ख़ुद को ख़ुदा समझने की भूल

 ख़ुद को ख़ुदा समझने की भूल :   

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इंसान चाहे कितना भी शक्तिशाली बनने के लिए ज़ोर लगा ले पर वह ख़ुदा या ईश्वर से बड़ा तो नहीं हो सकता। ना ही खुद को सबका खुदा समझने की भूल कर सकता है। चाहे वह कितने भी बड़े साम्राज्य का मालिक हो, अकूत धनसम्पत्ति  रखता हो, शारिरिक तौर पर बलशाली हो या अन्य कुछ भी विशिष्ट खूबियां रखता हो....पर यकीनन वह रहेगा इंसान ही। 

ये पंक्तियां आज के संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए काफी हद तक खरी उतरती हैं। 2014 में जब ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी तभी उनके अड़ियल रवैये और मनमानीपूर्ण सरकारी व्यवस्था को इस्तेमाल करने की नियति का पता चल गया था। पर इस बार जब वह दूसरी बार राष्ट्रपति के तौर पर अमेरिका को संभाल रहे। तब अपने गर्व, दर्प, और आत्मप्रशंसा में वह हदों को पार करते चल रहे। और ऐसे निर्णय ले रहे जो उनके खुद के राष्ट्र के लिए भविष्य में नुकसानदेह साबित होंगे। चाहे वो यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्सकी के साथ उनको अनर्गल सौदे करवाने के लिये बाध्य करने का वाक युध्द हो। या दूसरे छोटे देशों को खरीद कर अमेरिका में मिलाने की जिद। दूसरों को कमज़ोर करके खुद को मजबूत समझना अपनी तानाशाही घोषित करने का मायावी छलावा है। क्योंकि जिन निर्णयों से दूसरे व्यथित हों उसी व्यवहार से अपने भी तो पीड़ा पा रहे होते हैं। यही ख़ुद को खुदा समझने की सबसे बड़ी गलती है। 

ईश्वर यकीनन सब कुछ हैं । पर कुछ कार्य मनुष्य रहते किये जाते हैं और कुछ ईश्वर रहकर। एक समय में कोई भी दोनों एक साथ बनकर नहीं चल सकता। उदाहरण के लिए समझिए, रावण भगवान ब्रम्हा का प्रपौत्र था। और राक्षस कुल का स्वामी। उसने अपने परदादा ब्रम्हा की तपस्या कर शक्ति सिद्धि से ये वरदान पा लिया कि उसकी मृत्यु  देवता, असुर , यक्ष, गंधर्व, राक्षस नाग किसी द्वारा ना हो। बस वो इंसान कहना भूल गया। शायद ये सोचकर कि जब इतने शक्तिशाली लोग मुझे नही मार सकते तो एक तुच्छ इंसान मुझे क्या मार पायेगा...तब प्रभु राम को मानव रूप में जन्म लेकर वनों में तुच्छ जीवन जीना पड़ा। तब रावण का वध हो सका। बस यही इस व्यक्तव्य का असल सार है। अर्थात जब किसी कार्य के लिए इंसानी रूप मिला है तो उसमें ख़ुदा बनने की सनक नहीं मिलानी चाहिए। इंसान होने की सीमाएं और ख़ुदा या ईश्वर होने की सामर्थ्य सर्वथा भिन्न है। 

इंसान रहते हुए सबका खुदा बनने की कोशिश स्वयं के लिए भी घातक हो सकती है। क्योंकि हम जिसके लिए निर्णय ले रहे वो भी हमारी ही तरह एक इंसान है। उसके पास भी समान शक्तियां है । थोड़ी कम या ज्यादा हो सकती है। पर जिस तरह भक्त प्रभु के दास बनकर रह सकते है। एक इंसान दूसरे इंसान का दासत्व अधिक दिन तक स्वीकार नहीं करता। और यही टकराव की स्थिति पैदा करता है। जो भविष्य में नफ़रत में बदल जाती है। हिटलर ने भी ख़ुद को भगवान बनाने की कोशिश में तानाशाही का रवैया अपनाया। लोगों को सत्य से भ्रमित रखा।  पर अंत उसका भी एक आम इंसान की ही तरह हुआ। 

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