प्रेम और पीड़ा

प्रेम और पीड़ा : 

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प्रेम किसी भी युग में पीड़ा से पृथक नहीं होता 

सत्य के ऊपर रखा झूठ कभी सार्थक नहीं होता 

झूठी जिद का जिल्द अस्तित्व पर नहीं चढ़ाना

पारदर्शी स्पष्टता का प्रमाण अथक नहीं होता

कसमें शर्मिन्दा होकर आँसूओं में बदल गयी

मन का मुस्कुराना अब अधरों तक नहीं होता

लफ़्ज़ों के हेर फेर के धंधे से कई अमीर हो गए

हम जैसा बेजुबान संबंधों का निवेदक नहीं होता

शहर में कई बेगाने हैं जिनको हम जानते नहीं है

तो उनसे अपनेपन की उम्मीद का हक़ नहीं होता

प्रेम सदैव छला गया भावनाओं को हथियार बना

ये जानते हुए भी समझने वाला सबक नहीं होता

प्रेम किसी भी युग में पीड़ा से पृथक नहीं होता

सत्य के ऊपर रखा झूठ कभी सार्थक नहीं होता .!

             ~ जया सिंह ~

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