मन तू क्यों इतना चंचल है.…?
ये मन क्यों इतना चंचल है
थमता ही नहीं ,रुकता ही नहीं
बस भागे दौड़े हर पल है ,
मन क्यों तू इतना चंचल है।
कहा- सुनी से ऊपर उठ
रिश्ते शब्दों से ऊपर हैं ,
हो सके प्रमाणित तो ये कर
कि धैर्य ही तेरा संबल है
मन क्यों तू इतना चंचल है।
जो पास है उनको खास बना
जो दूर है उनको भूल नहीं,
साबित कर यादों की नदिया में
प्रेम आज भी छलछल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
विश्वास बढ़ा, विस्तार में तू
फैलेगा तो ही पायेगा ,
कम में जीवन का सार नहीं
संकुचन ,सिमटने का प्रतिफल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
व्यथित है तू अपने कारण
तू बदले तो सब बदलेगा
जब साथ साथ चल दोगे सब
पाओगे राहें समतल हैं।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
चल चलें आज सार्थक की ओर
फिर सब बेहतर हो जायेगा
तब हांसिल होगा नवजीवन
जो इस परिवर्तन का फल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है........!
ये मन क्यों इतना चंचल है
थमता ही नहीं ,रुकता ही नहीं
बस भागे दौड़े हर पल है ,
मन क्यों तू इतना चंचल है।
कहा- सुनी से ऊपर उठ
रिश्ते शब्दों से ऊपर हैं ,
हो सके प्रमाणित तो ये कर
कि धैर्य ही तेरा संबल है
मन क्यों तू इतना चंचल है।
जो पास है उनको खास बना
जो दूर है उनको भूल नहीं,
साबित कर यादों की नदिया में
प्रेम आज भी छलछल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
विश्वास बढ़ा, विस्तार में तू
फैलेगा तो ही पायेगा ,
कम में जीवन का सार नहीं
संकुचन ,सिमटने का प्रतिफल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
व्यथित है तू अपने कारण
तू बदले तो सब बदलेगा
जब साथ साथ चल दोगे सब
पाओगे राहें समतल हैं।
मन क्यों तू इतना चंचल है।
चल चलें आज सार्थक की ओर
फिर सब बेहतर हो जायेगा
तब हांसिल होगा नवजीवन
जो इस परिवर्तन का फल है।
मन क्यों तू इतना चंचल है........!
Comments
Post a Comment