रिश्तों का मर्म
रिश्तों का मर्म ....!!!
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रिश्ते जो दिल में पला करते हैं ,
सिर्फ वो ही दूर तक चला करते हैं।
नयनों पर यकीं ना करना कभी ,
पल पल में पसंद बदला करते हैं।
रास्तों और रिश्तों का अंत समझो,
जब पाँव नहीं , दिल थक जाते हैं।
इंसानियत को सर्वोपरी समझ कर ,
क्या कभी हम दिल से निभाते हैं।
बेऐब तो कोई भी नहीं है आज,
कब तक फरिश्तों की आस में चलेंगे
इंसानों की बस्तियों में रिश्ते ,
तो अब खताओं के साथ ही मिलेंगे।
अजनबी सी जिंदगी हो जाती है जब,
वक्त अपनी रफ़्तार तेज़ करता है।
पर हमारा मन दूजे के सुकूँ की ख़ातिर
लम्हों को प्यार से लबरेज करता है
~ जया सिंह ~
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