प्रतिरक्षी तंत्रों की मजबूती ,जीवन का आधार !

आज चलिए एक बार फिर स्वास्थ्य की ही बात करते हैं।  व्यक्ति अपनी जीवन शैली से रोगों और हताशा के और करीब जा रहा है ये तो आप जानते ही हैं। पर साथ में ये भी जानते है कि अब उसका विश्वास इलाज के अन्य कई दूसरे तरीको पर ज्यादा होने लगा है। पहले के ज़माने में दादी नानी बीमार पड़ने पर घरेलु इलाज कर के व्यक्ति को भला चंगा कर देती थी। समय गुजरने के साथ व्यक्ति का रुझान एलोपैथिक दवाइयों की ओर बढ़ा क्योंकि उसे तत्काल भले चंगे  होने की जल्दी थी। धीरे धीरे व्यक्ति का शरीर इस तरह की दवाइयों का आदी हो गया और उसने प्रभाव दिखाना बंद कर दिया जिसे की अंग्रेजी में immune होना कहते है। तब एक वक्त ऐसा आया जब व्यक्ति ने इलाज के नए तरीके तलाशने शुरू किये। इसी सन्दर्भ में योग का चलन बढ़ा। हालाँकि योग एक पुरानी पद्धत्ति है जो पुरातन काल से रोगों से लड़ने का माध्यम बनी हुई है पर उसे जुड़ना लोगो ने अब शुरू किया जब बाबा रामदेव ने इसे आसान बना कर लोगो के बीच इसके अनंत लाभ दिखाने  शुरू किये। पर लोगों का क्या , एक नयी चीज जब थोड़ी पुरानी होने लगती हैं तब उसमे रूचि कम होना ये मानव का नैसर्गिक स्वभाव है।  ऐसा योग के भी साथ हुआ और फिर वह तलाशने लगा कोई और अनूठा तरीका। विदेशों में इस तरह के कई नए तरीके प्रचलित है। 
              वहां एक नया तरीका चलन में है जोंक द्वारा अतिरक्त चर्बी वाली जगह पर चिपका कर खून पिलाना। जिस से वहां की वसा  मात्रा कम होती है  और व्यक्ति हल्का महसूस करता है।  इसी प्रकार प्रकिृतिक चिकित्सा के अंतर्गत शरीर पर अनेकों प्रकार के लेपों द्वारा रोग का इलाज। इन लेपों  में सब्जियों का रस से लेकर मिटटी और अनेकों जड़ी बूटियों का अर्क शामिल है। इसी प्रकार विख्यात ग्रीक फिजिशियन रस्सियों और पुली की सहायता से व्यक्ति को उल्टा लटका कर रक्त प्रवाह के जरिये ग्रंथियों की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करते हैं। इसे इनवर्जन थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। इसी प्रकार यूनान में हड्डियों से सम्बंधित रोगों के लिए कप थेरेपी का प्रयोग करते हैं जिस में प्रभावित स्थान पर कांच के छोटे कप लगा कर प्रेशर देते हैं इस से गैप की समस्या खत्म हो जाती है। इसी प्रकार शरीर से गन्दा रक्त बाहर निकलने के लिए भी कप थेरेपी से प्रेशर दिया जाता है। इन चिकित्सा पद्धत्तियों से व्यक्ति प्रकृति के करीब भी जाता है और हानि की भी कम सम्भावना रहती है। लेकिन प्रश्न  ये उठता है कि  व्यक्ति ने अपने शरीर को ऐसा बना क्यों लिया की उसे हर तरीके को कुछ समय बाद immune हो जाने की वजह से छोड़ना पड़ता है। यदि शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मजबूत रहेगी तो उसे रोज इन नए तरीको के अविष्कार की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये सत्य है की प्राकृतिक और नैसर्गिक तरीके शरीर के लिए रामबाण का काम करते है पर उनका भी आदी होने में शरीर को ज्यादा वक्त नहीं लगता। Prevention is better than cure ये जुमला तो आप का खूब देखा सुना होगा।  पर आप ने इस पर अमल कितना किया ये अलग बात है। जरूरी तो नहीं कि हम जो भी देखें , पढ़े या सुनें उस पर अमल कर के अपना जीवन प्रभावित होने दें यही सोचते है न आप।  तब तो कुछ कहना सुनना बेकार है क्योंकि अगर हमारे कहने सुनने के प्रयासों से आप के जीवन पर सुई बराबर भी प्रभाव पड़  जाए तभी हमारा प्रयास सफल होगा।  और इसे सफल बनाना आप की ही जिम्मेदारी है। अपने शरीर को अंदर से इतना मजबूत बनाए की इन कई तरीकों के इलाज की यदा -कदा जरूरत पड़  भी जाए तो उसे शरीर  पूरी तरह स्वीकार करे।   इलाज तो तब आवश्यक होगा जब आप का शरीर इसे मांगेगा यदि आप अपनी जीवनशैिली को इस तरह मजबूती से बांधे रखतें है की उसे भेदना मुश्किल है तो रोग कैसे प्रभावित कर पायेगा। इस लिए जियें लेकिन स्वस्थ और सक्रिय हो कर यही असल सत्य है। ……………         

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