चांद कंवर की तपस्या

चांद कंवर की तपस्या : 

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चलिए आज थोड़ा इतिहास में जाकर कुछ अच्छा खोजते और जानते हैं जो मानवीयता को परिलक्षित करता हो। राजस्थान सदा से ही इतिहास में अपनी साख, संपन्नता और शूरवीरता के लिए प्रसिध्द रहा है। यहां क्षत्राणियों की गाथाएं बहुत प्रचलित हैं। जिन्होंने अपने भाग सुहाग के लिए अमिट बलिदान तक दिया। इसी में से एक हैं चांद कंवर....

मेवाड़ के महाराजा अरी सिंह की पुत्री और भीम सिंह की बहन राजकुमारी चांद कंवर की सगाई जयपुर के तत्कालीन महाराज सवाई प्रताप सिंह से तय हुई। परंतु शादी के कुछ समय पूर्व ही उनकी असामयिक मृत्यु हो गई। ये समाचार ज्ञात होने पर पूरे साम्राज्य में शोक की लहर दौड़ पड़ी। होनी को कौन टाल सकता है यही सोच कर सबने सब्र कर लिया। 

परंतु चांद कंवर ने अपनी मां से कहा कि सगाई में जयपुर से आये नारियल के अलावा उन्होंने अपने ससुराल का कुछ भी नहीं देखा। यहां तक कि अपने होने वाले पति का मुख भी नहीं। फ़िर भी वो आत्मा से जयपुर और उसकी संस्कृति से जुड़ गई है। इसलिए अब वो अन्य किसी रियासत में विवाह नहीं करेंगी। और दिवंगत सवाई प्रताप सिंह जी को ही अपना पति मानकर शेष जीवन बिताएंगी। मेवाड़ की ये अविवाहित राजकुमारी आजीवन कुंवारी रहकर जयपुर को ही अपना ससुराल मानती रही। 

जयपुर घराने और राजपरिवार से उसका नियमित पत्र व्यवहार भी होता रहता है। जयपुर राजघराने से चांद कंवर की नियमित हाथ ख़र्च भी भेजा जाता था। सवाई प्रतापसिंह जी के बाद गद्दी पर बैठे जगत सिंह को चांद कंवर ने अपना पुत्र ही मान लिया। चांद कंवर मेवाड़ और जयपुर दोनों घरानों में बहुत अहम स्थान रखती थी। उनके नाम और सम्मान में चांदी का चंदौड़ी नाम का एक सिक्का भी चलाया गया। 

सवाई प्रताप सिंह जी जिन्होंने जयपुर के प्रसिद्ध हवा महल बनवाया उनकी एक दर्जन से अधिक रानियां थी। पर उन सब में चांद कवंर ने अपना स्थान सबसे ऊंचा कर दिया। जिन्होंने सिर्फ पति से सम्बंध जुड़ने के नाम से ही पूरा जीवन उनके नाम कर दिया। चांद कंवर बहुत ही दयालु और धार्मिक स्त्री थी। लेकिन उसका जीवन जीने का ये उदाहरण अतुलनीय था। 

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