तुम बसे हो मन में
तुम बसे हो मन में :
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तुमसे तो निकाल दिया तुमने मुझे
मगर मुझसे तुम्हें कौन निकालेगा
इस कदर जो अंतस में बसा हुआ है
उस भरे हुए को कौन सम्भालेगा..
आसान होता है दूर चले जाना पर
नियति के मिलान को कौन टालेगा
किसी को अपना कह जो मुकर गए
उनका मन कोई कहाँ तक खंगालेगा
ख़ुद को खत्म कर उसके सा बन जाना
एक रहें इस वास्ते कैसे कोई खुद को
पूरी तरह दूसरे के अनुसार ढालेगा ?
जो निकाल दिया पूरी तरह जेहन से
तो दूसरा भी कब तक ये वहम पालेगा
ये जरूर है वक़्त की धार पर हर बार
पाकर खो देने का गम मन को सालेगा
~ जया सिंह ~
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