पूछ लिया मैनें ख़ुदा से
पूछ लिया मैनें ख़ुदा से ......
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पूछ लिया मैनें इक दिन ख़ुदा से
कि ये मेरे अंदर इतना क्यों शोर है.....? ?
ख़ुदा ने हंसकर मुझे देखा और बोला
ये सब तेरी ही कारस्तानियों का जोर है...
क़िस्मत में तेरी कुछ और लिखा है,
जबकि तू चाहता कुछ और है...!
साथ ही ये भी परखना कि
रस्ते जो तूने चुने जीवन के उसकी
ज़मी किस हद तक कमज़ोर है...!
सपने देखता है खुली हवा व प्रकृति का
जबकि घुटन भरे शहरों में,
बस जाने की तेरी कोशिशें पुरज़ोर है...!
रूह तो संवार नहीं पाया अपनी
बस सूरत को सजा सवँरा रखने की हिलोर है।
दीवारों में बंद रहकर वक्त गुजारता है,
और चाहत आसमां की रूहानी ठंडी भोर है...!
ऊंचाइयां छूने की तलब लिए फिरता है,
जबकि प्रवृत्ति से मेहनत के लिए कामचोर है..!
अनेकों कारण है क्या- क्या बताऊँ तुझे
ये समझ ले तेरी शांति, सुकूँ, तरक्क़ी की
सिर्फ़ तेरे ही हाथ बागडोर है ....!!
~ जया सिंह ~
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