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भारत में जब से नयी सरकार बनी है तब से सभी उम्मीद लगाये है कि देश में भ्रष्टाचार खत्म हो और देश में "गुड गवर्नेंस" हो । और इसकी अहम ज़िम्मेदारी सरकारी तंत्र और देश के युवावर्ग की है, जो अब एक शक्ति के रूप में उभर रहा है । आज हमारे देश का युवावर्ग जहाँ स्वयं अपने अस्तित्व को बचाने के लिए रोज़गार के चक्रव्यूह में फंसा है वंही सरकारी कर्मचारी अधिक से अधिक  पैसा कमाने के चक्रव्यूह में । देश को  तरक्की की राह में लाने  के लिए देश की इन दोनों शक्तियों को राह पर लाना बहुत जरुरी है । 

भाग - I (सरकारी तंत्र )

जहाँ तक सरकारी कर्मचारी की बात है वो स्पष्ट रूप से दो भागो में बंटा  है । एक वर्ग जो ईमानदारी से अपना कार्य कर कर रहा है वंही दूसरा वर्ग जो अपने अफसरों  और नेताओं  की चापलूसी कर भ्रष्टाचार में लिप्त है।  हमारे सरकारी तंत्र में कार्य क्षमता के आंकलन  का तरीका ऐसा है कि इसका फायदा चापलूस वर्ग को ही ज्यादा मिलता है । क्या हमारी सरकार आंकलन के इस तरीके को नहीं बदल सकती है । और इसको बदलने का सबसे सही तरीका शायद ये हो सकता है कि  प्रत्येक कर्मचारी को उसके कार्य के हिसाब से रोज का एक target  दिया जाये और ऐसे target  को  कम से कम सप्ताह में एक बार दो तीन तरह से गुप्त मॉनिटरिंग की जाये।  कहने का अर्थ ये है की कर्मचारी को अपने मॉनिटरिंग करने वाले की जानकारी न हो अन्यथा वो अपने मॉनिटरिंग करने वाले की चापलूसी में ही लग जायेगा।  हमारे देश के कुछ नेताओ और लोगो का ये भी सोचना है कि क्यों न सरकारी  कर्मचारियों दी जाने वाली  छुटियाँ कम कर कर दी जाये या उनकी सैलरी कम कर दी जाये , कुछ लोग तो यहाँ तक भी सोचते है कि सरकारी  कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन भी बंद कर दी जाये । अगर ऐसा कर भी दिया जाये तो क्या भ्रष्टाचार में सुधार आएगा ?  नहीं, बिलकुल भी नहीं क्योंकि ऐसा सब करने का नुकसान तो बेचारे कुछ ईमानदार लोगो पर ही पड़ेगा , क्योंकि बेईमान के लिए  अनेकों रास्ते खुले हैं और वह किसी भी तरह बेईमानी से पैसा कमा  ही लेगा। दूसरे हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि  सरकारी कर्मचारी भी एक इंसान है और उसका भी एक परिवार है । जंहा एक नेता सिर्फ एक चुनाव जीतकर  पेंशन का हक़दार हो जाता है वही एक सरकारी कर्मचारी जो 30 -40  साल नौकरी करता है  क्या पेंशन पाने का हक़दार नहीं होना चाहिए ? और फिर बात वही आती है कि मँहगाई के इस युग में एक ईमानदार कर्मचारी बेचारा कितना कमा लेगा की नौकरी के बाद अपने व अपने परिवार को पाल सकेगा। गुड गर्वर्नेंस और देश के विकास के लिए हमें इस छोटे से पहलू को देख कर इसमें सुधार करना भी जरुरी है । देश की अर्थव्यवस्था को दो खम्भों ने संभाल  रखा है पहला व्यापारी वर्ग और दूसरा सरकारी तंत्र। व्यापारी वर्ग इस लिए संतुष्ट है कि उन्हें अपने कार्य का लेखा जोखा खुद ही देना और रखना पड़ता है जबकि एक सरकारी कर्मचारी के account की सभी details सरकार की नजरों में रहती हैं।  ऐसे में यदि अपने परिवार के लिए कुछ अतिरिक्त सोचना हो तो वह कैसे करेगा ये उसकी प्रथम समस्या रहती है। यही समस्या आज भ्र्ष्टाचार का कारण बन रही हैं।  इस लिए आवश्यक है कि सरकार काम करने वाले तमाम सरकारी कर्मचारियों को एक ऐसे माहौल में काम करने की सहूलियत दे जिस से उनकी आर्थिक और व्यावसायिक दोनों जरूरतों में तालमेल बैठा रहें और उन्हें कभी भी गलत राह न पकड़नी पड़े।     

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