डेजा वू "Deja vu"
डेजा वू " Deja vu" :
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ये एक फ्रेंच शब्द है । जिसकी सर्वप्रथम 1876 में एक फ्रांसीसी व्यज्ञानिक Emile Boirac ने अवधारणा की थी। उन्होंने इस पर एक पुस्तक लिखी..The future of the Phychic sciences . इसमें उन्होंने इस स्थिति का जिक्र किया जो कि एक खास दिमागी अवस्था से जुड़ा है। इस शब्द का अर्थ है, पहले से देखा हुआ already seen ...अर्थात जो आज की वर्तमान स्थिति है वह पहले भी अनुभव की गई है या उसके होने का अनुमान पहले ही लग गया है। वैसे तो इस तरह की सोच से कभी ना कभी हर सामान्य व्यक्ति गुजरता है। कोई जगह, कोई स्थिति, कोई लोग , कोई घटना हमें जानी पहचानी सी लगती है। जैसे पहले मिले हों या देखा है। जबकि पहले उससे दूर दूर तक कोई नाता ना रहा हो।
डेजा वू सम्बंधित प्रक्रिया मुख्यतः मस्तिष्क के temporal lobe में संग्रहित होती है। कान के पीछे की तरफ मस्तिष्क के दो हिस्से होते हैं जो इंद्रियों से ग्रहीत यादों और सूचनाओं का संग्रहण करते हैं। इसी प्रबंधन में दृश्य धारणा निर्मित होती है। ये temporal lobe कानों और आंखों के जरिये मिली सूचना को खुद में संग्रहित कर लेते हैं। उसी के आधार पर मुख को बोलने, किसी अन्य की भाषा या बात को समझने या कुछ याद करने जैसे कार्य में मदद मिलती है। ये temporal lobe मुख्यतः यादों की कोडिंग करके उन्हें संग्रहित करता है। यही coding में संग्रहण कभी कभी दृश्य बोध के रूप में प्रस्तुत होता है। जिसे डेजा वू कहते हैं।
अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है कि कोई जगह जाओ तो लगता है कि यहां हम पहले आ चुके हैं। किसी अजनबी से मिलो तो लगता है कि इन्हें पहले भी कहीं तो देखा है। या कभी कभी तो घर पर रहते ही चीजों की व्यवस्था या सामने की स्थिति बेहद जानी पहचानी सी लगती है। ये सब डेजा वू है। ये सामान्यतः फिल्में देखने यात्राएं करने , किताबें पढ़ने आदि से उपजता है। हम रोजाना ही बहुत सी चीजें देखते है पढ़ते है सुनते है। दिमाग़ उनको संग्रहित करता रहता है। और जब उससे मिलती जुलती स्थिति सामने आती है तो अपने आप वह संग्रहित स्थिति खड़ से उसका मिलान करने लगती है कि अरे ये तो पहले से पता है देखा है सुना है जाना है।
मेरे पति ministry of agriculture में principal Scientist के पद पर कार्य करते हैं। और अपने किसी प्रोजेक्ट के सम्बंध में 6 माह के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे। अपने दोस्त के साथ घूमते हुए वह एक स्थान पर पहुंचे तो उन्हें ये लगा कि यहां वह पहले भी आ चुके हैं। जबकि वह पहली बार वहां गए थे। उसके बाद उस जगह पर वो कई बार गए। हर बार वो जगह जानी पहचानी सी लगी। उन्होंने बहुत वर्षों पहले उस जगह की क्या स्थिति थी ये भी अन्य लोगों को बताया। और उन्होंने इसे सही कहा। ये डेजा वू ही था। पर बाद में जब जानकारियां जुटाई गई। तो पता चला कि जब उनको ऑस्ट्रेलिया जाने का पता चला तो उन्होंने वहां के रहनसहन, culture, heritage, monuments, history वगैरह का थोड़ा बहुत अध्ययन शुरू किया। ताकि 6 माह रहने में सहूलियत हो। वो सारी जानकारी उनके मस्तिष्क में feeded थी। और इसी हिसाब उनको वह जगह देखी जानी सी लग रही।
ये डेजा वू हम सब के साथ सामान्य तौर पर अक्सर होता है। ये कोई मानसिक बीमारी नहीं। परंतु अगर ये दिमागी तनाव, अत्यधिक पीड़ा, चिंता, सम्बंध विच्छेद आदि के कारण होए तो इसे मानसिक समस्या माना जा सकता है। इसी स्थिति पर आधारित एक हिंदी फिल्म गजनी बनाई गई। जिसमें आमिर खान ने मुख्य किरदार निभाया था। उसमें किरदार किसी अप्रत्याशित घटना के चलते अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है और उसे कुछ कुछ घटनाओं का लोगों का जगहों का आभास होने लगता है। एक अच्छी फिल्म के जरिये मस्तिष्क की इस स्थिति का वर्णन किया गया। परंतु हमें आपको परेशान होने की कत्तई जरूरत नहीं क्योंकि ये एक आभास है जो कभी भी कहीं भी किसी को भी कैसे भी हो सकता है ये एक सामान्य सी भावना है।
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