इंकार का भाव

 इंकार का भाव :  

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बरसात के दिन करीब थे एक नन्ही चिड़िया अपने बच्चों के साथ आश्रय बनाने के लिए नदी के करीब पेड़ों के पास आई। और उनसे उनकी एक शाखा का सहारा मांगा। यूँ तो पेड़ कभी भी किसी को भी कुछ भी देने से मना नहीं करते । पर उस समय पेड़ ने बड़ी बेरुखी दिखाते हुए मना कर दिया। चिड़िया दूसरे पेड़ के पास गई और उससे अपने बच्चों के आश्रय के लिए एक घोंसला बनाने की अनुमति मांगी। तो उस पेड़ ने उसे आश्रय बनाने की अनुमति दे दी। चिड़िया ने उस की एक शाख पर घोंसला बना लिया। 

बरसात के दिन शुरू हुए। तेज अंधड़ और बारिश होने लगी। एक दिन ऐसी ही तेज तूफान में वो पेड़ जड़ से उखड़ कर गिर गया और नदी में बहने लगा। चिड़िया ने उसे बहते देखा तो कहा कि....."उस दिन जब मैं तुझसे आश्रय मांगने आई थी तब तूने बड़ी बेरुखी से मुझे मना कर दिया था। आज उसी बात का दंड तुझे ईश्वर ने दिया है कि जड़ से अलग होकर तू नदी में बह रहा।" 

पेड़ ने उस मुश्किल समय में भी मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि मैं जानता था कि मेरी जड़ें अंदर से खोखली हो चुकी हैं और मैं ज्यादा दिन धरती पर खड़ा नहीं रह पाऊंगा। मैं तुम्हारी और बच्चों की जान खतरे में नहीं डालना चाहता था। इसीलिए मैनें तुम्हें सख्ती दिखाते हुए मना कर दिया था। परंतु उस समय तुम्हारा दिल दुखाने के लिए मुझे क्षमा कर देना।  ये कहते हुए पेड़ धारा में बह गया।

इस घटना से ये समझना चाहिए कि किसी का इनकार हर वक्त उसका स्वार्थ नहीं होता। कभी कभी ईश्वर की तरफ से उसमें आपकी भलाई छिपी होती है। इसलिए किसी के चरित्र और शैली को उसकी समसामयिक कठोरता से ना आंकें। कोई कारण भी हो सकता है जो वह कठोर बनने के लिए बाध्य हुआ। 

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