सम्पूर्णता और शिद्दत की आवश्यकता …………!
क्या कभी कुछ बहुत ही अच्छा देख कर आप को ऐसा नहीं लगा की काश ऐसे ही सब कुछ चलता रहे तो कितना अच्छा हो …… अभी कल ही टेलीविज़न पर एक महिला डी.एम , बी. चन्द्रकला के साहस की वृतांत सुना । आंध्र प्रदेश की रहने वाली ये आई. ए. एस अधिकारी शायद अपनी ड्यूटी का अर्थ सही मायनों में समझती होगी और खुद को जनता के प्रति जवाबदेह मान कर उनके हित के लिए काम करने का दम रखती है। कल जब वह निरिक्षण पर निकली तो अनेकों जगह ख़राब material का प्रयोग होते देखा। जो कि नगर निगम अधिकारी के भाई भतीजे की ही फैक्ट्री से अाया था। उन्होंने प्रयुक्त माल की जाांच के दौरान पाया कि सभी की क्वालिटी इस हद तक गिरी हुई थी की कुछ ही माह तो क्या कुछ ही दिनों में वह टूट फूट कर ख़त्म हो जायेंगे। जिस पर उन्होंने सरे आम भीड़ के ही बीच जिम्मेदार अधिकारीयों को बुरी तरह लताड़ना शुरू कर दिया। अधिकारीयों की स्थिति ऐसी थी की उनसे कुछ सफाई देते भी नहीं बन रहा था। उन्होंने सीधे सबके खिलाफ F.I.R. दर्ज कराने हुक्म सुना दिया। और श्रम दान के रूप में एक नया कार्य करने के लिए ठेकेदार को पाबंद कर किया। उन्हें याद भी दिलाया कि ये जनता का धन है और जनता के धन को खाने और जालसाजी करने के लिए उन्हें शर्म आनी चाहिए । इस तरह एक सरकारी अधिकारी का रौद्र रूप देखना बहुत ही अच्छा लगा। जिस ने सही मायनों में अपने कार्य के प्रति निष्ठा दिखाई।
काश सभी ऐसे बन जाए तो संभवतः देश की स्थिति 70 % सुधर जाए। काश सभी अधिकारी इसी तरह आवश्यक रौद्र रूप में नजर आयें। ऐसा कब होगा ये सोचने का विषय है ? पर शायद हम सभी इस इन्तजार में है की ऐसा हो और हमें हमारे टैक्स की पूरी कीमत वापस मिले साथ ही अधिकारीयों का सकारात्मक रवैया भी नजर आये। आज की बदहाल होती स्थिति के लिये अगर कुछ जिम्मेदार है तो वह है अपने कार्य के प्रति सम्पूर्णता से समर्पण का ना होना। एक बार नौकरी में घुसने के बाद सभी अपने काम को एक धंधे के तौर पर प्रयोग करने लगते हैं। फिर वह नौकरी नहीं व्यवसाय बन जाती है जिस के जरिये प्रचुर कमाई रास्ता खुल जाता है। यदि कार्य में निष्ठा न रही तो फिर उस से जुड़े तमाम लोगों की समस्याओं का निवारण कैसे होगा ? बी. चन्द्रकला एक उदाहरण के रूप में सामने आई हैं जिसका हर सरकारी कर्मचारी को अनुसरण करना चाहिए। मानते है की पैसा जिंदगी के लिए जरूरी है पर यही पैसा बेकार साबित होने लगता है जब खर्च के बाद भी जिंदगी को बचा पाने में असमर्थ रहता है। जीवन के लिए अंतहीन पैसा कमा भी लोगे तो भी जीवन के साल नहीं बदलने वाले। ईश्वर ने जितने भी दिन जीवन के लिख कर दिए है उतने ही जी पाओगे। इस लिए जो सबसे जरूरी है वह है अपने कार्य के प्रति समर्पण.......जरूरी नहीं की ये समर्पण सिर्फ नौकरी के लिए ही आवश्यक है। आप का अपनों के प्रति प्रेम ,आप की शिक्षा, आप का किसी कार्य से जुड़ने की चाहत सभी में लगन और समर्पण की जरूरत है। यहाँ तक कि ये सोचें की यदि माँ शिद्दत से मन लगा कर खाना न पकाये तो वह स्वाद कहाँ से आएगा जिसके आप दीवाने हैं।
एक छोटे से उदाहरण से इसे समझिए , आप ने टेलीविज़न पर अनेकों डांस प्रोग्राम देखे होंगे। अनेकों प्रतिभागी भाग लेने आते हैं। पर जीतता कौन है वह जिस में अपने नृत्य को शिद्दत से जी लेने की क्षमता होती है। नृत्य करना सिर्फ हाथ पैर हिलाने का कार्य नहीं बल्कि जब कलाकार अपने हाव -भाव ,अंग प्रत्यंग,मुद्राओं और उत्तेजना के साथ नृत्य को अंजाम देता है तभी उसका नृत्य सम्पूर्ण माना जाता है। जब भी मन से नृत्य होगा तभी उसमे सही जान आ पायेगी अन्यथा वह तो सिर्फ हाथ पैर हिलाने की एक प्रक्रिया भर है। इसी शिद्दत को जीवन में उतार लेना ही सही मायनों में सफल होना होता है। कितना पैसा कमा लिया और आगे कितना कमाओगे ये अगर मायने रखता तो आज सभी इस हद तक सुखी होते कि उन्हें कभी भी किसी कंधे की जरूरत नहीं पड़ती। अतः आवश्यक है कि बी. चन्द्रकला की तरह अपने काम से दिल से जुड़ने का प्रयास करें। देखें, घर जा कर थोड़ी सी संतुष्टि का अनुभव जरूर होगा।
क्या कभी कुछ बहुत ही अच्छा देख कर आप को ऐसा नहीं लगा की काश ऐसे ही सब कुछ चलता रहे तो कितना अच्छा हो …… अभी कल ही टेलीविज़न पर एक महिला डी.एम , बी. चन्द्रकला के साहस की वृतांत सुना । आंध्र प्रदेश की रहने वाली ये आई. ए. एस अधिकारी शायद अपनी ड्यूटी का अर्थ सही मायनों में समझती होगी और खुद को जनता के प्रति जवाबदेह मान कर उनके हित के लिए काम करने का दम रखती है। कल जब वह निरिक्षण पर निकली तो अनेकों जगह ख़राब material का प्रयोग होते देखा। जो कि नगर निगम अधिकारी के भाई भतीजे की ही फैक्ट्री से अाया था। उन्होंने प्रयुक्त माल की जाांच के दौरान पाया कि सभी की क्वालिटी इस हद तक गिरी हुई थी की कुछ ही माह तो क्या कुछ ही दिनों में वह टूट फूट कर ख़त्म हो जायेंगे। जिस पर उन्होंने सरे आम भीड़ के ही बीच जिम्मेदार अधिकारीयों को बुरी तरह लताड़ना शुरू कर दिया। अधिकारीयों की स्थिति ऐसी थी की उनसे कुछ सफाई देते भी नहीं बन रहा था। उन्होंने सीधे सबके खिलाफ F.I.R. दर्ज कराने हुक्म सुना दिया। और श्रम दान के रूप में एक नया कार्य करने के लिए ठेकेदार को पाबंद कर किया। उन्हें याद भी दिलाया कि ये जनता का धन है और जनता के धन को खाने और जालसाजी करने के लिए उन्हें शर्म आनी चाहिए । इस तरह एक सरकारी अधिकारी का रौद्र रूप देखना बहुत ही अच्छा लगा। जिस ने सही मायनों में अपने कार्य के प्रति निष्ठा दिखाई।
काश सभी ऐसे बन जाए तो संभवतः देश की स्थिति 70 % सुधर जाए। काश सभी अधिकारी इसी तरह आवश्यक रौद्र रूप में नजर आयें। ऐसा कब होगा ये सोचने का विषय है ? पर शायद हम सभी इस इन्तजार में है की ऐसा हो और हमें हमारे टैक्स की पूरी कीमत वापस मिले साथ ही अधिकारीयों का सकारात्मक रवैया भी नजर आये। आज की बदहाल होती स्थिति के लिये अगर कुछ जिम्मेदार है तो वह है अपने कार्य के प्रति सम्पूर्णता से समर्पण का ना होना। एक बार नौकरी में घुसने के बाद सभी अपने काम को एक धंधे के तौर पर प्रयोग करने लगते हैं। फिर वह नौकरी नहीं व्यवसाय बन जाती है जिस के जरिये प्रचुर कमाई रास्ता खुल जाता है। यदि कार्य में निष्ठा न रही तो फिर उस से जुड़े तमाम लोगों की समस्याओं का निवारण कैसे होगा ? बी. चन्द्रकला एक उदाहरण के रूप में सामने आई हैं जिसका हर सरकारी कर्मचारी को अनुसरण करना चाहिए। मानते है की पैसा जिंदगी के लिए जरूरी है पर यही पैसा बेकार साबित होने लगता है जब खर्च के बाद भी जिंदगी को बचा पाने में असमर्थ रहता है। जीवन के लिए अंतहीन पैसा कमा भी लोगे तो भी जीवन के साल नहीं बदलने वाले। ईश्वर ने जितने भी दिन जीवन के लिख कर दिए है उतने ही जी पाओगे। इस लिए जो सबसे जरूरी है वह है अपने कार्य के प्रति समर्पण.......जरूरी नहीं की ये समर्पण सिर्फ नौकरी के लिए ही आवश्यक है। आप का अपनों के प्रति प्रेम ,आप की शिक्षा, आप का किसी कार्य से जुड़ने की चाहत सभी में लगन और समर्पण की जरूरत है। यहाँ तक कि ये सोचें की यदि माँ शिद्दत से मन लगा कर खाना न पकाये तो वह स्वाद कहाँ से आएगा जिसके आप दीवाने हैं।
एक छोटे से उदाहरण से इसे समझिए , आप ने टेलीविज़न पर अनेकों डांस प्रोग्राम देखे होंगे। अनेकों प्रतिभागी भाग लेने आते हैं। पर जीतता कौन है वह जिस में अपने नृत्य को शिद्दत से जी लेने की क्षमता होती है। नृत्य करना सिर्फ हाथ पैर हिलाने का कार्य नहीं बल्कि जब कलाकार अपने हाव -भाव ,अंग प्रत्यंग,मुद्राओं और उत्तेजना के साथ नृत्य को अंजाम देता है तभी उसका नृत्य सम्पूर्ण माना जाता है। जब भी मन से नृत्य होगा तभी उसमे सही जान आ पायेगी अन्यथा वह तो सिर्फ हाथ पैर हिलाने की एक प्रक्रिया भर है। इसी शिद्दत को जीवन में उतार लेना ही सही मायनों में सफल होना होता है। कितना पैसा कमा लिया और आगे कितना कमाओगे ये अगर मायने रखता तो आज सभी इस हद तक सुखी होते कि उन्हें कभी भी किसी कंधे की जरूरत नहीं पड़ती। अतः आवश्यक है कि बी. चन्द्रकला की तरह अपने काम से दिल से जुड़ने का प्रयास करें। देखें, घर जा कर थोड़ी सी संतुष्टि का अनुभव जरूर होगा।
Comments
Post a Comment