जीवन अनमोल है!


अभी दो तीन दिन पहले की एक घटना का जिक्र करना चाहूंगी  जिस से आप को ये अंदाजा होगा कि जीवन कितना कीमती है और इसे यूँ ही जाया नहीं किया जा सकता। नई  दिल्ली के एक चिड़ियाघर यानि zoo में सभी घूम कर जानवरों को देखने का आनंद उठा रहे थे। तभी एक युवक जो कि एक बाड़े में कुछ ज्यादा ही झुक  कर देखने और मोबाइल से फोटो खीचने में मशगूल हो गया था। उस बाड़े की ऊंचाई भी कुछ ज्यादा नहीं थी। यही 2 से 3 फ़ीट रही होगी। अचानक उसका संतुलन बिगड़ा और वह सीधा बाड़े में गिर पड़ा। वह बाड़ा सफ़ेद बाघ विजय का था। उसके गिरते ही  बाघ उसके नजदीक आ कर खड़ा हो गया और करीब 90 सेकंड उसे अपने पंजे से छूता  रहा। युवक हाथ जोड़ कर बाघ के आगे गिड़गिड़ाता रहा। ऊपर 
सभी आवाज लगा कर बाघ का ध्यान बटाँने की कोशिश में लगे थे जिस से उस युवक को बचने का मौका मिल सके। गार्ड्स ने बाड़े की ग्रिल पर डंडे भी मारने शुरू किये जिस से बाघ का ध्यान युवक से हट सके ,लेकिन तभी ऊपर खड़ी भीड़ में से किसी ने पत्थर मारने शुरू किये जिस से बाघ विचलित हो गया और गुर्रा कर युवक की गर्दन जबड़ों में पकड़ ली और करीब 10 मिनट तक इधर उधर घसीटते हुए अपनी मांद  में ले गया। युवक की मृत्यु हो गयी और उसे बचाया नहीं जा सका।
           इस घटना के बारे में अगर विस्तार से चर्चा करें तो उन तमाम उपायों को ढूंढा जा सकता है जिस के जरिये युवक की जान बचाई जा सकती थी।                           पहला ये  कि ट्रेंकुलाइज़र इस्तेमाल से बाघ को बेहोश किया जा सकता था। लेकिन इस के लिए भी एक लंबी सरकारी प्रक्रिया की जरूरत थी जिस के लिए समय नहीं था।            दूसरा ये कि बाड़े में सीढ़ी गिराई जा सकती थी जिस के सहारे युवक बाहर आ सकता। लेकिन वह भी मौके पर मौजूद नहीं थी।                                    तीसरा ये कि बाघ की देखभाल करने वाले कीपर को बुलाया जा सकता था क्योंकि उसकी बात बाघ सुनता था।                                                                            चौथा ये कि बाड़े के पास बनी खाई में पानी भरा होता तो बाघ शायद कुछ समय लगाता युवक तक पहुँचने में पर उसके सूखी होने के कारण उसका युवक तक जाना आसान हो गया।          पांचवा और सबसे महत्वपूर्ण ये कि सबसे बड़ी गलती उस युवक की है जो ये नहीं समझ पाया की जंगली जानवर कभी भी आक्रामक हो सकते है उनके व्यव्हार को संयत नहीं रखा जा सकता।  क्या जरूरत थी , इतने करीब जा कर देखने की। आज कल ये जो सेल्फ़ी लेने का चलन बढ़ा है इस ने कई खतरों को जन्म दे दिया है।  युवा फोटो लेने के चक्कर में वहाँ तक चले जाते है जहाँ से खतरा प्रारम्भ होता है। उन्हें न तो अपनी सुरक्षा की फ़िक्र रहती है न ही अपने से जुड़े लोगो के बारे में चिंता। साहसिक कारनामे करने की चाह ने आगे दिख रहे खतरे को भी  अनदेखा करना सीखा दिया है। सब से बड़ी गलती उस युवक की ही थी क्योंकि अपनी सुरक्षा के लिए सबसे पहले उसे सोचना चाहिए।यदि ऐसा होता तो दूसरों की खामियां नहीं निकलनी पड़ती।   
       कुछ गलती प्रत्यक्षदर्शियों की भी है जिन्होंने शोर करके और पत्थर मार कर बाघ को आक्रामक होने का मौका दिया। नहीं तो शुरू में बाघ शांत ही खड़ा था। zoo में कोई अलार्म सिस्टम भी नहीं था जिस के जरिये सभी को चेतावनी भेजी जा सके। ये कुछ महत्वपूर्ण खामिया हुईं जिन के कारण उस युवक की जान चली गयी। पर एक बार जरा ध्यान लगा कर सोच कर देखिये कि शेर के सामने पड़े युवक के लिए वह 10 मिनट कैसे होंगे। उस समय उसे जीवन की सही कीमत पता चली होगी पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और जीवन हाथ से फिसल रहा था। इस घटना का जिक्र करने का तातपर्य ये है कि जिंदगी की कीमत कोई दूसरा आप को नहीं समझा सकता उसके लिए आप स्वयं प्रयास करेंगे और जिन भी परिस्थिति में रहें उसे सुरक्षित रखने का खुद से वादा करेंगे। अनेक कार्यों को करते समय उसे सुरक्षा की लिहाज से परख लें और सुरक्षित रहते हुए अपने को अपनों से जोड़े रखिये।  

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