इंसान = ईश्वर

इंसान = ईश्वर :

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आज इंसान खुद को बहुत ताक़तवर समझने लगा है। इसका मुख्य कारण तकनीकी रूप से विकसित होना और परिस्थितियों पर नियंत्रण कर पाने का दिखावा है। उसने ईश्वर पर विश्वास कम करके अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना शुरू कर दिया है। शायद इसीलिए अब एक वक्त ऐसा आएगा जब किसी दुनिया में किसी समय में इंसान = ईश्वर होगा। साधारण से साधारण मनुष्य भी ईश्वर का साक्षात्कार लेता हुआ दिखेगा। साक्षात्कार मतलब उससे पूछता हुआ कि तुमने ऐसा क्यों किया...किस वजह से किया...उसके होने का यही समय क्यों चुना, ये मैं अपनी जिंदगी में होने देना नहीं चाहता था...  वग़ैरह वग़ैरह। तब ये नहीं कहा जायेगा कि अगर उसने कुछ किया है तो उसकी मर्जी में ही बेहतरी छुपी है। ईश्वर को हर स्थिति परिस्थिति के लिए जवाबदेह माना जायेगा। इस दुनिया में कटघरे में ईश्वर को खड़ा किया जाएगा। उसके जवाब के इंतेज़ार में अपने आगे के प्लान्स को उसी हिसाब से execute किया जाएगा कि अगर फिर कुछ सही नहीं हुआ तो उसकी गलती भी उसी के सर पर मढ़ी जा सके। 

आज technically  इंसान बहुत आगे निकल रहा है। इसलिए ईश्वर को उसके आगे खुद को बड़ा और उसके किये को गलत दिखाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं के सहारा लेना पड़ रहा। शायद इसी के चलते इंसान ये महसूस कर पाए कि उसकी विकसित सोच और धारणाओं के बावजूद वो ईश्वरीय प्रदत्त घटनाओं को कंट्रोल नहीं कर सकता है। इसलिए चाहे मनुष्य कितना भी हाथपैर मार ले वो ईश्वर के समकक्ष नहीं हो सकता। 

अब रही बात विश्वास की....तो ईश्वर को इंसान के विश्वास और अविश्वास से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि उसका अस्तित्व इस पर निर्भर नहीं करता कि कितने लोग उसका होना मानते हैं कितने नहीं।आज भी जन्म मृत्यु जैसी बहुत सी घटनाएं हैं जिनका समय स्थान माध्यम सब पूर्व निहित होता है। अच्छा हुआ या बुरा हुआ ये मानवीय संवेदनाओं के आधार पर भले ही इंसान तय करे। पर अगर वो हुआ तो इसमें इंसान का कोई नियंत्रण नहीं। 

इसलिए इंसान = ईश्वर की सोच अगर बढ़ाई जा रही तो अंततः इसका परिणाम यही आएगा कि इंसान कितनी भी ऊंचाई हांसिल करले। ईश्वर की बराबरी वह नहीं कर सकता। 

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