खो गयी जीवन की कमाई :

खो गयी जीवन की कमाई  …!
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सुबह सवेरे माँ ने उठ कर 
रसोई की अंगीठी सुलगाई 
चली बनाने खाने का डिब्बा ,
तभी उसे कुछ याद आयी ,
अरे अभी तो उसने 
आवाज ही नहीं लगाई ,
पता नहीं जाने वाला जगा कि नहीं 
छोड़ कर सुबह की अलसाई,
जिसे जग कर एक नए सिरे से 
लड़नी है जीवन की लड़ाई ,
समझना है कि आज लगभग 
ख़त्म सी है इस संसार में भलाई ,
आगे चल कर उसे ये आदर्श बनाना है
और पानी है सर्वत्र वाहवाही ,
पर ये क्या ..........  !
वह तो है ही नहीं जिसकी तलाश है ??
क्योंकि उसे तो निगल गयी 
बेरहम वहशियत की गहराई ,
समझ सको तो समझो कि 
अब ऐसा कुछ भी नहीं 
जो सुकून से समझा सके
जीवन की सच्चाई ,
कि .....अब सब मौला के हाथ है 
वही कर सकेगा....
इस खोये नसीब की भरापाई , 
जीवन के चलते रहने का ये सच है 
जिसमे लोगो के आने जाने की 
व्यथा है समाई ,
वह चला गया जो था 
इस पूरे जीवन की कमाई ,
उसे खो कर भी ऐसे ही जियेंगे 
यही है सब से बड़ी सच्चाई ,
जिएंगे बस ऐसे ही जिएंगे 
खुदा की रहमत से, इस दर्द में 
सहने की हिम्मत आयी।     

                     जया सिंह
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