निष्फल प्रयास में हलाल हुई साँसे…… !
अभी हाल ही में मैंने चिकित्स्कीय मामलों में कानून की दखलंदाजी पर आलेख लिखा था । उसका ज्वलंत उदाहरण आज के समाचार पत्र में मिला, जिसे पढ़ कर कानून की दयनीयता का आभास हुआ। सिर्फ लोगों की अपील , जुटाए गए सबूतों , जोड़े- तोड़े गए गवाहों की आधार पर कोई फैसला ले लेना क्या सही होता है ? चिकित्सा जगत में जीवन का मूल्य असीम है शायद इसीलिए जिंदगी बचाने के हर मुमकिन प्रयास किये जाते हैं। कोर्ट कचहरी के चक्कर में अक्सर जिंदगियां तमाम ही हुई हैं। भारत की ही एक महिला सविता का अजन्मा बच्चा जीने की जंग हार गया। आयरलैंड में एक brain dead महिला को १७ माह का गर्भ था। और बच्चे के ठीक -ठाक होने के कारण डॉक्टर महिला को life support system पर जीवित रख कर बच्चे को जन्म देना चाहते थे। परन्तु सविता के माता - पिता ने इस निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी कि उनकी बेटी को चैन से मरने नहीं दिया जा रहा इस दलील को कानून ने मान्यता दे दी । इस वजह से उसके लगाये गए सभी जीवन रक्षक उपकरण हटा लिए गए। जिस से साथ में चलती बच्चे की सांसो को भी रोक दिया गया।
इस पूरे वाकये में जो सबसे दुखद सत्य सामने आया वह है हिलते डुलते उस बच्चे की अनदेखी। जो व्यक्ति मृत्यु के कगार पर है वह आज नहीं तो कल चला ही जाएगा। पर जिस ने कोख में साँसे लेना शुरू कर दिया है उसकी क्या गलती थी ? यहाँ पर सविता के माता - पिता का ही निर्णय दुखद है जो अपनी बेटी के अंश को सहेज नहीं पाये। कहते है कि मूल से सूद प्यारा होता है तो क्या एक बार भी उस अजन्मे बच्चे की प्यारी सी छवि उन की आँखों में नहीं आयी? कोख में सांसे पड़ने के साथ ही बच्चे की अनुभूति से रोमांचित होना एक विशेष बात है। यही अनुभूति सिर्फ माँ पिता को ही नहीं सारे परिवार को एक करती है। कैसे दादा दादी माँ को संभल कर काम करने को कहते रहते हैं , कैसे आस पड़ोस की महिलाऐं स्वस्थ बच्चे के लिए नए नए नुस्खे बताना शुरू कर देती है ,कैसे पूरा परिवार उस एक सूत्र में बंध कर सिर्फ बच्चे की भलाई के लिए सोचने लगता है। यही सब प्रश्न सामने खड़े हैं जो इस फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं। यदि डॉक्टरों के इस विश्वास के चलते वह बच्चा इस दुनिया को देख पाता तो यह चिकित्सा जगत की जीत होती। पर इस जीत को कानून के नियमों ने कुचल कर रख दिया। साथ ही साँसे लेते उस मासूम को भी हमेशा के लिए अलविदा कह दिया, जिसने अपनी माँ के कोख में लाखों उम्मीदें लेकर एक नए जीवन की आस बांधी थी ……।
अभी हाल ही में मैंने चिकित्स्कीय मामलों में कानून की दखलंदाजी पर आलेख लिखा था । उसका ज्वलंत उदाहरण आज के समाचार पत्र में मिला, जिसे पढ़ कर कानून की दयनीयता का आभास हुआ। सिर्फ लोगों की अपील , जुटाए गए सबूतों , जोड़े- तोड़े गए गवाहों की आधार पर कोई फैसला ले लेना क्या सही होता है ? चिकित्सा जगत में जीवन का मूल्य असीम है शायद इसीलिए जिंदगी बचाने के हर मुमकिन प्रयास किये जाते हैं। कोर्ट कचहरी के चक्कर में अक्सर जिंदगियां तमाम ही हुई हैं। भारत की ही एक महिला सविता का अजन्मा बच्चा जीने की जंग हार गया। आयरलैंड में एक brain dead महिला को १७ माह का गर्भ था। और बच्चे के ठीक -ठाक होने के कारण डॉक्टर महिला को life support system पर जीवित रख कर बच्चे को जन्म देना चाहते थे। परन्तु सविता के माता - पिता ने इस निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी कि उनकी बेटी को चैन से मरने नहीं दिया जा रहा इस दलील को कानून ने मान्यता दे दी । इस वजह से उसके लगाये गए सभी जीवन रक्षक उपकरण हटा लिए गए। जिस से साथ में चलती बच्चे की सांसो को भी रोक दिया गया।
इस पूरे वाकये में जो सबसे दुखद सत्य सामने आया वह है हिलते डुलते उस बच्चे की अनदेखी। जो व्यक्ति मृत्यु के कगार पर है वह आज नहीं तो कल चला ही जाएगा। पर जिस ने कोख में साँसे लेना शुरू कर दिया है उसकी क्या गलती थी ? यहाँ पर सविता के माता - पिता का ही निर्णय दुखद है जो अपनी बेटी के अंश को सहेज नहीं पाये। कहते है कि मूल से सूद प्यारा होता है तो क्या एक बार भी उस अजन्मे बच्चे की प्यारी सी छवि उन की आँखों में नहीं आयी? कोख में सांसे पड़ने के साथ ही बच्चे की अनुभूति से रोमांचित होना एक विशेष बात है। यही अनुभूति सिर्फ माँ पिता को ही नहीं सारे परिवार को एक करती है। कैसे दादा दादी माँ को संभल कर काम करने को कहते रहते हैं , कैसे आस पड़ोस की महिलाऐं स्वस्थ बच्चे के लिए नए नए नुस्खे बताना शुरू कर देती है ,कैसे पूरा परिवार उस एक सूत्र में बंध कर सिर्फ बच्चे की भलाई के लिए सोचने लगता है। यही सब प्रश्न सामने खड़े हैं जो इस फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं। यदि डॉक्टरों के इस विश्वास के चलते वह बच्चा इस दुनिया को देख पाता तो यह चिकित्सा जगत की जीत होती। पर इस जीत को कानून के नियमों ने कुचल कर रख दिया। साथ ही साँसे लेते उस मासूम को भी हमेशा के लिए अलविदा कह दिया, जिसने अपनी माँ के कोख में लाखों उम्मीदें लेकर एक नए जीवन की आस बांधी थी ……।
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