आतंकवाद : शुरुआत कहाँ से................ ?
आज आतंकवाद के दंश से सभी परेशान है चाहे कोई मोहल्ला हो, चाहे शहर हो, चाहे कोई देश हो या फिर विश्व का कोई भी कोना । जब कोई आतंकवादी पकड़ा जाता है तो उससे पूछा जाता है कि वो आतंकवादी क्यों बना तो आतंकवादी इसे सच्चाई से बताता है पर क्या उसकी सच्चाई जानकर हम उसे अमल में ला पाते है अगर ऐसा होता तो शायद आतंकवादी बनने की रफ़्तार कुछ कम हो पाती । सच्चाई तो ये है कि इस की शुरुआत तो हमारे घर से ही होती है । घर मे बच्चे को उचित वातावरण न मिलना , उसे उसका प्यार न मिलना , उसे दूसरे बच्चे की तुलना में उपेक्षित करना , उसकी संगंत का उचित ध्यान न रखना , समय समय पर उसकी हरकतों पर निगाह न रखना ये सभी ऎसे पहलु है जिन पर अगर ध्यान न दिया जाये तो बच्चे गलत राह पकड़ सकते है । आतंकवादी बनने की दूसरी पाठशाला उसका यौवनकाल होता है युवावस्था मे बच्चे ज्यादा ऊर्जावान , ज्यादा सवेंदनशील होते है और अन्याय न सहने की प्रवर्ति भी उनमे ज्यादा होती है । ज्यादातर बच्चे इसी अवस्था में राह भटकते है । मानसिक स्थिति विचलित होने का कारण यही है कि बच्चे खुद को अकेला पाने लगता हैं और इसी समय उन्हें सबसे ज्यादा आवश्यकता है किसी अपने की जो उनके भावनाओं को समझ सकें और उसे कोई समुचित समाधान बता सकें। यही वह अवस्था है जब न केवल अभिभावक को उन पर ध्यान देना है बल्कि बच्चो के टीचर्स ,बच्चो के आसपास वाले व्यक्तियों और सबसे ज्यादा सरकार को इस समय बहुत ध्यान देने की जरुरत है । कई बार बच्चे योग्यता होते हुए भी उचित रोजगार न मिलने पर गलत राह पकड़ लेते है । और अब तो ये भी देखने मे आया है की अगर अपने से कम योग्यता वाले व्यक्ति को नौकरी मिल जाये तो बच्चे विचलित हो जाते है । ऎसे में सरकार सहित हम सब की सामूहिक जिम्मेवारी बनती है कि हम अपने स्वार्थ भुलाकर बच्चो को उनका न्याय दिलवाए । अगर हम सब ऐसा कर पाते है तो हम आतंकवाद की पाठशाला पर बहुत हद तक विराम लगा सकते है और एक अच्छे समाज और एक सुन्दर देश की परिकल्पना को साकार कर सकते है ।
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