दुनियावी ख़ुशी की क्षणिक माया ………!
आज आप अपने आस -पास अनेकों वस्तुओं से घिरे हुए हो और ये सभी हमारे जीवन का हिस्सा बन रही हैं। जब कभी कोई नयी वस्तु आप के जीवन में आती है आप खुश होते हैं और उसे प्रयोग करते करते आप उसके आदी भी हो जाते हो और अंततः वह जरूरत बन जाती है। आप ने कभी ये सोचा है की आप अगर खुश है तो क्यों हैं ? क्या इस लिए कि आप महंगी गाड़ीयों में घूमते हैं , आप खाना अक्सर बाहर ही खाते हैं , आप के पास जीवन के तमाम ऐशोआराम मौजूद है ,या आप एक बड़े से बंगले के मालिक हैं। एक बार ध्यान से सोचें और फिर निर्णय लें। क्योंकि इसी के आधार पर आप की ख़ुशी का जीवन काल निर्भर करता है। आज हर व्यक्ति इस लिए खुश है क्योंकि वो बाहरी दुनियावी वस्तुओं में ख़ुशी ढूंढ़ लेता है। उसे असल ख़ुशी का न तो पता है न ही पाने की आस। और इसी क्षणिक और छदम ख़ुशी को जिंदगी समझ उसे पूरा जीवन ही अच्छा लगने लगता है। जबकि सत्य इस से बिलकुल ही भिन्न है जिसे हमने न तो जानने का प्रयास किया न ही समझने की कोशिश।
ख़ुशी वास्तव में कहाँ है और कैसे मिलती है पहले ये सोचें। उस का स्रोत कहाँ है ? और उसे कैसे एक लम्बी आयु दी जाए ? ख़ुशी वास्तव में मन का एक भाव है जो किसी दूसरे के भाव से जुड़ कर पैदा होता है। ये भाव किसी भी घटना या परिस्थिति के कारण उपज कर जीवन को प्रभावित करते हैं। उन परिस्थितियों में हम जो भी कुछ आस-पास देखते या रखते है उसे ही ख़ुशी मान लेते हैं। जबकि ऐसा नहीं है आप दुनियावी वस्तुओं को किस नजरिये से देखते हैं आप की ख़ुशी का असल स्रोत ये है। किसी मासूम से बच्चे की खिलती मुस्कराती हंसी और किलकारियां आप को खुश करती है ये तो आप मानते ही होंगे , लेकिन क्या ऐसा तभी होता है जब वह बच्चा आप का अपना हो ? नहीं ! मासूम का बचपना एक ख़ुशी है जो अपना पराया देख कर नहीं बंटती। किसी आयोजन में सम्मिलित होने का बुलावा आप को ये ख़ुशी देता है कि चलो कुछ समय के लिए ही सही , कुछ लोगों के बीच रहकर आप अपने व्यस्त जीवन की कठिनाइयों , परेशानियों से दूर जा पाएंगे और खुश होंगे।कभी किसी अच्छे से पार्क में जा कर असंख्य रंग बिरंगे पौधों के बीच बैठ कर क्या आप ने सुकून और सुख का अनुभव नहीं किया है या किसी देवस्थान में जा कर शांति और सुख की अनुभूति प्राप्त हुई हो। ये सब कुछ ऐसी खुशियां हैं जो किसी वस्तु की मोहताज नहीं। जो आप को यदा -कदा परिस्थितियों के कारण मिलती है।अतः आप वस्तुओं में खुशियां ढूढ़ना बंद कर दे तो सही मायनो में खुश हो जायेंगे। क्योंकि वस्तु की उम्र के साथ आप की ख़ुशी की भी उम्र का निर्धारण हो जाता है। आप ने अच्छे कपडे जेवर व अन्य चीजें खरीदी बहुत ख़ुशी मिली। पर यदि वह चोरी हो जाएँ या खो जाए तो ? क्या तब भी ख़ुशी कायम रह पायेगी। इस लिए उन वस्तुओं का एकत्रीकरण छोड़ दे जो क्षणिक ख़ुशी का माध्यम बनती हैं। ख़ुशी आप के अंदर है जिसे आप परिस्थितियों के साथ जीते हुए महसूस कर सकते हैं। ये जानना जरूरी है की खुशियों से भरपूर परिवारों की खुशियां तो एक जैसी हो सकती है पर दुःख नहीं। ऐसा इस लिए की हर किसी का जीवन को भरपूर देखने का नजरिया अलग अलग होता है। वस्तुओं से भरपूर जीवन में रोज एक नयी वस्तु का सम्मिलित होना ख़ुशी को बढाता नहीं बल्कि कम करता है। तब उसके लिए आप की चिंता का बढ़ना ख़ुशी को प्रभावित करता है। इस लिए पहले ये प्रयास करें की ख़ुशी को धन से खरीदी वस्तुओं में तलाशना छोड़े। जीवन के पहलुओं में अनेकों खुशियों के पल है आप उन्हें जियेंगे तो पाएंगे की वास्तव में असल ख़ुशी यही है जो बिना किसी वस्तु के हमारे जीवन में समाहित रहती है और हम उसे पहचान नहीं पाते। बाहरी ख़ुशी की मोहताजी छोड़ अपने अंदर की ख़ुशी को तवज्जो दें और अपने आप को परिस्थितियों के अनुसार ऐसे ढाल लें कि ख़ुशी खुद ब खुद आपको तलाश ले।
आज आप अपने आस -पास अनेकों वस्तुओं से घिरे हुए हो और ये सभी हमारे जीवन का हिस्सा बन रही हैं। जब कभी कोई नयी वस्तु आप के जीवन में आती है आप खुश होते हैं और उसे प्रयोग करते करते आप उसके आदी भी हो जाते हो और अंततः वह जरूरत बन जाती है। आप ने कभी ये सोचा है की आप अगर खुश है तो क्यों हैं ? क्या इस लिए कि आप महंगी गाड़ीयों में घूमते हैं , आप खाना अक्सर बाहर ही खाते हैं , आप के पास जीवन के तमाम ऐशोआराम मौजूद है ,या आप एक बड़े से बंगले के मालिक हैं। एक बार ध्यान से सोचें और फिर निर्णय लें। क्योंकि इसी के आधार पर आप की ख़ुशी का जीवन काल निर्भर करता है। आज हर व्यक्ति इस लिए खुश है क्योंकि वो बाहरी दुनियावी वस्तुओं में ख़ुशी ढूंढ़ लेता है। उसे असल ख़ुशी का न तो पता है न ही पाने की आस। और इसी क्षणिक और छदम ख़ुशी को जिंदगी समझ उसे पूरा जीवन ही अच्छा लगने लगता है। जबकि सत्य इस से बिलकुल ही भिन्न है जिसे हमने न तो जानने का प्रयास किया न ही समझने की कोशिश।
ख़ुशी वास्तव में कहाँ है और कैसे मिलती है पहले ये सोचें। उस का स्रोत कहाँ है ? और उसे कैसे एक लम्बी आयु दी जाए ? ख़ुशी वास्तव में मन का एक भाव है जो किसी दूसरे के भाव से जुड़ कर पैदा होता है। ये भाव किसी भी घटना या परिस्थिति के कारण उपज कर जीवन को प्रभावित करते हैं। उन परिस्थितियों में हम जो भी कुछ आस-पास देखते या रखते है उसे ही ख़ुशी मान लेते हैं। जबकि ऐसा नहीं है आप दुनियावी वस्तुओं को किस नजरिये से देखते हैं आप की ख़ुशी का असल स्रोत ये है। किसी मासूम से बच्चे की खिलती मुस्कराती हंसी और किलकारियां आप को खुश करती है ये तो आप मानते ही होंगे , लेकिन क्या ऐसा तभी होता है जब वह बच्चा आप का अपना हो ? नहीं ! मासूम का बचपना एक ख़ुशी है जो अपना पराया देख कर नहीं बंटती। किसी आयोजन में सम्मिलित होने का बुलावा आप को ये ख़ुशी देता है कि चलो कुछ समय के लिए ही सही , कुछ लोगों के बीच रहकर आप अपने व्यस्त जीवन की कठिनाइयों , परेशानियों से दूर जा पाएंगे और खुश होंगे।कभी किसी अच्छे से पार्क में जा कर असंख्य रंग बिरंगे पौधों के बीच बैठ कर क्या आप ने सुकून और सुख का अनुभव नहीं किया है या किसी देवस्थान में जा कर शांति और सुख की अनुभूति प्राप्त हुई हो। ये सब कुछ ऐसी खुशियां हैं जो किसी वस्तु की मोहताज नहीं। जो आप को यदा -कदा परिस्थितियों के कारण मिलती है।अतः आप वस्तुओं में खुशियां ढूढ़ना बंद कर दे तो सही मायनो में खुश हो जायेंगे। क्योंकि वस्तु की उम्र के साथ आप की ख़ुशी की भी उम्र का निर्धारण हो जाता है। आप ने अच्छे कपडे जेवर व अन्य चीजें खरीदी बहुत ख़ुशी मिली। पर यदि वह चोरी हो जाएँ या खो जाए तो ? क्या तब भी ख़ुशी कायम रह पायेगी। इस लिए उन वस्तुओं का एकत्रीकरण छोड़ दे जो क्षणिक ख़ुशी का माध्यम बनती हैं। ख़ुशी आप के अंदर है जिसे आप परिस्थितियों के साथ जीते हुए महसूस कर सकते हैं। ये जानना जरूरी है की खुशियों से भरपूर परिवारों की खुशियां तो एक जैसी हो सकती है पर दुःख नहीं। ऐसा इस लिए की हर किसी का जीवन को भरपूर देखने का नजरिया अलग अलग होता है। वस्तुओं से भरपूर जीवन में रोज एक नयी वस्तु का सम्मिलित होना ख़ुशी को बढाता नहीं बल्कि कम करता है। तब उसके लिए आप की चिंता का बढ़ना ख़ुशी को प्रभावित करता है। इस लिए पहले ये प्रयास करें की ख़ुशी को धन से खरीदी वस्तुओं में तलाशना छोड़े। जीवन के पहलुओं में अनेकों खुशियों के पल है आप उन्हें जियेंगे तो पाएंगे की वास्तव में असल ख़ुशी यही है जो बिना किसी वस्तु के हमारे जीवन में समाहित रहती है और हम उसे पहचान नहीं पाते। बाहरी ख़ुशी की मोहताजी छोड़ अपने अंदर की ख़ुशी को तवज्जो दें और अपने आप को परिस्थितियों के अनुसार ऐसे ढाल लें कि ख़ुशी खुद ब खुद आपको तलाश ले।
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