ईश्वर की जरूरत

ईश्वर की ज़रूरत : 

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 ईश्वर सोसायटी के लिए जरूरी है..

उतना ही जितना पुलिस जरूरी है। चौराहे पर सीसीटीवी जरूरी है। यूँ समझिये की चौराहे पर ट्राफिक पुलिस, या सीसीटीवी का डर न हो, तो अधिकांश लोग लाल बत्ती पार जाएंगे। 

पुलिस नही, सीसीटीवी नही, लेकिन आप इसलिए रूल मानेंगे, की ऊपरवाला देख रहा है। पाप करोगे, सजा देगा। नर्क में झोंक देगा। 

ईश्वर एक इनविजिबल पुलिस वाला है। जो सोसायटी में लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करता है। 

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ईश्वर बाप है, बड़ा भाई है। वह लास्ट रिजॉर्ट है। जब सब कुछ करने के बाद भी मनोवांछित न मिले। अथवा कृत्य के बाद परिमाण के इंतजार में हों, संशय में हो, तब उदासी ढालने के लिए ईश्वर कंधा है। 

हर बात को मनुष्य लीड नही ले सकता। अंतिम कर्ता धर्ता बनने से डरता है। वह कुछ ईश्वर पर डाल देता है। अपना दुख, अपनी हार, अपनी बेबसी को "हरि इच्छा" कहकर राहत पा लेता है। 

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ईश्वर, अज्ञात को एक्सप्लेन करने का जरिया भी है। जो बातें विज्ञान एक्सप्लोर कर लेता है, वह ईश्वर की लीला के दायरे से बाहर आ जाता है।  बाकी सब प्रभु के स्कोप में बना रहता है। 

इन्ही सब जरूरतों के लिए ईश्वर का इन्वेंशन हुआ। और आज, या भविष्य में, रिलेवेंट बना रहेगा। क्योंकि भगवान एक जरूरी, उपयोगी और अनिवार्य डिवाइस है। 

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मगर समाज मे इसकी व्याप्ति जरूरत भर रहनी चाहिए। ठीक वैसे जैसे ब्लड में शुगर जरूरी है। पर लेवल से ऊपर हो जाये, तो बीमारी है। जिस तरह HDL कोलेस्ट्रॉल जरूरी है। LDL का बढ़ना बीमारी है। अर्थात जरूरत जितनी जो जैसी हो बस उतना ही आवश्यक है वरना वो गंभीर बीमारी है।

समाज मे ईश्वर की अधिकता भी एक तरह की बड़ी बीमारी है। यह बताती है कि समाज के लोगो का स्वयं पर, व्यवस्था पर यकीन नही। और नागरिक संख रहा है कि वह ब्रोकन सिस्टम में रहता है। इसलिए उसे आस की जरूरत है।

जो उसका आम हक है, उसके लिए भी प्रभु की कृपा अनिवार्य है। कॉलेज में एडमिशन, नौकरी, सैलरी में वृद्धि, कम्प्टीशन में सक्सेस, दुकान में मुनाफा, टेंडर ठेका, विधवा पेंशन, 5 किलो राशन, अदालत में न्याय .. सबमें हमें बस ईश्वर का सपोर्ट चाहिए। 

वह अपने इर्द गिर्द घट रही घटनाओं का लॉजिक वह कॉम्प्रिहेंड नही कर पा रहा। अपने बच्चों को घास और गदहों को च्यवनप्राश खाते देख रहा है। 

उदास, निराश,  भारत का नागरिक इस सर्वशक्तिमान मगर अक्षम तंत्र में स्वयं को अशक्त और महत्वहीन पा रहा है। झख मारकर पूजा- पाठ, पाप-पुण्य अभिषेक- स्नान में लगा है। 

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 पिछले 10-11 सालो का माहौल देखिए। कुंभ मेला में घुसती भीड़,उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों पर लगते जाम, मानसरोवर से लेकर महाकाल तक बढ़ती भीड़, जगह जगह कांवड़ यात्रा में खचाखच भीड़, और आपके अडोस पड़ोस में बनने वाले नए नए पंडाल.. सबमे 10 गुना ज्यादा उछाल आ गया है। गणेश पंडाल कभी हमारे शहर में कुल 10 होते थे, अब एक किमी की रोड में दस बैठे हैं। 

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4 दिन से रोज विसर्जन हो रहे हैं। ब्रिज पर उस वजहँ श्गेके लगे जाम में अश्लील भोजपुरी और कानफोड़ू पंजाबी गानों पर नाचते दुबले पतले छोकरे छोकरी, और खाये पिये X-Y-Z समाजों समितियों के लोग दिख रहे हैं। 

अति सफल लोगों को, उनसे बने समाज को सड़क छाप भक्ति की फुर्सत नही होती। उनके घरों, और हृदय में ईश्वर जरूरत भर का रहता है। 

असफल समाज मे उसकी अधिकता होती है। तो यहाँ सड़कों पर भगवान की अधिकता, हमारे फेलियर की घोषणा कर रही है। 

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चौपट राजा के दौर में खुला हाथ मिलते ही राष्ट्रवाद और भगवान ने, मिलजुलकर आज देश को चौपट कर दिया है। 

जाम में फंसे प्रबुद्ध लोग, उनका भौंडा नाच देखते हुए सोचते होंगे कि किसी दिन देश को सुधारना वाला कोई तो आये..

तो उसे इस देश का डी-नाजिफिकेशन के साथ साथ, डी- ईश्वरीफिकेशन करने की भी जरूरत होगी।

Cpd : मनीष

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