पोस्ट बॉक्स
पोस्ट बॉक्स :
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ये हैं हमारा प्यारा पोस्ट बॉक्स । जो कि 1954 में ब्रिटिश काल के दौरान एक डाक विभाग बनाकर शुरू किया गया था। इसे 31 अगस्त 2025 को अलविदा कह दिया गया। इसने हमारी जिंदगी की कितनी आस बनाई और जोड़ी है ये खुद नहीं जानता। यूँ तो ये बस एक लोहे का डिब्बा दिखता था। पर इसके अंदर वो तमाम कही अनकही भावनाएं कूट कूट कर भरी रहती थी इस इंतेज़ार में कि कब अपनों तक पहुंचे। आज मेल, AI और तमाम टेक्निकल सुविधाओं के बाद भी इसमें बन्द कागज़ की खुशबू के साथ गूंथे भावों का मुकाबले नहीं किया जा सकता।
इसी पर एक छोटी सी कविता प्रस्तुत है :
क्या क्या समेटे रहते थे अपने दामन में
बहुत सारी खुशी और बहुत सारा ग़म
कद काठी में तो दिखते छोटे थे तुम पर
भावनाएं समेटने की क्षमता नहीं थी कम
कैसे संभालते थे इतना सारा अनकहा
इस इंतेज़ार में कि गंतव्य तक पहुंच सके
खुल कर व्यक्त हो सके, उस अपने तक
जहां निगाहें प्रतीक्षा में द्वार पर रही जम
तुम तक भावनाएं पहुंचाते ही न जाने
क्यूं एक ओर ये खलबली मच जाती थी
दिन तारीखें गिनते हुए हर बार तुम्हारी
याद आती थी कि अब जल्दी करो रहम
किसी को इंतेज़ार कि नौकरी लग जायेगी
कहीं ये नौकरी से औलाद की खबर आएगी
कहीं कोई प्यार की आस में प्रतीक्षारत था
कहीं दफ़्तरीय कार्य तुम्हारे कारण सुगम था
सीमा पर तैनात जवान हर्फ़ों को छूता था
उस चिट्ठीपत्री में था उसकी दूरी का मरहम
तुमने बहुतों को बहुत कुछ दिया, शुक्रिया
अब जो कह रहे अलविदा पर याद आओगे
विकास की अंधी दौड़ में भाग तो लिए पर
लिखावट की खुशबू की पूर्ति कैसे करें हम
~ जया सिंह ~
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