परिस्थितियों का सामना क्रोध से नहीं ……… !

आज बहुत कुछ होते हुए भी इंसान हमेशा कुछ न कुछ कमी महसूस करता रहता है बस एक ही चीज ऐसी है जिसकी  इंसान के पास कोई कमी नहीं, वह तो बहुतायत में है। और वह अनमोल चीज़ है क्रोध। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी तुच्छ चीज़ को अनमोल का नाम क्यों दिया ? उसके पीछे एक ठोस वजह है वह ये की एक यही चीज़ ऐसी है जिसे व्यक्ति हर वक्त अपने साथ रखना और सहेजना चाहता है। मानव के अंदर ईश्वर ने इतने गुण डाले है पर उसने उन सारे गुणों को उसने दरकिनार कर इस गुण को सर माथे चढ़ा लिया है। यदि बाकि के गुणों ने व्यक्ति में थोड़ी सी भी जगह बनाई रहती है तो इस गुण को जगह नहीं मिलती। इस लिए इस गुण ने  इंसान के व्यक्तित्व को ढक कर उसे बाकि सब से अलग कर दिया है। आज स्थिति ये है की क्षणिक क्रोध ने व्यक्ति की सोचने और समझने की क्षमता लगभग ख़त्म सी कर दी है। धैर्य और सहनशीलता ने न जाने कहाँ मुहँ छुपा लिया है कि उसके समक्ष अनेकों प्रतिद्वंदी  सामने आ गए हैं जो सभ्य व्यव्हार का नाश कर रहें है। छोटी छोटी बातों पर आकस्मिक रूप से उत्तेजित हो कर प्रतिक्रिया देने का उतावलापन ही क्रोध को हवा दे रहा है। ये क्रोध आप को हर कही दिखाई दे जायेगा। घर में ,बाहर ,सड़कों पर ,दफ्तरों में ,हर कहीं कुछ और रहें या न रहें ये क्रोध पहले से ही मौजूद रहता है। जिस तरह पटाखे में तीली लगाने की देरी रहती है उसी तरह बस क्रोध को भी एक चिंगारी ही चाहिए सुलगने और फटने के लिए। व्यक्ति कम समय में ज्यादा से ज्यादा हांसिल करने की चाह में मतलबी और लालची बन गया है। और इसी वजह से उसके अंदर का धैर्य खो गया है और यदि कोई उसके इस पाने की राह के बीच में आता है तो वह उसके क्रोध का शिकार बनता है।  
                   समस्या ये नहीं की व्यक्ति क्यों इतना क्रोधित होता है समस्या ये है कि इस क्रोध ने व्यक्ति के मस्तिष्क को इस तरह से ढक लिया है कि उसकी सही गलत सोचने समझने की शक्ति खत्म होती जा रही है। किसी  भी परिस्थिति में स्वयं को धीरज से सम्भलना ही सही मायनों में जीवन को सार्थक करना है। जीवन उथल पुथल का नाम है और इस उथल पुथल के बीच शांत धारा बन कर बहना ही मानवता है। यदि ईश्वर ने मानव जन्म दिया है तो है तो उसे जीने का सुख उठाने के लिए आप का जीवित रहना आवश्यक है और जीवित तभी रहेगें जब परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठा कर एक शांत जिंदगी जियेंगे। क्रोध एक घुन के समान है जो धीरे धीरे पूरे  शरीर समाज और रिश्तों को खोखला कर देता है। ये जरूरी नहीं की इस का प्रत्यक्ष प्रभाव सिर्फ आप देखें अप्रत्यक्ष रूप से समाज या अपने करीबी इस से ज्यादा प्रभावित होतें है। आप पर तो शारीरिक रूप से ये घात लगता है परन्तु समाज को ये गर्त में गिराने का कार्य करता है। शांत दिमाग और मन सही निर्णय लेने और देने में सक्षम होता है। जीवन हर पल निर्णय लेने का नाम है, क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है, किसे साथ ले कर करना है, क्यों करना है, और किस तरह करना है। ये अनेकों प्रश्नों के जवाब में ही जीवन का सार छुपा है। उचित ढंग से कर लेना ही जीवन को सार्थक कर लेना है। हमेशा परिस्थितियों को धैर्य और शांति से समझने की कोशिश क्रोध को काफी हद तक कम कर सकती है हम शांति से उन सभी समस्याओं और  परेशानिओं का हल निकाल सकते है जिन्हे हम क्रोध में जीवन का रोड़ा समझ रहें हैं। जीवन तभी सार्थक है जब अनेकों परिस्थितियों के बीच हसंता खेलता इंसान सामाजिक प्राणी बन कर जीए और  दूसरों को भी जीने दे।   

Comments

  1. Inspirational words...life is a continuous journey, so why not travel through it with a smile....

    ReplyDelete

Post a Comment