तर्क के आधार पर ईश्वर की खोज
तर्क के आधार पर ईश्वर की खोज :
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★ क्या हम तर्क के आधार पर सत्य की खोज कर सकते हैं?
★ क्या केवल तर्क के माध्यम से ईश्वर की सत्ता को जान सकते है?
तर्क हर इंसान की बुद्धि की क्षमता है। यदि तर्क का आधार केवल संदर्भों पर हो और उसमें प्रायोगिक प्रमाण न हों, तो वह केवल एक गवाह की तरह है जिसके पास ठोस सबूत नहीं हैं। किसी कथन के पक्ष और विपक्ष में अनगिनत तर्क दिए जा सकते हैं। एक अधिक बुद्धिमत्ता वाला व्यक्ति कम बुद्धिमान के तर्क को आसानी से काट सकता है।
पर यदि किसी व्यक्ति के पास किसी कथन का प्रायोगिक तथ्य भी हो, तब भी उस कथन को शत-प्रतिशत सत्य नहीं कहा जा सकता। क्योंकि प्रायोगिक तथ्य यह तो दिखाते हैं कि घटना घटी है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि उस घटना के कारण को भी वे पूरी तरह स्पष्ट कर दें।
उदाहरण के लिए—
कथन: “जब आंधी आती है तो वह टीनशेड उड़ाकर ले जाती है।”
प्रायोगिक तथ्य: “हाँ, ऐसा कई बार देखा गया है।”
लेकिन असल कारण यह है कि आंधी से केवल टीनशेड के ऊपर वायुदाब (एयर प्रेशर) पड़ता है, जबकि घर के अंदर की हवा भी बाहर निकलने का दबाव बनाती है। इसलिए टीनशेड वास्तव में अंदर-बाहर के दबाव के अंतर से उड़ता है, केवल आंधी से नहीं।
इससे सिद्ध होता है कि तर्क की एक सीमा है। यह घटनाओं के गहरे कारणों को पूरी तरह स्पष्ट नहीं कर सकता, बल्कि कई बार भ्रम (illusion) उत्पन्न करता है। इसीलिए कम बुद्धिमान व्यक्ति को अधिक बुद्धिमान व्यक्ति तर्क के खेल में मूर्ख बना सकता है।
जब तर्क विज्ञान की गहनताओं को ही नहीं पकड़ पाता, तो ईश्वर को केवल तर्क से कैसे जाना जा सकता है ? विज्ञान ने भी अपने आप को व्यक्त करने के लिये गणितीय भाषा जैसी स्पष्ट और विरोधाभास-रहित भाषा अपनाई।
तो जब तर्क विज्ञान को ही परिभाषित करने में असमर्थ है, तो ईश्वर को तर्क से जानना असंभव है। हाँ, तर्क के आधार पर ईश्वर को “माना” जा सकता है। यही कारण है कि धर्म मानने की बात की जाती है, और अध्यात्म जानने व अनुभव करने की बात होती है।
आज अधिकांश कथावाचक ईश्वर को मानने की बात करते हैं, जानने की नहीं। क्योंकि उनके पास तर्क के सिवाय कुछ नहीं है। वे भी केवल मानते आए हैं, लेकिन उन्होंने ईश्वर की खोज और अनुभव का साहस नहीं किया। जब प्रश्नकर्ता तर्क करता है और वे उत्तर नहीं दे पाते, तब वे नई-नई काल्पनिक कहानियाँ गढ़ने लगते हैं।
यही कारण है कि नास्तिक प्रायः उन पर हावी हो जाते हैं, क्योंकि नास्तिक कम से कम इतना साहस रखते हैं कि वे पूछ सकें—“ईश्वर कहाँ है? कैसा है? दिखाओ।” और इसके उत्तर में धर्मगुरु प्रायः ग्रंथों का हवाला देते हैं, लेकिन यह स्वीकार नहीं कर पाते कि उन्होंने कभी ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं किया।
यही कारण है कि आज बहुत से लोगों की आस्था सनातन धर्म से डगमगाने लगी है। क्योंकि धर्मग्रंथों की उचित आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक व्याख्या करने के बजाय उन्हें केवल कहानी की तरह प्रस्तुत किया गया।
उदाहरण के लिए—
रामायण में पुष्पक विमान को “मन की गति” वाला कहा गया है। स्पष्ट है कि कोई भौतिक वस्तु वास्तव में मन की गति से चल ही नहीं सकती, क्योंकि सभी वस्तुओं की गति प्रकाश की गति से कम ही होगी। यहाँ “मन की गति” को एक रूपक अलंकार के रूप में लिखा गया है, जिसका आशय है कि विमान अत्यंत तीव्र गति वाला था।
👉 निष्कर्ष:
तर्क की अपनी सीमा है। तर्क से ईश्वर को साबित नहीं किया जा सकता। ईश्वर को केवल अनुभव से जाना जा सकता है। इसलिए धर्म मानने की बात करता है और अध्यात्म जानने की।
Cpd
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