दर्द की दवा तलाशो .......... ! 
राजनीति की गैस की दमघोटू घुटन !

जीवन अनमोल है। ये हम लेखों के जरिये कई बार समझ चुके है और जानते भी हैं। इसे बेहतर रखने के हर मुमकिन प्रयास को अंजाम देते रहते हैं। शायद इसी लिए जीवन  और अधिक उन्नत बनाने के लिए भारतीय औद्योगिक प्रगति के साथ विदेशी उद्द्यमों को भी भारत में काम करने का मौका दिया जाता रहा हैं।  इस सन्दर्भ में जिस विदेशी उपक्रम के द्वारा सबसे बड़ी भारतीय त्रासदी ने जन्म लिया वह है भोपाल गैस त्रासदी.............  आज यानि 3 दिसंबर को गैस त्रासदी के पूरे 30 वर्ष  हो गए।  इस त्रासदी के शिकार बने लोगों के चेहरों पर आज भी उस समय का दर्द देखा जा सकता हैं। विस्तृत विवरण में इतना बताना उचित होगा कि भोपाल स्थित यूनियन कारबाइड प्लांट में 2 दिसंबर की रात में गैस मिथाइल आइसोनेट का रिसाव प्रारम्भ हुआ और सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुछ ही घंटों में करीब 3 से 4 हजार लोगों की मृत्यु हो गयी। सत्य ये है की करीब 15248 लोगों की मृत्यु हुई । 2004 तक इलाज करवाने  वाले लोगों में करीब 3 से 4 लाख लोग इस रिसाव के प्रभाव का दंश झेलते रहे। Center for Science and Environment Studies  के द्वारा किये गए अध्ययन की रिपोर्ट  तैयार की  गयी जिस के अनुसार कुछ मुद्दों पर ध्यान दिया जाना जरूरी हैं।  गैस त्रासदी के बाद बचे घातक कचरे का निस्तान्तरण आवश्यक हो गया है क्योंकि जमीन के अंदर बचे घातक रसायनों का संक्रमण ज्यों का त्यों बना हुआ हैं। पिछले 30 वर्षों से उस घातक कचरे को मिटटी और भूजल दोनों ही समाहित करते जा रहे है जिस का प्रत्यक्ष प्रभाव वहाँ के लोगो के स्वास्थय पर देखा जा सकता हैं। जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता न ही उन दोषियों को सजा  दिलवा कर हमारे वे अपने लौट कर आ सकते है जो इस का शिकार बन गए।  अब जो सबसे ज्यादा ध्यान देने वाला मुद्दा है वह CSE की रेपर्ट के अनुसार बचाव के रास्ते हैं। 
 1. सबसे पहले तो उस क्षेत्र के आस पास बाड़ लगवाई जाये जिस से रहवासी और उनके बच्चे बचे उस ओर आने से बचें रहें।                                                         2. ऐसा कोई पुख्ता इन्तेजाम होना चाहिए जिस से वर्षा का जल वहाँ न पड़े और यदि पड़े भी तो उसे जमीन सोख न पाये। 
3. संक्रमित कचरे को प्रकृति के अनुसार उपचारित कर नष्ट किया जाना चाहिए। 
4. संक्रमित कचरे में मिले जहरीले रसायनों को निष्क्रिय करने वाले रसायनों के प्रयोग से उपचारित किया जाए। 
5. सोलर क्षेत्र में पड़े रसायन धूप की गर्मी से वाष्प बन कर हवा में निरंतर घुल रहें है उनको निष्क्रिय करने के लिए भी प्रतिकूल रसायनों का इस्तेमाल करना चाहिए। 
6. भूजल का प्रदुषण डेढ़ से दो किलोमीटर प्रतिवर्ष की रफ़्तार से फ़ैल रहा है अब ये सहज अंदाजा लगाया जा सकता  पिछले 30 वर्षों में ये कहा तक फ़ैल चुका होगा। इसका दायरा करीब 10 से 12 किलोमीटर तक फैलने की आशंका हैं। 
7. इस क्षेत्र के आस  पास  निर्माण के लिए रोक लगा देनी चाहिए। 
8. इस क्षेत्र के पास ही center for excellence for industrial disaster management  की स्थापना की जानी चाहिए जो की समयनुसार  तथ्य इकट्ठे करके उस पर research कर सके और हल ढूँढ  सकें।    
 9. मुआवजे की राशि के लिए  जो भी कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए वह तुरंत हो जिस से पीड़ितों को उनकी तकलीफ में इलाज करवाने में मदद मिल सके 
10.जो भी निजी संगठन इस प्रयास में सरकार की मदद करना चाहते है उन्हें सहर्ष साथ लेकर आगे  बढ़ना चाहिए।  जितने ज्यादा हाथ होंगे कार्य की क्षमता और दायरा बढ़ेगा। 
                                             हम उस त्रासदी से बहुत दूर है पर जिन्होंने उसे झेला  है उनके लिए आज भी वह एक बुरे सपने की तरह है आज भी उन के परिवारों में लोग उसका प्रभाव झेल रहें हैं। उनके समुचित और मुफ्त इलाज की सुविधा उन्हें एक बार फिर दुरूस्तगी की ओर ले जा सकती हैं। आज जरूरी है कि इस त्रासदी का प्रभाव खत्म किया जाए जिस से एक बार फिर भोपाल  को एक सुरक्षित और खूबसूरत शहरों में शुमार किया जा सकें। 

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