मोक्ष का सत्य

 "मोक्ष का सत्य "

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यूनान में एक बड़ा ज्योतिषी हुआ करता था। उसके राज्य के सम्राट भी उसके द्वार पर आते थे। वह विख्यात ज्योतिषी एक बार रात में आकाश के तारों का अध्ययन करता हुए कहीं चला जा रहा था।  अचानक चलते-चलते वो एक कुएं में गिर पड़ा। कुएं के मुख पर पर पाट नहीं रखे थे। और उसकी आंखें आकाश की ओर अटकी थीं। वह चांद-तारों का अध्ययन कर रहा था। कुएं में गिरते ही वो कुएं के अंदर से जोर जोर से बचाने के लिए चिल्लाने लगा।

कुएं के पास के ही झोंपड़े से एक गरीब बुढ़िया ने आकर उस ज्योतिषी को बमुश्किल कुएं में से बाहर निकाला। उसने बुढ़िया का बहुत-बहुत धन्यवाद किया और कहा-- देख! तुझे पता नहीं है कि तुझे सौभाग्य से किसको बचाने का अवसर मिला है।

मैं यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी हूं। मैं तारों और नक्षत्रों की गतिविधियों, और मनुष्य के भाग्य से उनके संबंध में मुझसे बड़ा कोई भी जानकार इस पृथ्वी पर नहीं है। बड़े से बड़े सम्राट भी मेरे पास आते हैं। मेरी भविष्यवाणी की दक्षिणा भी बहुत ज्यादा है। लेकिन तूने मुझे बचाया है तो तेरा भाग्य मैं बिना किसी दान दक्षिणा के देख दूंगा, 

उसकी ये बात सुनकर बुढ़िया हंसने लगी.......

ज्योतिषी ने उस बुढ़िया से पूछा -  माई ! तू हंस क्यों रही है ?

उस बुढ़िया ने कहा-- बेटा! मैं इसलिए हंस रही हूं कि जिसे अपने सामने का कुआं नहीं दिखाई पड़ता, उसे चांद-तारों की गतिविधि, नक्षत्र और भविष्य वगैरह क्या दिखेंगे... ? ? तुझसे अपने पैर तो सम्हलते नहीं हैं और तू मेरा भविष्य क्या बताएगा।

कहते हैं कि यह घटना उस ज्योतिषी के जीवन में एक क्रांति का कारण बन गई।

उसने ज्योतिष छोड़ दी‌ क्योंकी उसके लिए यह एक मानसिक आघात जैसी चोट थी। यह बात भी इतनी ही सच थी कि पैर के सामने कुआं है और वो दिखाई नहीं पड़ा। मगर उसे कुआं क्यों नहीं दिखाई पड़ा था? ऐसा नहीं है कि उसके पास आंख नहीं थी। उसके पास आंख थी, मगर आंख दूर के तारों पर अटकी थी।

यही हमारे आदर्शवाद की भ्रांति है। जिसकी आंख दूर के तारों पर अटकी है। आदर्शवादी सदैव कहता है कि एक दिन मोक्ष पाएंगे।

सड़ा-गला क्रोध, वैमनस्य, घृणा, कुंठा , जलन आदि से‌ तो छुटकारा मिल नहीं रहा है और कहते हैं कि मोक्ष पाएंगे, बैकुंठ जाएंगे ...!

हमारी आंखें बड़े दूर के आकाश के अर्जन पर लगी हैं और  व्यवहारिक जंजाल के चलते जो रोज-रोज गड्ढों में गिर रहे हैं उसपर ध्यान नहीं दे रहे।  यह गड्ढे क्रोध के, काम के, वैमनस्य के, ईर्ष्या के और घृणा के हैं।

संत-महात्मा फरमाते हैं-- आंखें लौटा लाओ जमीन पर। जहां चलना है आंखें वही होनी चाहिएं। अर्थात इस क्षण में ही आंखें होनी चाहिएं, क्योंकी गड्ढे यहां हैं।और सारे गड्ढों से तुम बच जाओ तो उसी बचाव का नाम मोक्ष है। मोक्ष कहीं दूर आकाश में नहीं है। जिसके जीवन में गिरने की संभावना न रही,वही मुक्त है..!!

       ~ जया सिंह ~

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