्राथमिकताएं क्या है। जिन के आधार पर उसके खर्चे ,समय संतुलन और कार्य करने का तरीका निर्धारित होता है। इस निर्धारण से जीवन की गाड़ी एक निश्चित धुरी पर चलने लगती है। जिस से अनावश्यक बातें अपने आप ही दरकिनार हो जाती है। और जीवन को एक सही दिशा और दशा मिल जाती है। 

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