जो लिख दिया प्रभु ने वही होगा
जो लिख दिया प्रभु ने वही होगा :
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विधना ने जो लिख दिया छठी रात के अंक ।
राई घटे न तिल बढ़े, रहो जीव निशंक ।।
अगर सब कुछ पूर्व लिखित है , तो प्रयत्न का क्या अर्थ है ??
अर्थात परमात्मा ने सबकी नियति पहले से ही लिखी हुई है । जो होना है जब होना है वैसे ही होगा। इसी से जुड़ा एक किस्सा बताती हूँ.......
एक बार शिवजी ने भगवान विष्णु को मिलने के लिए बुलाया। वो अपने गरुण पर सवार होकर मिलने गए। विष्णुजी भोले शंकर से मिलने अंदर चले गए और गरुण जी बाहर ही उनकी प्रतीक्षा करने लगे। उसी समय यमराज जी भी भगवान शिव से मिलने आये। तो गरुण जी ने देखा कि यमराज जी जैसे ही अंदर की ओर जा रहे थे तो एक नन्ही सी चिड़िया जो पास ही फुदक रही थी उसे बहुत गौर से देखने लगे, और उसे देखते हुए ही अंदर चले गए।
अब गरुण जी सोचा कि ज़रूर इसका काल निकट है। तभी यमराज जी उसे इतनी गहनता से देखते हुए गए है। अब वह जब शिव जी से मिलकर बाहर आएंगे तो पक्का इसे संग लेकर जाएंगे।
बस यही सोच कर गरुण जी ने उस नन्ही चिड़िया को पंखों में दबाया। और शिवजी के स्थान से तीन चार पहाड़ दूर किसी अन्य पहाड़ पर छोड़ आये। यमराज जी प्रभु से मिलकर बाहर निकले तो उस चिड़िया को ढूंढने लगे।
यमराज जी ने तब गरुण जी से पूछा कि यहां एक नन्हीं चिड़िया थी। आपने उसे देखा क्या...? ? गरुण जी बोले कि आप किस अभिप्राय से पूछ रहे पहले ये बताएं तब मैं आपको बताऊंगा की वह कहां है....!!
यमराज जी बोले कि उसका अंत समय निकट है और उसे यहां से बहुत दूर किसी पर्वत पर साँप द्वारा खा लिए जाने से मृत्यु मिलनी है। मैं यही सोच रहा हूँ कि इतनी छोटी चिड़िया इतनी दूर के पहाड़ पर अपनी मृत्यु के लिए पहुंचेगी कैसे...जबकि वो तो यहां खेल रही हैं।
यह सुनकर गरुण जी को काटो तो खून नहीं। वह ग्लानि से पत्थर के समान हो गए। क्योंकि वो ही उस नन्ही चिड़िया के मृत्यु का साधन बन गए।
होहिये वही जो राम रची राखा
को करी तर्क बढ़ावे साखा....!
प्रभु जो चाहते है। जैसा लिखें है वही सबके सामने आना है। हम व्यर्थ में अपना मन खराब करते हैं।
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