चालीस- बयालीस की उमर

 चालीस- बयालीस की उमर 

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बड़ी अजीब सी होती है ना 

ये चालीस के बाद की उमर

ना बचपने का अल्हड़पन है

ना जवानी का मस्तमौला सफ़र

बालों में थोड़ी सफेदी उतर रही

और भूलने की आदतें बन रही दूभर

जो बचपना बिना जिये गुजर गया

वो फ़िर जिये जाने को मचा रहा ग़दर

पर समझदारी की जिम्मेदारी ने 

परिपक्व होने की कस ली है कमर

सपने उड़ान भरने की कोशिश में है

जमीं पैर पकड़ कह रही कि रहो इधर

उम्र बड़प्पन की ओर खिसक रही

पर प्रौढ़ता ओढ़ने की चाह है कमतर

शारीरिक जोड़ ढीले से हो रहे पर

मजबूत दिखाने की जुगत है कारगर

बड़ी अजीब सी होती है ना 

ये चालीस - बयालीस की उमर...

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