कोई मिल जाये ऐसा
कोई मिल जाये ऐसा :
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कोई मिल जाए ऐसा जो ख़ामोशी पढ़ ले
हमारी बिन कही बातों को सही से गढ़ ले
अक्सर बढ़ती हुई समझ मौन बन जाती है
कोई हो जो हमारी चुप्पी संग साथ बढ़ ले
सतही तलाशकर लोग हमें खारा बताते रहे
गहराई में उतरते तो शायद मोती मिल जाता
असल कीमत तो उस सीप की है जिसने वो
नायाब मोती गढ़ा जो कोई अँगूठी में जड़ ले
ध्वनियों की होती है निर्धारित दूरी की तरंगे
पर मौन की गूंज सतत अनंत तक होती हैं
अक्सर खामोशी सच के साथ रहती है, संभव
नहीं कि झूठ संग कोई इतनी सीढियां चढ़ ले
कोई मिल जाये ऐसा जो खामोशी को पढ़ ले
हमारी बिन कही बातों को आसानी से गढ़ ले !
~ जया सिंह ~
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