समझौते के अनुपात पर निर्भर रिश्ते ....... !
कभी आप ने ये सोचा है कि अमुक व्यक्ति से आप के रिश्ते अच्छे थे पर टूट गए, तो क्यों टूटे ? ये सवाल जब कभी अभी आप के मन में आया होगा तब- तब आप ने उस के ही कार्य कलापों को दोषी मान कर इस के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया होगा। उस के किये पर उसका न किया भारी लगने लगा होगा। क्योंकि ये तो मानव का स्वभाव ही नहीं कि किसी भी गलती के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया जाए । आप किसी भी रिश्ते में अगर प्यार से बंधे है तो पहले ये सोचे कि क्यों ? क्योंकि आप उसे पसंद करते हैं। उसकी आदतों ,जीवनशैली ,व्यव्हार , सलीका सभी आप को अच्छा लगता है। इसी वजह से उसका साथ आप को अच्छा लगता है। ये रिश्ते चाहे खून से जुड़े हों या मन से , उन सभी के लिए आप के मन का नरम कोना( soft corner ) इसे निरंतर बनाये रखने में मदद करता है। पर क्या होता है कि एक समय बाद वही सब कुछ अच्छा नहीं लगता और धीरे धीरे सम्बन्ध ख़त्म होने की कगार पर आ जाते हैं।
इन तथ्यों पर गौर करें और महसूस करें की गलती कहाँ और क्यों हुई ? ये सब शुरू होता है तब जब प्यार को निरंतर करने के लिए आप अपनी भी कुछ शर्तें सामने रखना शुरू कर देते हैं। पहली बात तो ये कि प्यार शर्तों पर नहीं होता पर यदि आप को लगता है कि आप दोनों के बीच अभी भी कुछ अलग है तो उसे खुद में सुधार ला कर पूरा करें। यदि आप ने सामने वाले को सुधारने कोशिश की तो हो सकता है कि व्यवहार की भिन्नता या समय की कमी के कारण वह ऐसा करने से इंकार कर दे। तब रिश्ते कमजोर होने लगते हैं। इस लिए बेहतर होगा कि ये शुरुआत आप स्वयं से करें। जरूरत दोनों की हो सकती है कि रिश्ता सुचारू चले पर प्रयास की पहल कौन करेगा इस उहापहोह में रिश्ता दावं पर लग जाता है। उसे अपने अनुसार बदलने की कोशिश उसे खुद से दूर कर देती है। क्योंकि जरूरी नहीं की एक दूसरे की जरूरत की दरकार दोनों को समान मात्रा में हो। यदि आप को लगता है कि आप को उसकी ज्यादा जरूरत है तो इस प्रयास को आप प्रारम्भ करें और यदि उसे ये महसूस हो की उसके साथ ऐसा है तो वह करें। यही नियम रिश्तें को लम्बा और सुचारू बना सकता है। जीवन को जीने का मजा तभी आता है जब आप के आस - पास आपके रिश्ते हों। आप खुद सोचें कि जब भी कोई नयी वस्तु खरीद कर लाते हैं तब क्या आप का मन नहीं करता की दो चार लोग उसे देखें और उस के बारें में आपकी तारीफ भी करें। ये तब संभव होगा जब कि कुछ लोग आप से जुड़ें रहेंगे। एक अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा। हर पहलु की अपनी मांगे होती है और उन्हें पूरा करके ही आप उसे सफल बना सकते हैं। प्यार बनाये रखना आसान कार्य नहीं इस के लिए त्याग और समर्पण की आवश्यकता होती है। इस लिए प्यार को बनाये रखने के लिए पहले अपने व्यव्हार और आदतों पर गौर करें कि आप उसके अनुसार कितना ढल पाएं हैं। यदि ये आंकड़ा 50 % से ज्यादा है तो यकीनन ये रिश्ता लम्बा चल सकेगा। क्योंकि इसे पलटवार कर देखें तो सामने वाला भी 50 % से कम या ज्यादा होगा तो पूरा 100 % का अनुपात हो जाएगा। इसे इस तरह से देखें कि आप को यदि इस रिश्ते की दरकार है तो समाने वाले को भो तो है। परन्तु इस अनुपात को बनाये रखना पहले आप के स्वयं के हाथ में है जब भी इस में कमी या ज्यादती हो उसे आप अपने व्यव्हार से balance कर के इसे लम्बा बना सकते हैं। और जीवन भर उस रिश्ते का सुख भोग सकते हैं। इस लिए इसे एक प्रण के रूप में स्वीकार कर के अपने आस -पास के सभी रिश्तों को करीब रखें ,और खुश रहें …………
कभी आप ने ये सोचा है कि अमुक व्यक्ति से आप के रिश्ते अच्छे थे पर टूट गए, तो क्यों टूटे ? ये सवाल जब कभी अभी आप के मन में आया होगा तब- तब आप ने उस के ही कार्य कलापों को दोषी मान कर इस के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया होगा। उस के किये पर उसका न किया भारी लगने लगा होगा। क्योंकि ये तो मानव का स्वभाव ही नहीं कि किसी भी गलती के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया जाए । आप किसी भी रिश्ते में अगर प्यार से बंधे है तो पहले ये सोचे कि क्यों ? क्योंकि आप उसे पसंद करते हैं। उसकी आदतों ,जीवनशैली ,व्यव्हार , सलीका सभी आप को अच्छा लगता है। इसी वजह से उसका साथ आप को अच्छा लगता है। ये रिश्ते चाहे खून से जुड़े हों या मन से , उन सभी के लिए आप के मन का नरम कोना( soft corner ) इसे निरंतर बनाये रखने में मदद करता है। पर क्या होता है कि एक समय बाद वही सब कुछ अच्छा नहीं लगता और धीरे धीरे सम्बन्ध ख़त्म होने की कगार पर आ जाते हैं।
इन तथ्यों पर गौर करें और महसूस करें की गलती कहाँ और क्यों हुई ? ये सब शुरू होता है तब जब प्यार को निरंतर करने के लिए आप अपनी भी कुछ शर्तें सामने रखना शुरू कर देते हैं। पहली बात तो ये कि प्यार शर्तों पर नहीं होता पर यदि आप को लगता है कि आप दोनों के बीच अभी भी कुछ अलग है तो उसे खुद में सुधार ला कर पूरा करें। यदि आप ने सामने वाले को सुधारने कोशिश की तो हो सकता है कि व्यवहार की भिन्नता या समय की कमी के कारण वह ऐसा करने से इंकार कर दे। तब रिश्ते कमजोर होने लगते हैं। इस लिए बेहतर होगा कि ये शुरुआत आप स्वयं से करें। जरूरत दोनों की हो सकती है कि रिश्ता सुचारू चले पर प्रयास की पहल कौन करेगा इस उहापहोह में रिश्ता दावं पर लग जाता है। उसे अपने अनुसार बदलने की कोशिश उसे खुद से दूर कर देती है। क्योंकि जरूरी नहीं की एक दूसरे की जरूरत की दरकार दोनों को समान मात्रा में हो। यदि आप को लगता है कि आप को उसकी ज्यादा जरूरत है तो इस प्रयास को आप प्रारम्भ करें और यदि उसे ये महसूस हो की उसके साथ ऐसा है तो वह करें। यही नियम रिश्तें को लम्बा और सुचारू बना सकता है। जीवन को जीने का मजा तभी आता है जब आप के आस - पास आपके रिश्ते हों। आप खुद सोचें कि जब भी कोई नयी वस्तु खरीद कर लाते हैं तब क्या आप का मन नहीं करता की दो चार लोग उसे देखें और उस के बारें में आपकी तारीफ भी करें। ये तब संभव होगा जब कि कुछ लोग आप से जुड़ें रहेंगे। एक अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा। हर पहलु की अपनी मांगे होती है और उन्हें पूरा करके ही आप उसे सफल बना सकते हैं। प्यार बनाये रखना आसान कार्य नहीं इस के लिए त्याग और समर्पण की आवश्यकता होती है। इस लिए प्यार को बनाये रखने के लिए पहले अपने व्यव्हार और आदतों पर गौर करें कि आप उसके अनुसार कितना ढल पाएं हैं। यदि ये आंकड़ा 50 % से ज्यादा है तो यकीनन ये रिश्ता लम्बा चल सकेगा। क्योंकि इसे पलटवार कर देखें तो सामने वाला भी 50 % से कम या ज्यादा होगा तो पूरा 100 % का अनुपात हो जाएगा। इसे इस तरह से देखें कि आप को यदि इस रिश्ते की दरकार है तो समाने वाले को भो तो है। परन्तु इस अनुपात को बनाये रखना पहले आप के स्वयं के हाथ में है जब भी इस में कमी या ज्यादती हो उसे आप अपने व्यव्हार से balance कर के इसे लम्बा बना सकते हैं। और जीवन भर उस रिश्ते का सुख भोग सकते हैं। इस लिए इसे एक प्रण के रूप में स्वीकार कर के अपने आस -पास के सभी रिश्तों को करीब रखें ,और खुश रहें …………
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