समय तालिका में बंटा पूरा दिन
समय तालिका में बंटा पूरा दिन : शुन्यकाल जरूरी.....!! ••••••••••••••••••••••••••••
कभी आप ने सोच है कि जिस जीवन के लिए आप इतना सब कुछ करते हैं उसी को अपनी कुछ सोची समझी नादानियों की वजह से खतरे में डाल रहें हैं। आप जो भी जीवन जी रहें हैं वह दिया तो विधाता ने है। पर उसे बनाने या संवारने का जिम्मा आपका खुद का है। और आज की जीवनशैली ने उसे बनाने के बजाये बिगड़ने का काम ज्यादा किया है। आज हम सिर्फ इसलिए जी रहे हैं क्योंकि हमें कुछ बनना है ,कुछ पाना है , कहीं तक जाना है। अपने आस पास के माहौल ,लोग या परिस्थिति से न तो कोई वास्ता है न ही आगे कभी रखना चाहते हैं। इस का खामियाजा समाज तो भुगत ही रहा है परन्तु हम भी शिकार बन रहेँ हैं। समय को तालिका बना कर इस तरह बाँट दिया जाता है कि बार बार घड़ी देख कर पाबंद होना पड़ता है। हर कार्य के लिए समय की पाबन्दी ने जीवन को रस लेकर जीने का मजा ही खत्म कर दिया है। ये एक प्रमुख कारण है तनाव का। जबकि पूरे दिन में मस्तिष्क को भी आराम की जरूरत होती है और ये आराम उसे हम दिन में एक शून्यकाल का समय निर्धारित कर दे सकते हैं। ये शून्यकाल 15 मिनट से आधे घंटे का हो सकता है। जिस में शांत बैठ कर कुछ भी न सोचें और मस्तिष्क को कुछ समय के लिए ठंडा महसूस करने दें। ये भी हो सकता है कि इस के बाद तरोताजा दिमाग एक नए विचार के साथ काम करना शुरू करें।जैसे कभी आप ने योग किया हो तो ये पता होगा की लगातार आसनों के बाद एक शवासन की प्रक्रिया अपनाइ जाती है ये थके हुए शरीर को आराम दे कर फिर से तरोताजा करने की स्थिति है। दिन भर की कई बातों में से खास बातें जो जीवन को ख़ुशी दे सकती हैं उन्हें अपने करीब रखने का प्रयास करें। जबकि होता इस का उल्टा है हम उन बातों के तो करीब रहतें हैं जो हमें परेशान करती हैं और उन्हें दूर रखते हैं जो हमारे चेहरे पर बेवजह मुस्कान ला सकती हैं। ऐसे कई उपाय है जो थकन और परेशानी को खत्म नहीं तो , कम तो कर सकते हैं। जैसे बागवानी ,बच्चो के साथ मस्ती ,या अपनी रुचियों के अनुसार कुछ क्रियात्मक करना या फिर गुजरें पलो की खूबसूरत यादों को याद करना।
आप स्वयं को शांत रख कर बहुत सी तकलीफों से बच सकते हैं क्योंकि ये सोचना गलत है कि केवल वही लोग सुने जाते है जो अपने बात गरजकर कहते हैं। किसी भी बात का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित होता है। अकारण चीखने या चिल्लाने से किसी बात को प्रभावित नहीं बनाया जा सकता। आप ने देखा होगा की सत्संग या प्रवचन में प्रवक्ता बहुत ही शांत और सौम्य ढंग से पूरी कथा का वाचन करता है और श्रोता धैर्य से सुनते हैं। क्योंकि उस में वह वो रस डाल देता है जो दूसरों को शांति देता है। यही सत्य आप को जीवन में अपनाना है तभी आप बिना तनाव के अपनी बात कह सकते हैं और दूसरों की बात सुन सकते हैं।। धैर्य और संतुष्टि से बड़ा धन कोई नहीं। किसी भी कार्य को करने में जहाँ धैर्य आपको सफलता का स्वाद चखा सकता है वही संतुष्टि आप को स्थिति को स्वीकार करने का साहस देती है। कोई भी परिणाम 100 % आना संभव नहीं ,जबकि आप ये अपेक्षा लगा कर बैठे रहते हैं। इस परिस्थिति में तनाव का कारण बनती है ये असंतुष्टि । अतः बेहतरीन कोशिशों के साथ कार्य को अंजाम दें। अच्छे या पाये गए नतीजों से संतुष्ट होना सीखें। हरदम सर्वोत्तम नतीजे का आना संभव नहीं। नतीजे आप के व्यक्तिगत व्यव्हार के कारण भी बनते बिगड़ते रहते हैं। इस लिए अपने व्यव्हार को नियंत्रित रखने का प्रयास एक बड़ी सफलता है तनाव को दूर रखने का।
कभी आप ने सोच है कि जिस जीवन के लिए आप इतना सब कुछ करते हैं उसी को अपनी कुछ सोची समझी नादानियों की वजह से खतरे में डाल रहें हैं। आप जो भी जीवन जी रहें हैं वह दिया तो विधाता ने है। पर उसे बनाने या संवारने का जिम्मा आपका खुद का है। और आज की जीवनशैली ने उसे बनाने के बजाये बिगड़ने का काम ज्यादा किया है। आज हम सिर्फ इसलिए जी रहे हैं क्योंकि हमें कुछ बनना है ,कुछ पाना है , कहीं तक जाना है। अपने आस पास के माहौल ,लोग या परिस्थिति से न तो कोई वास्ता है न ही आगे कभी रखना चाहते हैं। इस का खामियाजा समाज तो भुगत ही रहा है परन्तु हम भी शिकार बन रहेँ हैं। समय को तालिका बना कर इस तरह बाँट दिया जाता है कि बार बार घड़ी देख कर पाबंद होना पड़ता है। हर कार्य के लिए समय की पाबन्दी ने जीवन को रस लेकर जीने का मजा ही खत्म कर दिया है। ये एक प्रमुख कारण है तनाव का। जबकि पूरे दिन में मस्तिष्क को भी आराम की जरूरत होती है और ये आराम उसे हम दिन में एक शून्यकाल का समय निर्धारित कर दे सकते हैं। ये शून्यकाल 15 मिनट से आधे घंटे का हो सकता है। जिस में शांत बैठ कर कुछ भी न सोचें और मस्तिष्क को कुछ समय के लिए ठंडा महसूस करने दें। ये भी हो सकता है कि इस के बाद तरोताजा दिमाग एक नए विचार के साथ काम करना शुरू करें।जैसे कभी आप ने योग किया हो तो ये पता होगा की लगातार आसनों के बाद एक शवासन की प्रक्रिया अपनाइ जाती है ये थके हुए शरीर को आराम दे कर फिर से तरोताजा करने की स्थिति है। दिन भर की कई बातों में से खास बातें जो जीवन को ख़ुशी दे सकती हैं उन्हें अपने करीब रखने का प्रयास करें। जबकि होता इस का उल्टा है हम उन बातों के तो करीब रहतें हैं जो हमें परेशान करती हैं और उन्हें दूर रखते हैं जो हमारे चेहरे पर बेवजह मुस्कान ला सकती हैं। ऐसे कई उपाय है जो थकन और परेशानी को खत्म नहीं तो , कम तो कर सकते हैं। जैसे बागवानी ,बच्चो के साथ मस्ती ,या अपनी रुचियों के अनुसार कुछ क्रियात्मक करना या फिर गुजरें पलो की खूबसूरत यादों को याद करना।
आप स्वयं को शांत रख कर बहुत सी तकलीफों से बच सकते हैं क्योंकि ये सोचना गलत है कि केवल वही लोग सुने जाते है जो अपने बात गरजकर कहते हैं। किसी भी बात का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित होता है। अकारण चीखने या चिल्लाने से किसी बात को प्रभावित नहीं बनाया जा सकता। आप ने देखा होगा की सत्संग या प्रवचन में प्रवक्ता बहुत ही शांत और सौम्य ढंग से पूरी कथा का वाचन करता है और श्रोता धैर्य से सुनते हैं। क्योंकि उस में वह वो रस डाल देता है जो दूसरों को शांति देता है। यही सत्य आप को जीवन में अपनाना है तभी आप बिना तनाव के अपनी बात कह सकते हैं और दूसरों की बात सुन सकते हैं।। धैर्य और संतुष्टि से बड़ा धन कोई नहीं। किसी भी कार्य को करने में जहाँ धैर्य आपको सफलता का स्वाद चखा सकता है वही संतुष्टि आप को स्थिति को स्वीकार करने का साहस देती है। कोई भी परिणाम 100 % आना संभव नहीं ,जबकि आप ये अपेक्षा लगा कर बैठे रहते हैं। इस परिस्थिति में तनाव का कारण बनती है ये असंतुष्टि । अतः बेहतरीन कोशिशों के साथ कार्य को अंजाम दें। अच्छे या पाये गए नतीजों से संतुष्ट होना सीखें। हरदम सर्वोत्तम नतीजे का आना संभव नहीं। नतीजे आप के व्यक्तिगत व्यव्हार के कारण भी बनते बिगड़ते रहते हैं। इस लिए अपने व्यव्हार को नियंत्रित रखने का प्रयास एक बड़ी सफलता है तनाव को दूर रखने का।
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