हिंदुस्तान का दिल हिंदी ……इसे धड़कने दो! 

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में सभी कार्यालयों और विद्यालयों में अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये गए और आगे भी होते रहेंगे। परन्तु हिंदी राष्ट्रभाषा होकर भी कहीं किनारे पर खड़ी है ये सभी जानते हैं। ऐसा इस लिए कि युवा पीढ़ी को आधुनिक बनने की फ़िराक में अंग्रेजियत की लत लग गयी है और उसकी सोच के अनुसार तभी वह पूरी तरह नए समाज में ढल पायेगा जब की उसकी अंग्रेजी अच्छी हो। इस चक्कर में हिंदी बेचारी बन जाती है। जबकि मातृभाषा होने के कारण इसे सम्मान दिया जाना चाहिए। कभी आप ने सोच है कि ऐसे बहुत से शब्द जो कि एक समय रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हुआ करते थे आज कहाँ खो हो गए हैं ? चलिए उन में से कुछ शब्दों पर नजर डालते है ……………बस्ता , मंजन , चौकी, होड़ ,भाव ,अनुरोध ,सरल, अनंतर ,आमंत्रण ,फ़ोकट ,ऊधम ,कागज़ , पाचक ,महोदय ,मोमबत्ती ,कलम पट्टी ,मूल्य ,टोपी ,तश्तरी , दराज़ , भट , अंक ,यंत्र ,आयोजन मालिक ,स्याही ,अदभुत ,आग्रह  ,डाकिया , रूचि ,स्नेह , लिपिक, संयोग ,उद्घाटन ,शाबास , आसन ,उपवास , शाला ,देहांत ,जुराब , रसोई , बिजली , सिकाई , खस्तगी ,दस्तावेज ,अनुबंध ,प्रपत्र ,सहयात्री आशा , सहायक, छनाइ , बंधवाई,व्यायाम ,क़द ,औटाया , तर ,तरावट  जैसे सैकड़ों शब्दों को अंग्रेजियत ने लील लिया है। इन शब्दों में जो अपनापन था, उसे हमने खो दिया है। आप खुद महसूस करें कि कुल्हड़ की चाय में जो मजा था जो आज प्लास्टिक के छोटे होते कप में आता है क्या ? प्लास्टिक या थर्मोकोल के कप में बारिश की पहली बौछार वाली मिटटी की सुगंध कहाँ मिल पायेगी ?  रसोई कहने में जिस सौंधेपनऔर माँ की ममता का अहसास होता है  वह किचन कहने में मिल पायेगा क्या ? अंगेजियत ने सिर्फ बोलचाल को ही नहीं बल्कि हमारे जीवन के स्वाद को भी कही खो सा दिया है।आज रसोई में भी अंग्रजियत घुस कर उसे खालिस भारतीयता से अलग कर रही है। 
             आज कार्यालयों में जाएँ तो वहाँ भी इसी अंगेजियत का बोलबाला है। यदि भूल से भी आप ने प्रपत्र या दस्तावेज की मांग कर ली तो आप हद  दर्जे के गवाँर समझे जा सकते हैं। सभी कुछ बदलते हुए अब अंग्रेजी भाषा के अनुसार आधुनिक होता जा रहा है। और हम उसे सहर्ष स्वीकार कर के जीवन में समाहित करते जा रहें हैं। अब तो बच्चे भी कंप्यूटर के जरिये अंग्रेजी को और सरल रूप में प्रयोग कर के गर्व महसूस करते हैं। शब्दों को संक्षिप्त करके उसे कुछ अक्षरों द्वारा प्रस्तुत करना ये नया चलन है। जैसे ASAP  अर्थात as soon as possible . इस तरह के हजारों उदाहरण दिए जा सकते हैं जो हर बच्चे की जुबान पर रहते हैं। परन्तु ये सोचें की हमारी हिंदी में इस तरह की जल्दीबाजी के कारण क्या रस या भाव की कमी दिखाई देती है। आप जो भी कुछ कह रहें है उस के  प्रभाव का अंदाजा नहीं लगा सकते।  मिठास और महिमा जो हिंदी की रग-रग में बसी है वह अंग्रेजियत में कहाँ मिलेगी ।हम ने रोजमर्रा के जीवन के लिए अंग्रेजी का एक ऐसा शब्दकोष तैयार कर लिया है जिस से बाहर निकले पर हम खुद को गवाँर समझने लगते हैं। और गर्व से उसे अपने समाज में कह सुन कर अपने स्तर का निर्धारण करवाते हैं। यदि आप शानदार अंग्रेजी के मालिक है तो यकीनन आप स्मार्ट है ये धारणा आज सत्य बन चुकी है। बच्चे के जन्म के बाद से ही उसे छोटी छोटी वस्तुओं का नाम भी अंग्रेजी में ही सिखाया जाता है ये एक स्टैंडर्ड का मुद्दा है। बड़े होकर भी उसे यही सिखाया जाता है कि जो भी कुछ बोलो अंग्रेजी से भरपूर होना चाहिए।माना कि आज किसी बड़ी या अच्छी कंपनी में नौकरी के लिए अंग्रेजी की जानकारी जरूरी है पर उस के लिए हिंदी को दरकिनार कर देना समझदारी नहीं है। जो भाषा घर में बोली जाती है उसे सामजिक तौर पर खुलेआम बोलने में कोई शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए। बल्कि आप ये महसूस करेंगे की जितने आप हिंदी के साथ स्वाभाविक रह पाते है उतना अंग्रेजी में नहीं हो सकते। यदि आप को अंग्रेजी की कम जानकारी है तो फिर किसी ऐसी जगह जहाँ अंग्रेजी का ही बोलबाला है आप को चुपचाप रह कर अपने व्यक्तित्व की लाज बचानी पड़ेगी। ये कहाँ तक उचित है ?भाषा वही बोलनी चाहिए जिसके प्रस्तुतीकरण में महारत हाँसिल हो। जिस में अपने विचारों को सहजता से सामने रखा जा सके।अंग्रेजी का विरोध करना  नीयत नहीं है वरन हिंदी को अंग्रेजी से आगे- आगे चलाना हमारी नीयत है जो की जायज है। हिंदी हिंदुस्तान का दिल है और दिल धड़कता हुआ ही अच्छा लगता है………………              

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