प्रकृति की राह
प्रकृति की राह :
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जीने के लिए बहुत सारे रास्ते हैं। कौन कैसा रास्ता चयन करता है यह हर व्यक्ति का व्यक्तिगत सवाल है। यहां दिक्कत कुछ भी नहीं है। दिक्कत यहां भी नहीं कि अपने रास्ते को श्रेष्ठ बताया जाए ये अपने अपने अनुभव से तय होता है । दिक्कत यहां भी नहीं कि सभी अपने अपने रास्ते पर चल रहे हैं। अपनी अपनी प्राथमिकताओं से जिंदगी का सफर तय कर रहे। अपने जीने के लिए एक सुरक्षित स्थान बना रहे।
दिक्कत तब है जब एक-दूसरे की श्रेष्ठताओं को पार करने की कोशिश की जाए। दिक्कत तब है जब सिर्फ़ अपनी विशेषताओं को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाए। दिक्कत तब है जब अपने जीने के लिए सुरक्षित स्थान बनाने के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन होए। दिक्कत तबाह जब एक की प्रथमिताएँ दूसरे के लिए कष्ट का कारण बने। दिक्कत उस अतिक्रमण में है जो दूसरे की सीमा क्षेत्र में आता है।
जब तक सभी के विचारों में आवाजाही के लिए खुली खिड़कियां और खुले दरवाज़े नहीं होंगे, भीतर संकरापन बना रहेगा। और ये संकरापन फ़िर सीमितता को जन्म देता है। अधिकतर राजनीति को अपनी विचारधारा में समग्र कर लेना ही दरवाजे और खिड़कियां बंद करवाता है। वह किस विचारधारा की राजनीति है जो लोगों के बीच अलगाव कायम रखती है, समझना बहुत जरूरी है। जो विचारधारा मनुष्य की जाति, धर्म के जरिये एक होने का रास्ता नहीं दिखाती वही सबसे बड़ी अड़चन है।
इस अड़चन को समझने के लिए अंततः प्रकृति का रास्ता चुना जाना चाहिए। जहां कुछ भी बंद नहीं होता सब कुछ मुक्त, अविरल, प्रवाहमान , स्वछंद, स्वतंत्र और सहर्ष स्वीकृत है। यहां जहर की उपस्थिति भी है और खुली हवा की भी। यहां सम्मान और गर्व का कोई विषय नहीं सिर्फ़ अपनी भूमिका का निर्वाह जरूरी है। यहां किसी एक की सत्ता नहीं। और अगर कोई एक कायम करना चाहता है तो प्रकृति उसे उखाड़ फेंकती है। प्रकृति का बैलेंस बनाकर रखना ही उसे सबसे मजबूत बनाता है।
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