मन का पोर पोर

मन का पोर पोर

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उलझनों में उलझे मन का पोर पोर

प्रश्नों में उलझकर अक्सर ये कहता है

कोई जगह हमेशा खाली नहीं रहती 

जहां कभी कोई नहीं बैठता वहां पर

अटी हुई सूखी धूल का गुबार रहता है

प्रतीक्षा में जिसको पीछे छोड़ आये वो

वापस वैसा नहीं मिलता जैसा छोड़ा था

बदले हालात और बदले नज़रिये में वो

हमसे अलहदा नए वक्त के संग बहता है

हाथ पकड़कर चले ऐसा एक हमसफ़र

सबको अपनी क़िस्मत से नहीं मिलता 

मंजिल, रास्ता, सफ़र ये मनचाहा मिले

ऐसा नसीब हर किसी को नहीं सहता है

उनझनों में उलझे हुए मन का पोर पोर

प्रश्नों में उलझकर अक्सर यही कहता है !

        ~ जया सिंह ~ 

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