गले तक भरा है रोना

गले तक भरा हुआ है रोना

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क्या कभी किसी ने ये महसूस किया है,

कि गले तक भरा हुआ है रोना

बस एक छुपा हुआ एकांत मिल जाये तो

चीख कर भड़ास निकाले और

पिघल कर निकल जाए हर दर्द पैना

आख़िर कब तक मन यूँ ही 

छलनी सा रहेगा ये कोइ तो कहो ना

कब तक मन की उथलपुथल से

सिर्फ़ सबको दिखावे के लिए मुकरना

किसी से कुछ कह नहीं सकते

तब कैसे कब तक यूँ इस दर्द को ढोना

अंदर घुटते हुए इक मंथन सा है

और घायल हुआ है मन का हर कोना

भरी हुई आँखें, रुंधा हुआ गला

फ़िर कैसे कह दें टीस से कि...चुभोना

कोई नहीं समझ पा रहा ये घुटन

तब क्यूं किसी सहारे की उम्मीद होना

टूट चुकी उम्मीदें अब मर रही हैं

आंखें भी चाहती है हमेशा के लिए सोना

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( मन दुःखी है ये इस कविता में झलक ही गया। पर ये सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं पर अक्सर सबके साथ होता है। दुनिया के सारे दुःख एक तरफ पर औलाद से मिलने वाला दुःख एक तरफ होता है। क्योंकि 25-26 साल पालपोस कर बड़ा करने के बाद छोड़ दिये जाने का दर्द असहनीय होता है। हम उनसे कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखते। लेकिन आत्मीयता और प्यार से जुड़े रहने की उम्मीद तो कर सकते हैं जब वो भी नहीं मिलती। तब दर्द से मन जीवन और समय तीनों छलनी हो जाता है। शायद ये भाग्य में लिखा होता है। पर उसे स्वीकारने के लिए जिस हिम्मत की जरूरत होती है वो मां बाप की ममता में मजबूती से नहीं मिलती।)




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