चुप्पी चुभती है

 चुप्पी चुभती है : 

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जरूरी तो नहीं कि कोई बात ही चुभे
कभी कभी बात न होना भी चुभती है
जब कुछ साझा ना होकर चुप्पी बने
तब ये कहीअनकही बहुत खटकती है
मन की मन में रहती है अबोला होकर
पर अंतस में कह देने की पीड़ा रहती है
उम्मीद रहती है कि कुछ बात होगी पर
सूनी आंखों में अव्यक्तता की सख़्ती है
चुप्पियों का दंश बेहद ही गहरा होता है
वह चोट साझेदारी के मरहम से भरती है
क्यों प्रेम के उजाले अंधेरों में बदल गए हैं
क्यों आत्मीयता... उम्र की तरह घटती है
जरूरी तो नहीं, कि कोई बात ही चुभे
कभी कभी बात ना होना भी चुभती है

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