स्त्रीशक्ति

स्त्रीशक्ति :

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कोई  स्त्री कभी पैगम्बर, धर्म दूत नहीं बनी..कोई भी बुद्ध महावीर नहीं बनी, क्यों.....? ?

क्योंकि स्त्री पहले से enlightened है।  उनके पास पहले से ज्ञान है। वो ज्ञान से भरपूर हैं। शायद इसलिए उसे खोजने के लिए कहीं निकलना नहीं पड़ता।

अब प्रश्न ये उठता है कि क्या पुरुष को पहले से ज्ञान नहीं है। जो वो  खोजता रहता है..? ? पुरुष ने ज्ञान पूरी दुनिया में खोजा। खुद से बाहर , घर से बाहर , जग से बाहर। फिर एक दिन जंगल में किसी पेड़ के नीचे बैठ जाता है।  फिर उतरता है खुद के भीतर। और तब एहसाह होता है कि जिसे खोजने आया है। वो तो अंदर ही था।

हिरन और कस्तूरी की तरह दुनिया फालतू में घूम डाली।

बुद्ध जिस पेड़ के नीचे बैठे थे वहां न्यूटन का सेब नहीं गिरा, न एडम इव वाला फल मिला, न कोई चमकता तारा, न आकाश से वहां कोई किताब उतरी न कोई आकाशवाणी हुई.. न कोई नई खोज हुई.. बस पहचान हुई.. खुद की.. खुद से.. खुद ही को पाया.. उसी "खुद" को जिसे पैदा होने से ही साथ लिए घूम रहे थे ... 

स्त्री शायद ये सब जानती है। तभी वो कभी बाहर खोजने नहीं जाती। वो कभी जंगल जाकर किसी पेड़ के नीचे नहीं बैठती। लेकिन ये सत्य है कि स्त्री सबसे ज्यादा भाव विभोर होती है। तो ये भी प्रश्न खड़ा होता है कि फ़िर उसे ज्ञान कहां है.....?

तो उसके लिए ये उत्तर दिया जा सकता है कि किसने कहा कि भाव विभोर होना ज्ञान के विपरीत है ? क्योंकि ज्ञान की पराकाष्ठा ही ये है कि व्यक्ति किसी भी तथ्य को गहराई से परखता है। उसकी सोच में गहनता आ जाती है। यही गहनता ही कभी कभी भावों में उतर कर उसे प्रगाढ़ बना देती है। 

स्त्री भाव विभोर होकर भी शक्तिशाली है। हर परिस्थिति में मजबूत। बस ये मान सकते है कि कोमलता उसका आवरण है। जिसे देखकर अक्सर लोग ये अंदाजा लगा लेते हैं कि स्त्री ज्ञानवान नहीं, मजबूत नहीं या स्थिरप्रज्ञ नहीं। 

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